नीरसता बढ़ती ही जा रही थी। उसकी जिंदगी में कम, उसके ऑफिस में ज्यादा। आज फिर आहना का काम करने का मन ही नहीं हो रहा था। यहां आए दिन सब कोई ना कोई जश्न मना रहे होते हैं और आहना को लगभग चिढ़ सी हो चली थी। कभी 'पार्टी गर्ल' के नाम से जाने जानी वाली आज शाम होते ही 'होम अलोन' हो जाती है। निशा ने ऑफर दिया था कि वो साथ आकर पीजी में रह सकती है पर आहना अकेले रहना चाहती थी। तभी तो वो शहर छोड़ आई जहां सब कुछ था.. अद्वैत भी तो वहीं था.. उफ्फ! फिर वही सब याद आ रहा था उसे।
"आज ये फाइल निपटा कर ही निकालूँगी" बुदबुदाती हुई तेजी से काम करने लगी।
" ये लो आहना! मिठाई खाओ!"
निशा की हँसी के ठहाकों की आवाज से आहना के धारा प्रवाह काम में खलल पहले ही पड़ चुका था, जो अब रुक ही गया।
" अरे वाह! किस बात की मिठाई?"
खुश होने का स्वांग रचते हुए आहना ने एक मिठाई उठा ली।
" भुलक्कड़ ही रह जईयो.. बताया था कल ही..सगाई तय हो गई है मेरी। छुट्टी ले रही हूं तीन दिन की.. एंड यू आर इनवाइटेड! और प्लीज कोई बहाना नहीं चलेगा, मैं अड्रेस टेक्स्ट कर दूंगी "
" यार निशा! तूझे पता है ना ये पार्टी फंक्शन.. मुझसे नहीं होते हैंडल.. क्या अपनी दोस्त को तू माफ नहीं कर सकती? "
" दोस्त? वो दोस्ती जो तीन साल से अकेले मैं निभा रही हूं.. तूने कोशिश की है कभी? आहना! मूव ऑन! आगे बढ़ अद्वैत से.. वो अतीत है.. इतने सालो में तूने किसी को डेट तक नहीं किया.. भाग रही है बस तू सबसे, अपने आप से। मेरी सलाह मान, हर बार पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर तू लड़के रिजेक्ट करती आई है.. गो फॉर ए ब्लाइंड डेट! अपनी जिंदगी यूँ जाया मत कर एक धोखे के पीछे "
निशा चली गई पर आहना को छोड़ गई भावनाओ के अथाह समुद्र में गोते लगाने के लिए जहां से तैर कर बाहर आना उसके लिए हमेशा से मुश्किल ही रहा था। सही तो कह रही थी निशा, उसे भी आगे बढ़ना चाहिए.. किसके लिए रुकी थी वो जो उसे भरी महफिल में छोड़ गया। अद्वैत आँधी की तरह आया और तूफान की तरह चला गया। कभी-कभी लगता था जैसे सारी कोशिशें बस आहना ने ही की थी वो तो बस बर्दाश्त कर रहा था उस रिश्ते को!
खाना बाहर से ऑर्डर कर आहना लैपटॉप ले कर बैठ गई। उंगलियों ने दिल से विद्रोह किया और एक डेटिंग साइट खोल दी। ब्लाइंड डेट का आइडिया अच्छा था.. वो उसे नहीं जानती होगी, सामने वाला उसे नहीं जानता होगा.. सब कुछ आसान होगा। कभी-कभी अजनबियों का साथ अच्छा होता है, कोई बंधन नहीं कोई.. उसके मिलने की खुशी नहीं, उससे बिछड़ने का गम नहीं।
कई प्रोफाइल स्वाइप करने के बाद ये प्रोफाइल दिखी। नियमों के अनुसार फोटो नहीं लगानी थी बस अपनी पसंद, नापसंद जैसी चीजे थी। रात के डेढ़ बज रहे थे और वो भी ऑनलाइन था। आहना का मन बरबस वहीं रुकने को कर गया। पसंद - नापसंद देखकर लगा जैसे कि उसकी ही प्रोफाइल किसी ने कॉपी कर ली हो।
चैट बॉक्स में पहल खुद आहना ने की
" हे.. हाय!"
" हाय..थैंक्स! बातचीत शुरू करने के लिए.. मैं भी आपकी ही प्रोफाइल देख रहा था "
'अजनबी'
" हम्म.. तुम मुझे तुम कह सकते हो.. आप ज्यादा फॉर्मल हो रहा है.. क्योंकि मैं तुमसे कल मिलना चाहती थी, चैट करना टाईम वेस्ट है"
आहना की सीधी बातों के बाद कुछ देर तक कोई उत्तर नहीं आने पर आहना ने सर पीट लिया। शायद डर गया होगा.. कैसी उतावली लड़की है।
फ़िर उसका जवाब आया
" मैं सोच में पड़ गया था.. तुम कितनी मेरी तरह हो! मैं भी यही कहना चाहता था.. तो कल मिलते है, मूवी?"
