मनीष की उस दिन रिसर्च सेंटर में जरूरी मीटिंग थी। बेहद खास इसलिए घर से बाहर निकलना ही था। वर्ना सब कुछ वर्चुअल ही होता था। खाना पीना, घूमना फिरना.. सब वर्चुअल दुनिया में कैद हो कर रह गई थी। दुनिया ने टेक्नोलॉजी को अपने कदमों में रखा हुआ था। वैसे भी बाहर का वातावरण घूमने लायक लोगों ने छोड़ा भी नहीं था।
सन 2090 है लेकिन सब कुछ वैसा नहीं रह गया था जैसा सबने सोचा था। सब कुछ खत्म हो गया.. रह गए थे बस पुरुष और आधुनिक टेक्नोलॉजी!
'वो नीली फाइल कहाँ रख दी है?' सोचते हुए मनीष को चक्कर आ रहे थे।
"उफ्फ! ऑफलाइन कुछ सहेजना कितना मुश्किल है.. पर वूमेनाज ग्रह के पृथ्वी पर अटैक के बाद कुछ चीजे हमे ऑफलाइन करनी पड़ती थी ताकि उनकी नजरों से बचा जा सके।"
" मनीष! बेटा कहाँ हो?" दादू की आवाज सुनकर मनीष उनके कमरे में पहुंच गया। उनका टैब काम नहीं कर रहा था जिसपर वो अपने ज़माने की मूवी देख रहे थे।
" दादू! मैं रिसर्च सेंटर जा रहा हूं.. जरूरी काम है.. और आप आज एल्बम ही देख लो.. आज वूमेनाज वालों ने 'नो नेटवर्क' की घोषणा की है.. अब इसे सजा समझिए या मजा.. बस काम चलाएं"
दादू का चेहरा उतर गया था।
मनीष क्या कर सकता था? वह सोचने लगा।
दादू ने अपने समय की एक भयानक वायरस त्रासदी का जिक्र करते थे.. 2020 में दुनिया थम गई थी। वो बताते थे कि किसी ने नहीं सोचा था ऐसा कुछ होगा पहले किसी ने विश्वास ही नहीं किया फिर डेढ़ दो साल में उससे बचने के लिए वैक्सीन बना ली थी। मास्क का फैशन तभी आया था। दादी कितने सुंदर मास्क पहनती थी.. एल्बम की तस्वीरें आज भी यादे ताजा कर देती है। फिर धीरे धीरे सब भूल गए वो सब। दादू कहते हैं हर सौ साल में ऐसी त्रासदी आती है..पर जब लोग इतनी तेजी से विकास कर रहे थे तो भला त्रासदी सौ साल का इन्तेज़ार करती?
दो साल पहले दुनिया ने तब तक कि सबसे भयानक त्रासदी झेली थी। आसमान से बरसा एक वायरस जिसने लील लिया धरती की सारी औरतों को। अब हम भी जल्द ही खत्म हो जाएंगे.. हम मतलब मनुष्य प्रजाति। सृष्टि को आगे बढाने वाली प्रजाति पर सदियों हमने बहुत अत्याचार किए.. इसलिए वो चलीं गई हमे छोड़ कर। इससे पहले कि हमारे वैज्ञानिक कोई आविष्कार करते.. कोई तरीका निकालते पृथ्वी पर जीवन कृत्रिम तरीके से आगे बढ़ाने का हम पर वूमेनाज ग्रह ने हमला कर दिया। आश्चर्य सिर्फ औरते ही थी उस ग्रह पर। अति विकसित प्रजाति.. दिखने में हमारी ग्रह की महिलाओं जैसी कुछ कुछ पर स्वाभाव से क्रूर.. माँ जैसा कुछ भी नहीं उनमे और शायद हमे उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। वो यहां क्यों आए किसलिए आए पता नहीं पर शायद जीवन की खोज में अंतरिक्ष में गए हमारे लोगों ने ही कोई रास्ता उन्हें भी सूझा दिया होगा। उन्होंने आते ही सारे स्पेस रिसर्च सेंटर पर क़ब्ज़ा कर लिया था, साथ ही सारे देशों के प्रतिनिधियों को हटा कर अपनी वूमेनाज लेडी को बैठा दिया था। विश्व के बड़े से बड़े देश की सेना उनके सामने टिक नहीं पाई शायद इसलिए क्योंकि हमारे पास तो माँ का आशीर्वाद भी नहीं बचा था। ये संख्या में कम थी पर अत्याधुनिक हथियारों से लैस.. हमारे परमाणु बम तो पृथ्वी पर उनके कदम रखते ही निष्क्रिय हो चुके थे।
