पलक का जोश सातवें आसमान पर था। तीन महीने से शॉपिंग बंद ही नहीं हुई। मम्मी को भी उसने बुलवाया लिया था कि ताकि गुड्डी को सम्भाल ले तो वह बाजारों का चक्कर काट आए। मायके में पड़ने वाली शादियों में भी पलक इतना खुश नहीं हुई थी। भाइयों की शादी में पलक छोटी थी। अब अपने पलक अपने पैरों पर खड़ी थी और बड़ी दीदी की बेटी की शादी के लिए बहुत उत्साहित थी। दीदी पलक से बहुत बड़ी थी, इतनी की उनकी बिटिया माही, पलक से सिर्फ पांच साल ही छोटी थी। दीदी के तीनों बच्चे पलक के दोस्त की तरह रहते और मासी में उनकी जान बसती थी। पलक का हँसमुख स्वभाव ऐसा की हर समारोह की जान बन जाती। दीदी के घर बहुत मजा आने वाला था क्योंकि भाभीयां भी वही मिलेगी। पापा के जाने के बाद पलक का मायके जाने का बहुत कम मन होता। पापा की लाडली को घर उनके बिना काटने को दौड़ता।
पलक ने बड़ी भाभी से कह दिया था कि मम्मी की शॉपिंग वो खुद कर देगी। आखिर समय भी कम मिलने वाला था मम्मी को वापस लौट कर। पापा के जाने के बाद मम्मी ने कभी पसंद से शॉपिंग की ही नहीं। ये पहला शादी समारोह था जो वह अटेंड करने वाली थीं। पलक के कहने पर उन्होंने एक हल्की सिल्क की गुलाबी रंग की साड़ी ले ली थी। गुलाबी रंग पापा को बहुत पसंद था पर उनके जाने के बाद कभी नहीं पहना था। सब अजीब निगाहों से देखते थे। फीके रंगों की फीकी जिंदगी को अब वो स्वीकार चुकीं थी। इस बार पलक की जिद पर साड़ी ले ही ली।
"नानी है आप! आपको खास लगना है मम्मी, ये आप बारात के दिन पहनना "
उन्होंने जिद भी नहीं की। आखिर मन का एक कोना यही चाहता भी था।
मम्मी वापस चली गई सारी तैयारियाँ करा कर। तय समय पर पलक दीदी के घर पहुंच गई। अगले ही दिन भाभियों के साथ मम्मी भी आ गई। पूरा माहौल खुशनुमा हो चला था। माही के भी पैर जमीन पर नहीं थे। पलक मासी के होते धमाल कैसे ना हो।
पलक की भाभियों को जरूर यह महसूस होता कि पलक हर समारोह में उनकी उपस्थिति नगण्य करवा देती थी। उपेक्षित सा महसूस करती भाभियों ने फिर भी चेहरे पर यह भाव आने नहीं देने की असफल कोशिशें जरूर की थीं। अच्छे से मेंहदी हल्दी के सारे समारोह अच्छे से संपन्न हो गए।
बारात वाले दिन सारे बहुत अच्छे लग रहे थे। पार्लर से माही के साथ-साथ पलक भी तैयार हो कर आ गई।
पर ये क्या? मम्मी पर नजर पड़ते ही पलक के चेहरे की सारी रौनक छू हो गई। मम्मी ने एक फीकी सी क्रीम कलर की साड़ी पहनी थी जिस पर ब्लैक रंग का उलझा सा काम किया हुआ था। पलक ने दुल्हन बनी माही को छोड़ मम्मी के पास आई।
" मम्मी! यह क्या है? क्या पहना है आपने? और पिंक साड़ी कहां गई?"