'अजनबी'
आहना की तो जैसी मन मांगी मुराद पूरी हो गई। मूवी ठीक रहेगी.. बात करने का कम मौका मिलेगा। यही सोच कर दिमाग खराब था कि एक कॉफी भी पूरी खत्म करनी जितनी बातें उसके पास नहीं थी।
"ओके.. तुम मूवी डेट शेड्यूल कर दो अपनी तरफ से.. मैं समय पर पहुंच जाऊँगी.. मैं येलो ड्रेस में रहूंगी.. बाय!"
" वैसे येलो मेरा पसन्दीदा रंग है.. ओके.. कल मिलते है "
'अजनबी'
आहना ने लैपटॉप बंद कर के राहत की साँस ली। आगे का काम उस डेटिंग साइट का था। उनकी मीटिंग का तय समय, स्थान ये सब फोन पर मैसेज के तौर पर आ गया। जीपीएस की सुविधा से वो तय स्थान पर एक-दुसरे को ट्रैक करके मिल सकते थे। ये सब सुरक्षा और धोखाधड़ी से बचने के लिए रखा गया था।
सोते वक्त जाने कितनी उधेड़बुन में फंसी सुबह चार बजे तक वैसे ही नींद नहीं आई और सुबह जब अचानक उठी तो घड़ी की तरफ देखते ही उछल पड़ी
" हे भगवान! बारह बज रहें है दोपहर के.. ऑफिस में तो कल रात ही मेल डाल दी थी छुट्टी के लिए, पर एक बजे की मूवी डेट भी तो है.. मैं किसी काम की नहीं हूं.. क्या करूँ कैंसिल कर दूं प्लान?.. पहले कॉफी पी लूँ.. तब शायद दिमाग काम करे.." बड़बड़ाती हुई आहना किचन की ओर लपकी।
एक कप कॉफी के बाद यह तय किया कि जाना चाहिए, शायद देर से पहुंचे पर इस तरह पीछे नहीं हटेगी।
कैब बुक की और फटाफट अलमारी से एक ब्लैक ड्रेस निकाली।
ड्रेस देखकर सोचने लगी, ज़माना हो गया था ब्लैक पहने पर ना चाहते हुए भी हर बार कुछ ब्लैक खरीद कर ले आती थी.. फिर पड़ी रहती वो ड्रेस अलमारी में। पहनने की हिम्मत नहीं की कभी उस दिन के बाद.. कितने जिद से सगाई का लहंगा ब्लैक बनवाया था, फिर सबने कितना कोसा.. तुमने पहले ही अशुभ काम किया तो गड़बड़ होनी ही थी। अशुभ! काला जाने कब अशुभ बन गया? अद्वैत तो कहता था बोलने दे लोगों को.. काला तो नजर का टीका होता है.. उफ्फ! फिर अद्वैत.. ये आदमी छोड़ कर भी पीछा नहीं छोड़ता या मैंने उसका पीछा नहीं छोड़ा?
भाग भागकर तैयार हुई और एक नजर खुद को आईने में देखा.. आज भी ब्लैक को कोई टक्कर नहीं दे सकता था। कैब वाले का फोन आते ही फटाफट फ्लैट से नीचे आ गई।
कैब में बैठकर मोबाइल के मैसेज पर नजर डाली.. डेटिंग एप्प वालों का रिमाइंडर था 'यू आर लेट, प्लीज फॉलो दिस ट्रैकिंग लिंक'। लिंक पर क्लिक करते ही उसे पता चल गया कितनी दूरी और बची है गंतव्य तक। उसकी बेचैनी बढ़ रही थी। उसे खुद पर अचानक गुस्सा आने लगा कि ऐसा बचपना और उतावलापन! ब्लाइंड डेट!! दिमाग जैसे सो कर जगा हो। किसे और क्या साबित करने की कोशिश कर रही थी वो? एक बार तो मन हुआ कि फोन ऑफ करके लौट जाए पर फिर उस अजनबी का सोचा जो अपना समय निकालकर उसका इन्तेज़ार कर रहा होगा। इतनी खुदगर्ज कैसे हो सकती है? इंजतार करा कर नहीं आना.. इसका दर्द क्या होता है वो जान चुकी थी। लोग कहते है कच्ची उम्र का प्यार आकर्षण होता है पर सच तो यह है कि तभी इंसान सिर्फ दिल की सुनता है जिसे प्यार के अलावा कोई मोल तोल नहीं पता होता। उम्र बढ़ने के साथ-साथ हम तौलने लगते है हर इक बात को समझ के तराजू पर और मजबूरी के रिश्तों से अच्छा है आकर्षण के रिश्ते, कम से कम पास होने की वजह तो बनी रहती है।
तय जगह पहुंच कर कैब से उतर कर वह जीपीएस फॉलो करते हुए अजनबी को ढूंढने लगी। मोबाइल पर नजर डाली बैट्री सिर्फ कुछ ही प्रतिशत बची हुई थी। कल रात भूल ही गई थी। अचानक पीछे से आवाज आई
" बहुत लेट हो तुम! अब मूवी आधी ही देखने को मिलेगी.. चलें?"
