HAPPY RAKSHABANDHAN

इक बहन का सवाल भाई से

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Suraj
Suraj 03 Aug, 2020 | 1 min read

happy rakshabandhan.....!

क्यो भाईयो येसे ही कहते हैं ना ? अपनी-२ बहनों को।

एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं, आप लोगो को

मेरा नाम सूरज है, और मेरी बहन का नाम अंजली।

इक रोज़ अंजली की दोस्त शिवी की बहन नेहा की शादी हो रही थी।

अब क्यो की में इक दोस्त का भाई हू तो मुझे काफी अहम कामों कि

ज़िम्मेदारी दी गई।

ख़ास बात यह है इसमें, नेहा का परिवार और हमारा परिवार

इक ही समाज के है, सोनी!

येस मौकों पर ज़िम्मेदारी और भी ख़ास हो जाती हैं।

चलिए शादी हो जाती हैं। काफी अच्छी तरीके से,

और वो दोनों लोग मुंबई सेटल हो जाते हैं दोनो लोग नौकरी करने वाले लोग हैं।

वो कहते हैं ना पांच उंगलियां कभी इक जैसी नहीं होती, हर कोई खुश नहीं रह पाता, क्यो की हम लोग खुद पर ना ध्यान देते हुए, लोगो पर जादा देते हैं।

कुछ दिनों बाद खबर आती हैं, की वो दोनो अब साथ नहीं हैं,

क्यो की नेहा और उसके पति में मेल नहीं खा रहा था।

कुछ हरकतों जैसा मुद्दा था, जोकि कुछ नेहा को पसंद नहीं आ रही थी

और कुछ उसके पति को।

और अब तो इक शाल होने जा रहा है, और वो लोग आज भी अलग है।

जब मैने सुना, तो मां से कहा यह पागल लड़की हैं क्या! इतनी बात पर कोई भला अलग अलग कैसे रह सकता है। मां ने कहा कुछ नहीं कह सकते आज कल के बच्चो का, फिर मेरी भी नकारत्मक सोच बन गई नेहा के प्रति।

लेकिन अब कहानी कुछ और पता चली,

वो लड़का नेहा को मरता- पिटता भी था।

जब यह मैने सुना तो मेरा दिमाग ख़राब हो गया। तब समझ आया यह लड़का नेहा के लायक नहीं हैं, अंजली ने बताया कि,

नेहा इक लड़के को पसंद करती थी। जोकि वो इक other caste

से belong करता है।

इक रोज़ नेहा अपने घर में अपनी मां से बात की होगी, उसके बारे में

परंतु बात वही आकर रुक गई, जो होता हैं, और जो होता आ रहा है।

की वो हमारे समाज का नहीं है,

वो लड़का जिसको नेहा पसंद करती थी,

वो नेहा से भी उच्च वर्ग का परिवार था। लेकिन फिर भी मां ने घर वालो के डर से और समाज के डर से, वहां के लिए इंकार कर दिया था।

लेकिन में इतना बेवकूफ इंशन इक शाल से यह सोच रहा था।

की जब साथ मैं नहीं रहना था। तो शादी क्यो की,

गर थोड़ी सी भी हिम्मत कर देते नेहा के मां-बाप,

विचारी नेहा का घर बश जाता।

लेकिन अब पता चला कि घर वालों के दवाब में आकर की थी।

लेकिन अब में पूछता हूं, घर वालो से अब कितनी आपकी नाक उची हो गई,

समाज वालों कि नज़रों में, वो तब भी बोलते वो आज भी बोल रहे हैं।

क्या फायदा एसे समाज का जो हर वक़्त आपके खिलाफ रहे,

 

यह सब कुछ कल मेरी बहन ने मुझे बताया।

मैने कहा यह बहुत गलत बात है, उनके माता पिता की

समाज से शादी थोड़ी ना करनी थी, मेरे यह कहते ही

मेरी बहन ने मुझसे इक सबाल पूंछ दिया।

सूरज गर यह कही मेरे साथ होता तो? क्या होता?

मैं इक पल शांत रहा। फिर मैंने अपनी समझ से जवाब दिया

देखिए!

अगर आप सही हैं, तो सामने वाला इंसान भी सही होना चाहिए।

गर दोनों सही हैं तो सब सही हैं,

मेरा मानना जीवन सिर्फ़ शादी के लिए ही नहीं होता।

हर इंसान को जीवन एंसा जीना चाहिए जिससे दूसरो को

प्रेरणा मिले, नकी भटके फिर आप तय कीजिए

सही हो या गलत, गर सही हो तो आपको कोई नहीं रोक सकता चाहे समाज ही क्यो ना हों।

फिर मैने सोचा मुझे इक पल भी क्यो लगा एसा सोचने में,

यातो कही ना कही ऎसी सोच मुझ मैं भी हैं...! यह में सोच ही रहा था तभी मेरी बहन ने एक प्रश्न फिर पूछ दिया, जैसे उनकी मां ने किया गर हमारी मां ने भी वैसा किया तो?

मैने कहां तुमको पता हैं समाज क्या हैं?

समाज कोई इंसान या वस्तु नहीं है, जो दिखाई दे।

यह सिर्फ इक सोच हैं, जोकि सोच हमेशा बदलती रहती हैं।

वक़्त के साथ!

मैने कहा अभी रुको तुम! धीरे-२ इतना update हुए हैं, आगे और भी हो जाएंगे

जब हम जैसे लोग साथ होते हैं।

धेर्य रखिए!

कल रक्षाबंधन हैं मैं आज ही वादा करता हूं तुमसे, हम एसा बिल्कुल नहीं होने देंगे।

की तुमको पहले किसी पटरी पर चढ़ा दें और बाद में तुम्हारा accedent हो जाए।

I PROMISE YOU!

भाईयो 🙏🏻 मेरा आप लोगो से निवेदन हैं, कृपया करके रक्षा करने का दायरा भड़ाइए, नकी जब तक लड़की कुंवारी है। हमेशा, हर इस्थिती में,

फिर वो चाहे कुछ भी हो।

फिर वो उसका मयेका हो या ससुराल, फिर चाहे दिक्कत मानसिक हो या सरिरिक

आपको अपना कर्म निभाना आना चाहिए।

 

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Suraj

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