मनीष अपने विचारो के पिटारे से बाहर आया।
उस दिन मेडिकल रिसर्च सेंटर में उसकी एक मीटिंग थी। घर में सिर्फ वो और उसके दादू थे। उसके पापा मिलिट्री में थे जो वूमेनाज के खिलाफ युद्ध में शहीद हो चुके थे और माँ, दादी और बहन उस नामुराद वायरस की भेंट चढ़ चुकीं थी। वो पेशे से डॉक्टर था और वूमेनाज द्वारा दिए गए टास्क पर चुप चाप काम कर रहा था। लेकिन इसी बीच उनके सीक्रेट ग्रुप ने कृत्रिम शिशु बनाने की कोशिश जारी रखी थी जिससे सम्बन्धित सारी जानकारी वो ऑफलाइन छुपा कर रखते थे।
" दादू मैं शाम को मिलता हूँ "
" ठीक है मनीष.. ख्याल रखना"
तेज कदमों से वो अपनी कार में बैठा और कार को रिसर्च सेंटर का अड्रेस फ़ीड करके खुद पिछली सीट पर बैठ गया अपनी फाइल लेकर।
कार अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रही थी कि उसे अचानक जोरों का झटका महसूस हुआ। कार किसी चीज से टकराई थी। अमूमन ऐसा होता नहीं था क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस गाड़ियां ऐसे एक्सीडेंट से बचाव के लिए पहले से ट्रेन थी, सुरक्षा के पूरे साधन मौजूद थे इसीलिए उसे सिर्फ हल्का सा झटका महसूस हुआ। दरवाजा खोल कर वह बाहर आया तो एक नीली कार उसकी कार से टकराई हुई थी। मनीष ने कार में ऑटो रिपेयर का बटन दबाया और उसकी नीली कार की ओर बढ़ गया। नजदीक जाकर देखा तो उसके होश उड़ गए।
उसमें एक वूमेनाज बैठी थी, मतलब उसकी मौत तय थी।
वूमेनाज पुरुषों से सख्त नफरत करती थी यह बात किसी से छिपी नहीं थी। पुरुषों को उनके राज में किसी तरह की कोई आजादी नहीं थी, ना तो वो वुमेनाज को सीधी नजरों से देख सकते थे और ना ही उन्हें छू सकते थे बाकी बातें तो बहुत दूर की थी।
ऑटो ड्राइविंग के जमाने में कार की स्टियरिंग व्हील पर सिर टिकाए हुए वूमेनाज उसे थोड़ी रहस्यमयी सी लगी। बशर्ते धरती से मानवता खत्म हो रही थी फिर भी अंदर थोड़ी इंसानियत तो बची ही हुई थी। उसने अपनी जान की परवाह ना करते हुए उसे छूकर देखा कि वह ठीक तो है! उसके छूते ही वह एक झटके से बगल वाली सीट पर लुढ़क गई। मनीष के होश फाख्ता हो गए। दूर-दूर तक सड़कों पर कोई नहीं दिखाई दे रहा था क्योंकि कर्फ्यू का दिन था और सिर्फ स्पेशल परमिशन लेकर लोग बाहर निकल सकते थे। वह क्योंकि उनकी संस्था में काम करता था तो उसे आने जाने की छूट थी। अगल बगल नजर घुमाकर किसी को ना पाकर मनीष ने उसे , नीली गाड़ी से निकालकर अपनी गाड़ी में ले आया और यह तय किया कि वह हेल्प सेंटर पर कॉल करके इस घटना की जानकारी दे देगा। वह उसे अस्पताल नहीं ले जा सकता था क्योंकि उसे नहीं पता था कि इनका इलाज मनुष्य वाले अस्पताल में होता है या कहीं और? इस तरह की घटना उसने पहली बार देखी थी कोई वुमेनाज इतनी कमजोर नहीं थी कि किसी एक्सीडेंट में घायल हो सके.. यह कौन थी?