चिरपरिचित आवाज़ सुनकर वह झटके से पलटी। दोनों ने एक दूसरे को ऐसे देखा जैसे किसी ने नंगी तारे छू ली हो।
" रोनी.. रोनीत!! तुम!"
"आ.. आहना.. मुझे यकीन नहीं हो रहा है.."
वो अजनबी रोनीत था। रोनीत जिसे वह अद्वैत के लिए दोस्ती के ओहदे से भी उतार आई थी और रोनीत के लिए आहना वो थी जिसके बाद उसने किसी से दिल लगाने की गुस्ताखी तक नहीं की। अंदर से कई टुकड़ों में टूटा रोनीत यकीन नहीं कर पा रहा था कि यह हकीक़त या या सपना। आहना की सगाई का कार्ड पढ़ने के बाद ही शहर छोड़ दिया और अपनी तरफ से पूरा निभाने के लिए फिर कभी उसको ना खोजने की कोशिश की ना हाल पता लेने की। आज यूँ ब्लाइंड डेट पर उसकी फर्स्ट डेट उसके सामने थी पर अपने भावनाओ पर काबु पाते हुए उसने अपने किसी उत्सुकता का प्रदर्शन नहीं किया। वह नहीं जानता था कि अपने मनचाहे प्यार के मिलने के बाद कोई लड़की यूँ किसी अजनबी के साथ ब्लाइंड डेट पर क्यों थी? और वह जानना भी नहीं चाहता था। वो इसी पल का शायद सदियों से इंजतार कर रहा था।
आहना की हालत अजीब थी। कुछ पलों के लिए तो बुत बन गई। ये क्या हो गया था? अतीत भूत की तरह क्यों पीछा कर रहा है उसका!
थोड़े समय में वर्तमान में लौटते हुए रोनीत बोला
" ये थिएटर तो फुल है.. अगर तुम कम्फर्टेबल हो तो थोड़ी दूर पर एक मॉल है... वहां दूसरी मूवी देख लें?"
" हाँ मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं"
आहना अब बस बात करने से बचना चाहती थी। वो फिर भागना चाहती थी.. एक बार फिर से। मूवी ही ठीक रहेगी इस फेल ब्लाइंड डेट को खत्म करने के लिए।
" मेरी कार में चलते हैं.. "
आहना चुपचाप रोनीत के पीछे हो ली। कार में बैठते ही आहना अतीत के गलियारों में खो गई।
.....
" यार रोनीत तुम ये खटारा स्कूटर बेच दो और कार ले लो.. नैनो ही सही वर्ना मैं नहीं आ रही तुम्हारे साथ कॉलेज!"
