"जिज्जी! मुझे लगा तुम्हारी बहू ने वरमाला के वक्त असली गहने पहने थे। हाय! कैसे जगह ब्याह दिया लल्ला को? शादी में नकली गहने कौन देता है बेटी को" चाची सास की बाते राखी के कान में लावा बन कर पिघल रही थी। उस पर उसके सास की व्यंग भरी मुस्कराहट ने मुँह दिखाई की सारी खुशियां छू कर दी थी।
राखी मध्यम वर्गीय परिवार से होनहार और पढ़ी लिखी लड़की थी। पिताजी दहेज विरोधी थे। खुद अपने जीवन में अपना या परिवार के किसी भी भाई का दहेज ले कर शादी नहीं की थी। जिंदगी की सारी पूंजी बच्चों की पढ़ाई लिखाई ही थी। ल़डकियों को भी खूब पढ़ाया था और बस यही इच्छा थी कि भले घर में शादी हो जाए और बच्चियां सुखी रहे। रूप रंग और हर गुण से धनवान राखी के लिए बड़े शहर का रिश्ता लाई थी इंदु मौसी। वैसे तो इंदु मौसी ये रिश्ता अपनी बिटिया के लिए देख रही थी पर कुंडली ना बैठी। ये सोच कर की इतना अच्छा रिश्ता हाथ से क्यों जाए भला तो राखी की बात चला दी। लड़के वालों को राखी बहुत पसंद आई और सबसे बड़ी बात लड़के के पिता कट्टर दहेज विरोधी। वो सीधे तौर पर इसे भीख माँगना कहते थे। उल्टा उन्होंने राखी के पिता से कहा कि लड़की दो जोड़ी में विदा करे। अगर कोई सामान दिया तो मैं वो किसी गरीब बच्ची की शादी में दान कर दूँगा। राखी के पिता काफी प्रभावित हुए। राखी के भावी पति संजय के भी ख़यालात ऐसे ही थे। राखी खुद को बहुत खुशकिस्मत मान रही थी कि ऐसा परिवार मिला। राखी के पिता ने सोचा जब दहेज की मांग ही नहीं तो झूठ मूठ का अपने उपर बोझ डाल कुछ नहीं करूंगा। यथा शक्ति फर्निचर, कपड़े, प्रेम से ससुराल के घर भर के लोगों की बिदाई, चांदी कांसे के बर्तन जो उसी माँ ने संजोए थे, साथ ही साथ बारातियों का भरपूर स्वागत सत्कार भी किया। संजय के पिता भी काफी अच्छे इंसान थे। बिदाई के वक्त उनका ये कहना की हम तो दान ले जा रहे है शुक्रिया आपका कन्यादान के लिए, राखी के पिता भाव विह्वलित हो गए थे।
ससुराल आते ही राखी ने देखा कि सास के सुर कुछ अलग थे। ससुर जी वो वैसे बहुत डरती थी शायद इसलिए कहा नहीं लेकिन उनकी दहेज लेने की भयंकर इच्छा थी। आज मुँह दिखाई में उनकी देवरानियों का ताना मारना उन्हें राखी की गलती लगी।
"क्या कहें छोटी! अब लोगों की आँखों में लाज होनी चाहिए, बताओ मार्केट में क्या रेट चल रहा है ये पता तो होगा ही.. मांगा नहीं तो खुद को अक्ल नहीं क्या की बेटी के ससुरालवालों को खुश कैसे रखना है"
" हाँ जिज्जी! अब तुम्हारी किस्मत, वर्ना मैंने तो बोकारो वाले दीदी के लड़की से बात चलाई ही थी, मोटा पैसा, गाड़ी सब दे रहे थे। आप लोगों को तो पढ़ी लिखी चाहिए थी अब करा लो नौकरी " चाची सास की बात से राखी का सब्र का बाँध टूट गया।
" मम्मी जी! ऐसा था तो आप खुल कर दहेज मांग लेती।"
" क्या खुल कर बोलते दुल्हन? मैंने सुन रखा था रिटायर्डमेंट के बाद पिताजी ने तुम्हारे अच्छे पैसे जमा किए थे। खुद ही सोचना चाहिए आखिर बच्चों का ही तो है सब, मांगने की जरूरत क्यों पड़ती हमे भला "
" ये बताइए मम्मी जी अगर हम किसी दुकान में जाए और वहाँ प्रोडक्ट फ्री मिल रहा हो तो कौन जबरदस्ती पैसा देता है? अगर पैसे से लेना हो और हैसियत ना हो तो वो खुद उस दुकान की राह नहीं पकड़ेगा अपनी बेइज्जती करवाने "
" अरे तो कौन सा हम मांग रहे हैं, अपने लड़की के नाम एफ डी करा कर दे देते "
" मम्मी जी! मेरे घर से मुझे आपके मार्केट रेट से मंहगे संस्कार दिए है इसलिये तो चुप चाप सुन रही हूं, बताइए और क्या चाहिए भला और दूसरा पापा ने जो भी जमा पूंजी रखी है हमारे नाम पर ही इनवेस्ट की है। हमे जब भी जरूरत होगी हम मांग लेंगे। आप भी मांगियेगा, हाथ फैलाने वालों मदद करने के लिए पापा ना नहीं बोलते कभी। "
" हाय हम क्यों मांगे भला दुल्हन? तुम्हारे यहां से कई गुना समृद्ध है हम "
" तो बस यही समृद्धता विचारो में लाते है ना मम्मी जी, क्यों? "
" हाँ हाँ ठीक है, वो तो रिश्तेदार हँस रहे थे तो मैंने कह दिया... सुनो संजय या उसके पापा से कुछ ना कहना इस बारे में, ठीक है? "
सास ने सफेद झंडा लहराया।
" बिल्कुल नहीं कहूँगी, बस आप भी भविष्य में दुबारा ऐसी बात मत करियेगा, ये घर अब मेरा भी है इसको समृद्ध और खुशहाल रखने की जिम्मेदारी मेरी है मम्मी जी, मेरे पापा की नहीं "
©सुषमा तिवारी
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