एक मूवी का डायलॉग सुना था कि जब हम एक दूसरे के लिए सोचना छोड़ देते है उसी पल मानवता मर जाती है तब दिल में आया कि हाँ सही में कैसे कोई सिर्फ खुद जीने के लिए दूसरों की परवाह करना छोड़ सकता है? अगर दुनिया खत्म हो भी रही है तो कैसे किसी को आँखों के सामने जानबूझकर मरता छोड़ सिर्फ और सिर्फ अपनी जान की सोच सकता है?
कोरोना खतरनाक है। पर क्या इतना खतरनाक है कि किसी की मदद के लिए सोचते वक्त हम संवेदनशून्य हो जाए?
कुछ रोज से कई न्युज अंदर तक हिला देती है। उफ्फ! हम ऐसा जिंदा रह कर भी क्या करेंगे? वो मुश्किल से 25 साल की औरत तीन बच्चों के साथ उतर प्रदेश के एक गाँव के बगीचे में रह रही है। दिल वालों की दिल्ली में मजदूर पति को कोरोना में खो दिया। अपने मरते हुए पति की आखिरी शक्ल भी ना देख सकीं क्यों? क्योंकि उसके परिवार से एक कोरोना पीड़ित था और पड़ोसी उसके बच्चों को कुछ देर देखने के लिए भी राजी नहीं थे। अस्पताल में दुधमुंहे बच्चे के संग नहीं जा सकते हैं। उसके बच्चे जो इतने छोटे है कि उन को पता भी नहीं है कि पिता कहां गए और अब इस संवेदनहीन दुनिया में उनका क्या होगा।
दूसरी घटना मायानगरी मुंबई की जहां नवी मुंबई में एक फेमस अभिनेता जो अब बेरोजगार था और घर का किराया भी नहीं दे सकता है अपने हालातों से तंग आकर फांसी लगा लेता है। पत्नी चिल्ला चिल्ला कर पड़ोसियों से मदद मांगती है ताकि वो कुर्सी पर चढ़ कर पंखे से लटके पति को उतार दे। पर कोई नहीं आया ये सोच कर की कोरोना हो सकता है। सामने खड़े होकर देखते रहे। बाद में चौकीदार ने आकर मृत शरीर उतारा।
सवाल यही है कि क्या मरते हुए को क्षण भर के लिए छू कर बचा लेने से मर जाते? और ऐसे जिंदा बच भी गए तो क्या आँखों के सामने उनके चेहरे नहीं घुमेंगे?
ऐसी कई घटनाएं है। हम बस खुश है कि हम सुरक्षित है हम बचे हुए है पर मानवता जरूर शर्मशार होगी अगर संवेद हीन होकर जिंदा रह भी गए तो। जिस क्षण हम एक-दूसरे के लिए सोचना बंद कर देते हैं, उसी क्षण हम अपनी मानवता भी खो देते हैं।
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