ये समाज का कैसा अंधविश्वाशी चेहरा है कि बाप को अपनी ही बेटी को देखने नहीं दिया जाता है। जिस बेटी ने अभी- अभी इस धरती पे जन्म लिया है उसे अपने पिता से ही कुछ दिन तक मिलने नहीं दिया जाएगा क्योंकि समाज के कुछ ज्ञानी-विज्ञानी है और वे अन्धविश्वाश के विश्वाश से इतने प्रेरित है कि वो कहते हैं कि अगर पिता ने अपनी पुत्री का चेहरा देख लिया तो बेटी के ऊपर दोष पड़ेगा। उसके आने वाले जीवन में समस्याएं ही उत्पन होती रहेंगी। इसीलिए बेहतर इसी में है की पिता अपनी पुत्री का चेहरा कुछ दिन तक ना देखे तो बेहतर ही है तथा उसकी विधिवत पूजा करवाने के बाद ही अपनी पुत्री का चेहरा देखे उसके बाद उसका सारा जीवन मंगलमय होगा!
आप सब से बस एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि क्या हमारे भगवान, प्रभु, ईश्वर इतने निर्दयी हैं। उनका ह्रदय इतना कठोर है कि वो ऐसा नियम बना सकते हैं। ज़रा अपने मन से ही पूछिए सच्चे दिल से उस ईश्वर परमात्मा से ही पूछिए तो सारे सवालों के जवाब आप को मिल जायेंगे।
मेरा मानना तो यही है की ऐसे नियम-वगेहरा कुछ नहीं होता है। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने भगवद्गीता में अर्जुन को यही उपदेश दिया था कि तू कर्म किये जा फल की आशा मत रख और इंसान जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल मिलेगा। तभी तो हम कहते हैं की आने वाले कल में क्या होगा ये तो हमें नहीं पता, भूतकाल में जो हुआ उसे भूल जाओ क्योंकि उसे हम बदल नहीं सकते और भविष्य में क्या होगा वो हम देख नहीं सकते। तो इससे अच्छा यही है कि हमारे पास वर्तमान में ये जो पल है उसे ही क्यों न बेहतर बनाये। उसी पल को क्यों न हम इतना खूबसूरत बनाये कि आने वाला पल और वर्तमान अपने आप ही बेहतर हो जाये और आप का जीवन सवर जाए इसीलिए बस। आप को हमेशा हँसते मुस्कुराते हुए खुश रहना और खुशियाँ बाँटते रहना चाहिए प्रभु तुम्हारे साथ है ।
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