उसे उसकी गाड़ी से निकालकर मनीष ने अपनी कार में बिठाया ही था कि वो सीधे उठ कर बैठ गई।
" ये क्या.. मतलब.. तुम.. आप तो बेहोश थी.. मैं बस कॉल करने ही वाला था.. सच" मनीष के हलक से आवाज कम घबराहट ज्यादा निकल रही थी।
" पहले गाड़ी निकालो यहां से.. फिर बात करते है " उस वुमेनाज ने सहजता से कहा तो मनीष ने बिना बहस किए गाड़ी को ऑटो मोड से हटा कर खुद ड्राइविंग सीट पकड़ ली।
" कहाँ जाना है?"
" डिवाइस ऑन करो.. मैं रूट फ़ीड करती हूँ.. वैसे मेरा नाम सारा है"
सारा ने हाथ बढ़ा कर मनीष का फोन मांगा। मनीष ने बिल्कुल सवाल नहीं किया कि तुम अपना फोन या डिवाइस क्यों नहीं इस्तेमाल कर रही है। वह अभी तक जिंदा था बस उसके लिए यही काफी था। सारा उम्र में कुछ बीस साल की लग रही थी।
" गाड़ी को ऑफलाइन मोड पर लो "
सारा के कहने पर मनीष ने बिना सवाल फिर वही किया। इस ज़माने में ऑफलाइन होकर गाड़ी चलाना.. ये कोई कोशिश भी नहीं करता था। मनीष ने मोबाइल देखा.. रूट शहर से बाहर का दिखा रहा था।
शहर से बाहर निकलते ही मनीष ने पूछा
" अब कहाँ?"
" तुम कोई ऐसी जगह जानते हो जहां कोई आता जाता ना हो.. यानी कि मेरी मॉम 'दी ग्रेट डिलीयाना' को भी इंट्रेस्ट ना हो वहाँ क़ब्ज़ा करने का.. फिर बैठ कर बात करते है "
मनीष ने अचानक ब्रेक लगाया।
" तुम.. मतलब आप प्रेसिडेंट की बेटी है?"
" ये क्या तुम आप तुम लगा रखा है.. तुम मुझे तुम बोल सकते हो.. और प्रेसिडेंट की बेटी होना सिर्फ मेरी पहचान नहीं है.. मेरा नाम सारा है और मैं एक जूनियर साइंटिस्ट्स हूं.. समझे! चुपचाप जैसा बोला वैसे करो.. नहीं तो मेरे मॉम के गुलामों ने देख लिया तो दोनों मारे जाएंगे "
सारा के कहते ही मनीष को समझ आ गया था। विद्रोह, नाराजगी.. कुछ तो था जो ये बाकी वुमेनाज से अलग थी। वर्ना अब तक किसी लेजर हथियार से उसका कत्ल कर चुकी होती।
" यहां से कुछ मील की दूरी पर एक बच्चों का पार्क है.. जिसमें एक शू हाउस है.. वो जगह किसी जीपीएस नेविगेशन में नहीं दिखते है.. तबाही से पहले.. मेरा मतलब तुम लोगों के आने से पहले मेरा और दादू का सीक्रेट हाइड आउट था।"
" ठीक है वही चलते है"
मनीष सारा को लेकर वहाँ पार्क गया और सारा के कहने पर गाड़ी को झाड़ियों में छुपा दी। शू हाउस के अंदर एक जगह बैठ कर सारा ने आगे की बाते बतानी शुरू की।
" तुम मॉम के इंस्टिट्यूट में काम करते हो मुझे पता है.. मैं छह महीनों से तुम्हें चुपके चुपके देख रही हूँ.. तुम्हारी हरकतें.. तुम्हारा सीक्रेट प्रोजेक्ट सब पता है मुझे.. घबराओ मत.. सिर्फ मुझे"
उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ती देख सारा ने स्पष्ट किया।
" दरअसल मनीष मैं तुम्हें पसंद करती हूं.. ये अजीब लगेगा शायद तुम्हें दो एलियंस के बीच संबंध पर सच मेरा प्लान कुछ ऐसा ही है.. देखो तुम भी अपनी दुनिया बचाना चाहते हो और मैं भी.. तो कोशिश हमे मिलकर करनी होगी"
