प्रिय २०२१,
ये बताना मुश्किल हो रहा है कि हमे तुम्हारा कितनी बेसब्री से इंतजार है। यह कहना अतिशयोक्ति होगी पर ऐसा लगता है कि बस एक बुरा स्वप्न हो २०२० में देखी हुई त्रासदी! तुम आओ और सब कुछ समान्य हो जाए। जानते है वक्त का मरहम इस घाव को भी भर देगा पर जो टीस है वो शायद सदियों तक रहे।
यादें! वो अनमोल ख़ज़ाना है जिसे खोने का सोच कर भी डर लगता है। पर विडम्बना तो देखो तमाम अच्छी चीजे जोड़ दो पर इस साल को सब भूल जाना चाहते है। याद रखेंगे तो बस इसकी दी हुई सीख!
सच कहें तो डर अब भी लग रहा है.. यूँ ही २०२० के आने के पहले हम उसकी बलाएँ लेते थक नहीं रहे थे कि उसने वायरस की मार से पूरी दुनिया को दहला दिया। वायरस! वैसे तो हम इंसान पहले से ही नफरत, अलगाव, द्वेष, लालच, और ना जाने कितने ही तरीके के खतरनाक वायरस से पहले से ग्रस्त हैं.. उस पर एक और प्रहार। " मैं ही मैं हूँ, मुझसे आगे कुछ भी नहीं " सोचने वाले लोगों तक को उसने पलट कर देखने पर मजबूर कर दिया कि वो क्या खो सकते है?
अपना और अपनों का ख्याल रखना सिखाने वाले चाह कर भी उसे बद्दुआ तो नहीं दे पाती मैं.. हाँ बुरा जरूर लगता है जब देखती हूँ उसने कितनों से उनके अपने छिन लिए। उसने दिखा दिया कि कोताही हुई और पलक झपकते ही अपनों से दूर! उसने सीखा दिया कि मॉल, कपड़े, सिनेमा, रेस्टोरेन्ट, पार्टीज वगैरह के बिना भी जीवित रहा जा सकता है परन्तु अपनों के बिना जीना.. ये सोचना भी मुश्किल है।
चाहे कितनी भी बुरी से बुरी परिस्थितियां हो कुछ ना कुछ अच्छा सीखा ही जाती है। २०२० से सीखा हमने जितनी जरूरत हो बस उतना ही सहेजना.. दूसरों की मदद करना..संयम से रहना.. प्रकृति के दर्द को नजदीक से समझा। सूनी सड़कों ने एहसास दिला दिया कि लोगों से रौनक है.. अपने अंदर ही अंदर गुम रहने वालों सोच कर देखो जब बाहर कोई ना होगा तो दुनिया कैसे लगेगी? पूरे विश्व ने एक साथ एक मुसीबत का मिल कर सामना किया। सबने समझा प्रार्थना की असीम शक्ति को, महसूस किया सकारात्मक सोच की ऊर्जा को और पढ़ना सीखा मास्क के पर्दे से झाँकती सिर्फ आँखों की भाषा को!
लोग दौड़ पड़े अपने गांवों की ओर.. अपने घरों की ओर, अपनी मिट्टी की ओर.. अपनों से एक बार मिलने की छटपटाहट और जिन्दगी का क्या भरोसा सोचा कर गिले शिकवे दूर करने की पहल..।
सुनो २०२१! तुम वादा करो आओगे तो साथ खोई हुई खुशियां.. खोई हुई रौनक लाओगे!! देखो हम सीख लेंगे प्रकृति का सम्मान करना, अपनों को प्यार देना, आपस में दर्द बांटना वो भी बिना किसी को खोए! वादा करते हैं कि ऐसा ही होगा। क्योंकि अब मैं सोच भी नहीं सकती वो दर्द कैसा होता होगा जब अंतिम समय में भी अपनों को आप देख ना पाओ.. उन्हें छू ना पाओ.. उनके गले ना लग सको.. यह एहसास भी डराता है।
२०२० से मिली सीख को याद रखेंगे और उससे मिले गम को भूलने की कोशिश करेंगे। देखो ना चारो ओर मौसम भी बदल रहा है। जो सर्दियाँ ठण्डी होते हुए भी हमेशा नए साल आने की खुशियों वाली गर्माहट लिए आती थी.. वो आज डरा रही है। कल खिड़की से देखते हुए कुछ पँक्तियाँ मन में आई
देखो मौसम फिर बदल रहा है …
मौसम की गर्मी सर्दियों में ढल रही है..
पीले पत्ते गिर रहे..
जगह उनकी नए पत्ते ले रहे है ..
सुबह में एक अलग सी नर्मी,
सुखदायक लगती स्पर्श की गर्मी
भीषण दोपहर का सूरज ठंडा हो गया ,
शामें ज़रा कुरकुरी महसूस हो रही है
हां, इस बार भी
ये सर्दी पिछले सर्दियों की तरह ही होगी
लेकिन शायद से कुछ अलग भी होगी
सब कुछ पहले की तरह नहीं होगा ...
नए अनुभवों,
नए मित्र,
नई संवेदनाएं,
नई जानकारी,
रास्ते का पता
और मैं मंज़िल की ओर,
स्पष्ट दृष्टि के साथ
बेहतर समझ के साथ
सबके समक्ष
कोई गीत गुनगुनाते हुए
जो मैंने भी पहले कभी नहीं सुना होगा
एक ऐसा गाना जिसने मेरी उम्मीदों को,
मेरी हिम्मत को,
नए पर लगा दिए हो...
हाँ मौसम बदल रहा है
और बदल रहा है हमारा मिजाज
मौसम के हिसाब से।
सुनो २०२१,
हमारे गीतों से वेदना कम करने, तुम जरूर आना।
बच्चे पार्क को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे,
इक उम्मीद में, तुम जरूर आना।
बिछड़े हुए यार, गले मिलने को बेकरार, तुम जरूर आना।
यायावर कई सामान बाँध है तैयार, तुम जरूर आना।
बड़ी उम्मीद से कह रहे अलविदा २०२० !
२०२१ तुम नई खुशियां लाना।
तुम्हारे इंजतार में,
सुषमा तिवारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
अनुपम👌👌
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