बीज पड़ते ही किसान देखने लगता है
उसके भविष्य के सपने
किसी तरह बस रोपाई
अच्छे से हो जाए
छोटी सी पौध
लहलहाती फसलों में बदल जाए
अंकुर निकलते ही पूछती है हरियाली
बाबा क्या जरूरी है
किसी और खेत में रोप दिया जाना?
हां बिटिया! वह बड़ा खेत होगा
जहां तुम सुनहरी फसलों में बदल जाओगी जहां तुम अन्न बनकर
सबके काम आओगी
पर बाबा! अगर यूं हटाने और रोपने से
मैं सूख गई तो ?
नहीं बिटिया ख्याल रखेंगे कि
तुम्हें उचित पानी में बोया जाए
मैं देख आया हूं वह खेत
उपजाऊ मिट्टी और
पानी का पूरा इंतजाम है
पर बाबा क्या कभी सोचा है
अनजाने आने वाली कोई बाढ़
अगर मुझे डूबा ही दे तो?
बेटा मैं किसान हूं
मैं नियति के भरोसे ही फसल उगाता हूं
उस फसल का भविष्य
उसकी नियति ही तय करती है
मैं मजबूर हूं
किसान की फसल तो दूसरों का पेट भरती है।
Comments
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बेहतरीन सृजन दी
Nice imagination
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