हां शायद यह सच है, न जाने क्यों कभी कभी ख्याल आता है कि इंसान अपनों से ज्यादा दुनिया की चिंता क्यूं करता है वो अपनों से ज्यादा दुनिया क्या बोलेगी क्या सोचेगी उसकी चिंता क्यूं करता है ? इंसान दुनिया की नज़रो में क्यूँ बड़ा बनना चाहता है , वो अपनों की फ़िक्र छोड़ न जाने क्यों दुनिया की परवाह करने लगता है हालांकि वो जिंदगी का सफर अपनों के साथ ही तय करता है फिर भी वो अपनों से ज्यादा दुनिया को एहमियत क्यूं देता है? इंसान के बुरे वक़्त में या अच्छे वक़्त में इंसान के उसके अपने ही तो साथ देते हैं ,दुनिया कहां हमें देखने आती है या साथ देने आती है।शायद यह सच है कि इंसान कभी कभी दुनिया को खुश रखने के चक्कर में अपनों को ही दुखी करता रहता है ,हमारा कहने का तात्पर्य यही है कि अगर हम सही रास्ते पर हैं और सच्चे दिल से काम करते हैं और आगे बढ़ते हैं तो हमें कभी भी दुनिया की, समाज की फ़िक्र नहीं करनी चाहिए बस हमें हमेशा हँसते मुस्कुराते हुए खुश रहना चाहिए और खुशियां बांटते हुए ज़िन्दगी को जीना चाहिए l
आखिर अपने तो अपने ही होते है क्यों सही है न !सभी इंसान एक जैसे नहीं होते सबकी अपनी अपनी सोच होती है !
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