वो अब कभी कभार ही दिखाई देती थी चाल वालों को। ऐसे तो दिन भर यहाँ वहाँ दिखती थी , हाथ में लम्बी चोटी घुमाती हुई... पर अभी सब को पता चल गया था कि उसका आदमी विदेश से आया हुआ है। क्योंकि उसके आते ही वो घर से निकलती ही नहीं थी या फिर निकलती भी तो जिंस पर लम्बी बाजू वाला टॉप, बहुत छोटे बाल और काला चश्मा चढ़ा कर बाहर जाती। बच्चों के बस स्टॉप वाली, उसकी नई सहेली कई दिन से देख रही थी कि वो उसे नजरअंदाज कर चली जाती थी। फिर एक दिन वो उसकी नजरों में आ गई
" क्या बात है हिरोइन! तू तो अभी पहचान ही नहीं रही अपन लोग को.. मेरे को मालूम है ये तू अचानक इतना टीप टाप होकर क्यों घूम रही है.. ये विदेशी लोग माफिक छोटे बाल.. जिंस टाप.. हाँ "
" क्या मालूम तेरे को?"
" तेरा आदमी घर पे है ना? सुना बाहर गांव से आया हुआ है आजकल "
" नहीं रे! उसको नहीं फरक पड़ता मैं जिंस टाप पहनूँ या कुछ और पहनूँ या ना पहनूँ "
" फिर काय कुं पहनती?"
" क्योंकि मैंने.. मैंने बाल छोटे किए ना तो जिंस टाप पर चल जाता है "
" और काय कुं छोटे किए?"
थोड़ा घबरा कर उसने अपने टॉप की लम्बी बाजू से हाथ पर चोट के निशान को अच्छे से ढकते हुए अपने सूखे हलक से कहा
" क्योंकि मेरा आदमी घर पे है ना!"
©सुषमा तिवारी
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