कहते हैं विषय में रुचि हो तो सीखने में भी मन लगता है। पर यहां बात कुछ अलग थी। नए कॉलेज में आनर्स के लिए अपना मनपसंद विषय चुनने के बाद पाखी का बिलकुल मन ना होते हुए भी उसने एक सहायक विषय के तौर पर हिन्दी चुनी थी। पहले पहल तो कारण इतना ही था कि साथ की सारी सखियों ने चुना था तो उसने भी चुन लिया। साथ की मतलब उसके मोहल्ले की लड़कियां। छोटा शहर और उनका गर्ल्स कॉलेज। छोटे शहरो में अलग बात होती है, उनके छोटे मोहल्लों में बने बड़े बड़े याराने और दो सड़क पार किया तो आ गया कॉलेज। समय की बर्बादी बिल्कुल नहीं और हर चेहरा अपना सा लगता है।
खैर! लड़कियों की दलील यही थी कि हिन्दी की प्रोफेसर उनके बगल वाले मोहल्ले की है तो नोट्स लेने में काफी सहूलियत होगी। हिन्दी की प्रोफेसर डॉ आशा, पाखी ने जब उन्हें पहली बार देखा तो देखते रह गई थी। पता नहीं कौन सा सम्मोहन था? उनके चश्मे के उस पार उनकी गहरी आँखों से पाखी की नजर हटती ही नहीं थी। वो खुद नहीं समझ पाती की मनोविज्ञान के लेक्चर खत्म करके आशा मैम की आँखों में वो कौन सा मनोविज्ञान खोजती थी।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
क्रमश: नही लिखा आपने, कहानी रोचक होगी, आगाज से लगता है,
आपके लेखन हमेशा उम्दा होते हैं🙏👌
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