"तुम कहना क्या चाहती हो? यह कैसे सम्भव होगा?... और तुम मेरी मदद कैसे कर पाओगी.. और उससे भी पहले मैं जानना चाहता हूं कि हमारी ही धरती क्यों? तबाही मचाने के लिए तुम्हें कोई और ग्रह नहीं मिला? क्या बिगाड़ा था पृथ्वी वासियों ने तुम्हारा? "
" इतने सारे सवाल मनीष! समय कम है हमारे पास.. मेरी मॉम तुम्हारा ये कृत्रिम शिशु वाला प्लान सफल नहीं होने देंगी.. उनके बहुत से जासूस काम कर रहे है.. तुम सोचो मुझे पता चल गया तो क्या किसी और को नहीं चलेगा.. वो मैं हूँ जिसने तुम्हें कवर करके रखा है "
मनीष ने अब हिम्मत करके सारा को ध्यान से देखा.. औसत ल़डकियों से कुछ लंबी.. गठा हुआ बदन, उनके ग्रह के यूनीफॉर्म में ढला हुआ.. हल्के लाल बाल, लाल सी रंगत, गहरी नीली आँखे.. कुल मिलकार वह बाकी वुमेनाज से ज्यादा खूबसूरत ही थी।
" तो कम से कम ये तो बता दो.. पृथ्वी ही क्यों?"
"ये कोई चुनने वाली बात नहीं थी.. पृथ्वी पर आना एक भयानक त्रासदी के बाद का परिणाम है"
" कैसी त्रासदी? अंतरिक्ष में या तुम्हारे ग्रह पर?"
" हमारा ग्रह खत्म हो रहा है.. शुरुआत ऐसे ही हुई जैसे तुम्हारे यहां.. पर हमारे यहां सदियों पहले महिलाओं ने पूरी दुनिया की बागडोर सम्भाल ली थी... अपने उपर होते अत्याचारों के बदले उनके दिलों में पुरुष प्रजाति के खिलाफ नफरत तो थी ही, धीरे-धीरे उन्होंने गर्भ में ही बालक भ्रुण की हत्या शुरू कर दी। वो पुरुषों को खुद से कमजोर करना चाहती थी। ममता, दया, प्रेम खत्म हो रहा था उनके स्वभाव से। फिर उन्होंने प्लान किया कि कृत्रिम भ्रुण बनाने की सफल परीक्षण करेंगे ताकि पुरुषों की जरूरत ही ना हो। उधर पुरुषों को इस बात का पता लग चुका था। उन्होंने भी ऐसा वायरस तैयार किया जिससे सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को दुनिया से हटा दिया जा सके। पर वो हमारी अत्याधुनिक महिलाओं से जीत ना सके। उच्चतम पदों पर आसीन महिलाओं ने उस वायरस बम को अंतरिक्ष में छुड़वा दिया जो एक उल्का पिंड के प्रभाव में आकर पृथ्वी की ओर मुड़ गया और तुम्हारे वायुमंडल से सक्रिय होते हुए जमीन पर पहुंच गया। हमारे ग्रह पर भी विद्रोह चरम सीमा पर पहुंचा तो हमारी सेना ने एक एक पुरुष को चुन कर मार डाला। मेरी माँ ने.. मेरे पिता को भी नहीं छोड़ा " सारा की आँखों में दर्द की लालिमा उतर आई और वही लालिमा मनीष की आँखों में क्योंकि वुमेनाज के आंतरिक परेशानियों के वजह से उसकी माँ भी उससे दूर हो गई थी।
सारा ने बात आगे बढ़ाई।
" अब मेरी माँ तुम पृथ्वी वासियों की मदद से वुमेनाज कृत्रिम भ्रुण बनाने का तरीका खोज लेंगी और तुम सब को मार कर इस ग्रह पर कब्जा कर लेंगे"
" और तुम.. तुम क्या चाहती हो?"