पलक को बहुत गुस्सा आ रहा था मम्मी की साड़ी को देखकर।
" क्या रखा है साड़ी में? कौन मुझे देख रहा है यहां.. तू भी किन बातों में उलझ गई.. देख तो कितनी प्यारी लग रही है.. अपनी शादी से भी सुन्दर! नूर दिख रहा है दामाद जी के मौजूदगी का "
" मम्मी सच! मैं बच्ची दिखती हूं जो फुसला रहीं है आप? सच बताइए क्यों नहीं पहना आपने "
रोकते रोकते भी आंसू उनकी आँखों के कोनों से ढुल आए। फिर चेहरे पर सपाट भाव लाकर बोली
" बड़ी बहू ने मना किया और ब्लाउज बनवाया ही नहीं। फिर यह साड़ी ला कर दी.. अब तू बात आगे बढ़ा मत.. जा बारात का समय हो गया है "
पलक ने मम्मी को वहीं छोड़ भाभियों का रुख किया।
" दिव्या भाभी! आपने मम्मी की गुलाबी साड़ी का ब्लाउज क्यूँ नहीं बनवाया.. ये कैसी साड़ी पहनी है उन्होंने? क्या उनकी इज़्ज़त में आप लोगों की इज़्ज़त नहीं? "
" पलक जी! आप भी किन बातों को लेकर अपना मेक अप खराब कर रही हैं.. ये समय ईन बातों का नहीं है "
कहकर वो सेल्फी लेने में तल्लीन हो गई।
पलक और गुस्से में आ गई।
" भाभी मुझे जवाब चाहिए.. पापा के जाने के बाद उनके चेहरे से मुस्कान जैसे गायब है.. बात क्या है आखिर? "
" ओह! तो सीधा सीधा कहिये मांजी ने प्लान बनाया है हमे यहां बुलवा कर दोनों बेटियों से बेइज्जत करवाने का.. नहीं मन था तो पहले बोलती.. एन टाइम पर चुगली कर क्या साबित करना चाहतीं है वो? "
" भाभी आप नाहक ही ओवर रिएक्ट कर रही है? मैंने सिर्फ साड़ी का पूछा! "
" हाँ तो वही बात तो जड़ है.. क्या सोच कर आपने साड़ी खरीदी की समाज के लोगों को बता सके कि लड़के तो नालायक है.. बाप के जाने के बाद माँ को शादी में जाने के लिए एक साड़ी के लिए बेटी के घर पर निर्भर होना पड़ा। और उस पर चमकती हुई गुलाबी साड़ी? क्या समाज का लिहाज़ नहीं है उन्हें? देखिए हमसे जो बन पड़ेगा हम वैसे रखेंगे उन्हें आपको अपना पैसा और रुतबा दिखाने की कोई जरूरत नहीं है "
भाभी की बाते सुनकर पलक का दिमाग फटने को था।
" ऐसे कैसे बोल सकती है आप? क्या मैं इतनी पराई हूं? हज़ारों बार मुझसे मांग मांग कर मंहगी साड़ियां आपने भी मँगवाई होगी तब तो कोई खोट नहीं था। और समाज तय करेगा मम्मी क्या पहनेंगी? पापा के जाते ही क्या उनकी जिन्दगी खत्म हो गई? भाभी! वो इंसान है कोई सामान नहीं है। उनके अंदर भी भावनायें और इच्छायें होती है। आपलोग वैसे भी अपने अपने काम में मस्त रहते हो और वो एक कोने में पड़ी रहती है। सिर्फ अच्छा खाना पहनना ही औलाद का सुख नहीं होता है। कोई दो बात तक नहीं करता उनसे ढंग से.. जैसे उनके भी दुनिया से जाने का इन्तेज़ार हो रहा हो। मैं इस शादी समारोह के बाद मम्मी को अपने घर ले जा रही हूं। मेरे भाइयों के मुँह पर तो कब की टेप लग चुकी है उन्हें क्या बोलू पर बता दे रही हूं आप सब को अब बोल देना समाज को बेटी के घर की साड़ी नहीं बेटी के घर ही चलीं गई। मुझे कोई फर्क़ नहीं पड़ता है। "
तमतमाते हुए पलक लौट आई माही के पास। माही के चेहरे की मायूसी बता रही थी कि वो बिल्कुल नहीं चाहती थी कि खुशियो में कोई बाधा आए। पलक ने इशारे से उसे निश्चिंत रहने को कहा। बारात आई और सारे रीति अच्छे से बिता कर दुल्हन की विदाई भी हो गई।
बारात जाने के बाद पलक माँ के पास गई। बड़े भैया भी पास ही बैठे थे।
" मम्मी एक विदाई और होगी.. अब आप मेरे साथ चलोगे। क्या मेरा आप पर कोई हक नहीं? ना मैं अपने कर्तव्यों से चुकुंगी ना अपने अधिकारों से.. आप चल रही है मतलब चल रही है।"
इससे पहले कि मम्मी कुछ कहती, बड़े भैया बोल पड़े
" पलक माफ कर दे। मैं मम्मी का गुनाहगार हूं। उन्होंने कभी कोई शिकायत की ही नहीं और हमने भी कभी पूछा ही नहीं। इनकी आखों में छुपी उदासी कभी देखी ही नहीं। अपने भाई को एक मौका दे और निश्चिंत रह, मैं अब मम्मी को उनकी बेटी बन कर दिखाऊंगा।"
पलक ने मम्मी का हाथ पकड़ तो मम्मी लिपट कर रो पड़ी।
" मैं कितनी खुशनसीब हूं बेटा! भगवान सब को बेटी जरूर दे जो हमे हमारी ममता सूद समेत लौटा देती है "।
-सुषमा तिवारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
So touching nd true face of society.
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