जो भी था पर अब पाखी हिन्दी की क्लास कभी मिस नहीं करती थी।
"शीतल! तूझे मैम के बारे में और क्या पता है?"
पाखी जैसे उनकी गहरी आँखों के पीछे का सम्मोहन भेद जानना चाह रही थी।
"कुछ खास नहीं.. आशा मैम बहुत अच्छी है, पढ़ाती भी बहुत बढ़िया है पर कभी किसी से बात नहीं करती। पहले तो थोड़ा बहुत करती थी। फिर इनके इकलौते लड़के का देहांत हुआ.. और पता है? इनके पति और घरवालों ने जो कि बहुत खड़ूस है.. इन्हें ही दोषी बनाया क्योंकि वो लोग नहीं चाहते थे और इन्होंने अपने लड़के को उसकी मर्जी से हॉस्टल में डाला था दूसरे शहर में। वहां सरस्वती पूजन के दौरान मूर्ति विसर्जन के लिए गया इनका लड़का फिर वापस नहीं आया। सुनने में आता हैं कि पति-पत्नी के रिश्ते में भी कड़वाहट आ चुकी है। तब से यह सब से कटी कटी रहतीं है।"
शीतल की बातों से पाखी ने मैम की उदास आँखों का राज तो समझ लिया पर अब भी वो सम्मोहन नहीं समझ पाई थी। धीरे - धीरे पाखी आशा मैम के और करीब होते गई। अब वो उनके लिए लाइब्रेरी से किताबें लाना, नोट्स सहेजना सब कुछ करने लगी। पाखी को उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता था। तीसरे सेमेस्टर के पेपर के पहले ही आशा मैम दो दिन से नहीं आ रही थी और पाखी परेशान हुए जा रही थी। परेशानी का कारण यही था कि आशा मैम कभी अनुपस्थित नहीं रहती थी यहां तक कि उनके बेटे के जाने के बाद भी वह रोज ही कॉलेज आया करती थीं । शायद इसलिए बाकी के फैकल्टी उनको पत्थर दिल मान कर उनसे कटे कटे रहते थे।
पाखी बहुत घबरा गई थी। उसका कहीं मन नहीं लग रहा था। माँ के बाद उसने किसी से इतना जुड़ाव महसूस किया था तो वो मैम ही थीं। दोस्तो से जब उनके घर जाकर पता करने की बात पूछी तो सबने यही कहा कि तुम्हारा दिमाग खराब है। आशा मैम को किसी का उनके घर पर बिना पहले से बताये आना बिल्कुल पसंद नहीं है। फिर
तीसरे दिन वो आ गईं। पाखी ने देखा उनकी आँखे पहले से अधिक गहरी हो चली थीं। मौका देख कर और उन्हें लाइब्रेरी में अकेला पाकर पाखी ने उनसे बात करने का बहाना ढूंढ लिया।
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