" मैं चाहती हूं कि हम दोनों मिलकर आपस में जीवन को आगे बढ़ाए.. मैंने माँ से सुना है कि अब जबकि कोई पुरुष हमारे ग्रह पर नहीं बचा तो जीवन हमारा भी संकट में है तो जो वुमेनाज पहले माँ बनेगी वो ही प्रेसिडेंट बनेगी.. अगर मैं प्रेसिडेंट बनी तो पृथ्वी वासियों को आजाद कर दूंगी। "
" ये इतना आसान नहीं होगा "
" पता है.. मैं वैज्ञानिक हूं.. मेरे पास कुछ रिसर्च है और कुछ तुम्हारे पास.. मिलकर कोशिश करते है.. हो ही जाएगा "
मनीष ने सारा की बातों को सुना और उसकी मदद करने का वादा किया। उसके बाद सारा मनीष के साथ उसके माँ के इंस्टीट्यूट में काम करने लगी। मनीष के पूछने पर कि प्रेजिडेंट उसे यहां काम करने की इजाजत देगी तो सारा ने बता दिया कि उसने डिलीयाना को यह बोल दिया है कि वह पृथ्वी वालों के साथ काम करके कुछ नया सीख रही है बस और साथ साथ उनपर नजर भी रख रही है।
धीरे-धीरे मनीष और सारा और करीब आने लगे। मनीष को उसका साथ अच्छा लगने लगा था। उसे यह भी खुशी थी कि उसकी वजह से पृथ्वी बच जाएगी।
फ़िर वह दिन भी आया जब दोनों ने मिलकर कृत्रिम शिशु बनाने की तकनीक खोज निकाली। जिसमें बराबर मात्रा में पृथ्वी वासी और वुमेनाज के गुणसूत्र डाले गए थे। एक नई प्रजाति का आविष्कार कर चुके दोनों खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। फिर सारा ने गर्भधारण किया। मनीष उसका ख्याल रखने लगा था।
" तुमने माँ को बताया?"
" नहीं.. तीन महीने हो जाने दो.. हमारे यहां छह महीने में ही बच्चा जन्म लेता है "
" पर अगर उन्हें पता चला कि तुम किसी लड़के को जन्म देने वाली हो तो क्या वो तुम्हें छोड़ेंगी?"
" तुम भूल गए.. मैं प्रेसिडेंट बनूंगी.. मैं निर्णय लूँगी.. मैं चाहती हूं दोनों ग्रह वासी अब मिल कर रहे.. दोनों ही प्रजातियां महत्वपूर्ण है स्त्री हो या पुरुष! दोनों एक दूसरे के पूरक है.. एक का भी अति उन्मादी होकर दूसरे पर राज करने की सोचना विनाश का कारण बन गया है.. अब हम अपनी अपनी गलतियों से सीख चुके है। प्रकृति के संतुलन के लिए दोनों का होना जरूरी है। मैं माँ से बात कर लूँगी "
मनीष ने सारा की बात मान ली। सारा के कहने पर ही उसने यह बात दादू को भी नहीं बताई क्योंकि खबर डिलीयाना तक पहुंचना खतरनाक हो सकता था।
मनीष ने सारी जानकारी एक फाइल में भरकर एक ड्राइव में भर दी जिससे बाद में बड़े पैमाने पर वैज्ञानिकों से साझा करके पृथ्वी को वापस जीवनदान दिया जा सके।
तीन महीने होने को आए थे। हॉस्पिटल के रूम में स्क्रीन पर सोनोग्राफी में मनीष नन्हें शिशु को देख रहा था जो सारा के गर्भ में जीवन की शुरुआत कर चुका था। मनीष की आँखे खुशी से भींग आई। बच्चा समान्य पृथ्वी वासी की तरह ही दिख रहा था वजन और लंबाई के हिसाब से।
" अब बता दो माँ से.. है तो माँ ही.. खुश ही होंगी"
"हम्म! वो कल अपने ग्रह के लिए निकल रही है.. मैं उनके आने के बाद बात करूँगी"
मनीष ने हामी भर दी।
अगले दिन इंटरनेशनल स्पेस सेंटर से वुमेनाज का अंतरिक्ष यान निकलने वाला था। मनीष सुबह से ही सारा का इन्तेज़ार कर रहा था। वो चाहता था कि डिलीयाना के जाने के बाद सारा को वो दादू से मिलाकर यह खुश खबरी दे। दोपहर तक सारा के नहीं आने पर मनीष को चिंता हुई.. कहीं प्रेसिडेंट को मालूम तो नहीं पड़ गया.. नहीं नहीं ऐसा नहीं हुआ होगा। सीक्रेट नंबर पर भी सारा का कॉल नहीं लग रहा था। उसने प्रेसिडेंट हाउस जाने का निर्णय लिया। यह जान पर खेलने जैसा कदम था पर आखिर ये उसके बच्चे का सवाल था साथ ही पृथ्वी के भविष्य का।
मनीष छिपते छुपाते प्रेसीडेंट हाउस तक पहुंचा तो देखा कि सारा एक गाड़ी में अपनी माँ के साथ एक गाड़ी में बैठ रही थी। गाड़ी का उसने कुछ दूर से ही पीछा किया। सारा के साथ रहते हुए कई तकनीक का पता चल चुका था जिससे वो वुमेनाज से खुद को सुरक्षित रख सकता था।
पीछा करते हुए उसने पाया कि गाड़ी इंटरनेशनल स्पेस सेंटर जा रही थी। अनजाने भय को दिल में लिए वो उसका पीछा कर रहा था।
स्पेस सेंटर के अंदर घुसने से पहले ही मनीष सारा के सामने आ गया। गार्ड्स ने मनीष पर हथियार तान दिए।
डिलीयाना ने इशारे से सब को हथियार नीचे करने को कहा। मनीष को आश्चर्य हुआ।
" कहो क्या बात है?" डिलीयाना ने शांत स्वर में पूछा तो मनीष सोच में पड़ गया।
" मुझे सारा से बात करनी है!"
" हम अपने ग्रह जा रहे है.. तुम उससे बात नहीं कर सकते हो"
" मेरा उससे बात करना जरूरी है.."
" नहीं वो नहीं कर सकती है"
" आपको पता नहीं है.. वो.. वो मेरे बच्चे की माँ बनने वाली है?"
"तुम्हारे? तुम पुरुषों का घमंड जाता नहीं ना.. वो उसका बच्चा है और मुझे पता है.. शुरू से "
" हाँ मानता हूं वो उसका बच्चा है पर है तो मेरा भी.. मुझे सारा से जवाब चाहिए "
" सारा ने सब कुछ मेरे कहने पर ही किया था.. ये मेरा ही प्लान है.. अपनी गलतियों को सुधारने का मौका.. पर तुम्हारे ग्रह के लिए नहीं अपने ग्रह के लिए.. चिंता मत करो ये बच्चा हमारे ग्रह का अगला प्रेसिडेंट बनेगा "
मनीष सारा को घूर कर देख रहा था। इतना बड़ा धोखा!!
" आप ऐसे नहीं जा सकते.. आगे इस प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए जिस जानकारी की जरूरत है वो मेरे पास ड्राइव में है.. उसके बिना आप कुछ नहीं कर पाएँगी "
" कौन सा ड्राइव? ये? "
डिलीयाना ने हाथ में एक ड्राइव दिखाई। मनीष के होश उड़ गये।
" सारा! बस एक बार जवाब दे दो प्लीज "
मनीष के गुहार लगाने के बाद भी सारा चेहरे पर निष्ठुर भाव लिए वहाँ से चली गई।
मनीष रोता हुआ जमीन पर बैठ गया।
उसके फोन पर एक मेसेज फ्लैश हुआ
" मुझे माफ कर दो मनीष.. शायद शुरुआत में यह धोखा था पर अब मैं सच तुमसे प्यार करती हूं और तुम्हें मरता हुआ नहीं देख सकती हूं.. मेरी मजबूरी समझना.. मुझे माफ करना.. मेरी कोशिश होगी कि पृथ्वी को कुछ ना हो.. अब ये मेरा भी घर है.. वादा करती हूं अपने और तुम्हारे बच्चे का ख्याल रखूंगी "
मनीष आसमान में अंतरिक्ष की ओर जाते हुए उडन तश्तरी को देखता रह गया। एक मुसीबत आसमान से बरसी थी और एक बार फिर आसमान उसके अरमानो को निगल गया।
©सुषमा तिवारी
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