आहना अपनी चुन्नी सम्हालते हुए स्कूटर पर बैठ जाती थी।
" मैडम महारानी जी! आपके घरवालो को इस स्कूटर से कोई समस्या नहीं.. आप ही ग्रस्त है त्रस्त है.. अच्छा वो छोड़ो मैंने लाइब्रेरियन से पता किया है, नई नॉवेल्स आई है.. चलो पहले हम ही इशू करवा लेते है "
रोनीत उसे किताबों का लालच देकर मना लेता था।
आहना और रोनीत दोनों ही पड़ोसी थे। दोनों की सारी की सारी आदतें एक जैसी थी और किताबे दोनों की कमजोरी। एक ही कॉलेज में पढ़ते और साथ ही जाते थे। रोनीत तो शुरू से ही आहना को पसंद करता था पर आहना को उसमे सिर्फ एक अच्छा और सच्चा दोस्त नजर आता था। एक बार बात बात में रोनीत ने अपने दिल की बात उसे बता दी जिसका जवाब उसने हँसते हुए दिया था
" अरे पागल! हमारी जो पसंद इतनी ज्यादा मिलती है वो सिर्फ बचपन वाली है.. हम जिंदगी भर ऐसे नहीं रह सकते बाबा.. बोर हो जाएंगे। मुझे फिल्मी हीरो जैसा स्मार्ट लड़का चाहिए.. बड़ी गाड़ी, बड़ी पार्टीज और इसे मेरा लालच मत समझना.. मैं ये सब खुद बनाऊँगी और तुम्हारा ऐसा है कि अंकल के दुकान के वारिस घोषित हो.. ले दे कर यहीं इसी मुहल्ले में रह जाओगे और मैं कतई यहां नहीं रुकने वाली हूं।"
रोनीत तो आहना को इस कदर चाहता था कि उसकी इस इच्छा का भी सम्मान किया। जब कॉलेज के नए एडमिशन अद्वैत से आहना आकर्षित हुई तो भी रोनीत ने उसे नहीं रोका। वो दोनों साथ अद्वैत की गाड़ी में छुप कर घूमने जाते और रोनीत केवल घरवालो के सामने उसके इस झूठ पर पर्दा डालने का काम करता था। अपने ही हाथों अपने प्यार की तिलांजलि दे दी थी। उस दिन जब अद्वैत के जन्मदिन के दिन वह मंदिर से प्रसाद लेने रोनीत के साथ ही गई थी और वहाँ पंडिताईन ने यह कह दिया था कि दोनों साथ में कितने अच्छे लगते है, यूँ ही साथ अमर रहे तो आहना कितना चिढ़ गई थी ।रास्ते भर भुन भुन करती आई थी वापस। आहना का अद्वैत के साथ जिद कर के रिश्ते बंधना रोनीत को अटपटा जरूर लगा पर वह उसकी जिद के आगे हार कर सगाई के दिन से पहले ही शहर छोड़ कर चला गया था।
स्पीड ब्रेकर आते ही आहना वर्तमान में लौट आई। रोनीत से नजरे मिलाने के बाद वो अपनी घड़ी के साथ खेलने लगी।
" प्लीज नर्वस मत हो! मैं कौन सा लेकर भाग रहा हूं"
रोनीत के टोकने पर आहना सकपका गई। यही होता है जब आप किसी करीबी के साथ बाहर हों.. उसे आपकी हर आदत का पता होता है।
रोनीत भी मन ही मन खुद को कोस रहा था। क्या जरूरत थी उसे टोकने की.. हद्द है!
मॉल पहुंचकर आहना ने सर पीट लिया ' हॉरर फिल्म'.. बहुत डरती थी वो हॉरर मूवी से। रोनीत उसे देख कर मुस्करा दिया।
"क्या?"
"कुछ नहीं.. आई एम सॉरी.. ऐसे ही पिछली बाते याद आ गई थी"
रोनीत मुस्कराते हुए पॉप कॉर्न लेने चला गया। पेमेंट करते समय बार बार गलत पिन नंबर डालते हुए रोनीत को परेशान देखकर आहना हँस पड़ी।
"वैसे ही हो.. बुद्धू!"
" अरे नहीं वो.. अच्छा ठीक है.. मान लिया"
मुस्कराते हुए दोनों ने जाकर अपनी सीट ले ली। मूवी शुरू हुई और आहना ने देखा कुछ ही देर में रोनीत सो गया। उसे गुस्सा भी आया फिर याद आया कि मूवीज में रोनीत हमेशा ही सो जाता था। उसे ये भी सुकून मिला कि कुछ समय खुद को सम्भालने के लिए मिल जाएगा। डरावने सीन आते ही अनजाने में ही आहना जोर से रोनीत का हाथ पकड़ लेती थी और वापस उसी सुरक्षित घेरे को महसूस कर रही थी जो सालों पहले वो तोड़ आई थी। रोनीत जो कि इस बार सोने का सिर्फ नाटक कर रहा था ताकि आहना असहज महसूस ना करे वो भी इस स्पर्श से अतीत की सौंधी खुशबु को अपने अंदर समेट रहा था। उसे पता था यह क्षणिक सुख है। मूवी खत्म हुई और आहना ने उसे उठाया। दोनों मॉल के बाहर आए जहां एक बच्ची गुब्बारा बेच रही थी। आहना ने उसे देखा और उससे दो गुब्बारे ले लिए। रोनीत ने फ़ट से जेब से पैसे निकाल उसे दे दिए।
" आप दोनों एक साथ बहुत अच्छे लगते है"
बच्ची ने मुस्कुराते हुए कहा।
रोनीत ने कुछ कहना चाहा तब तक आहना ने अचानक उसका हाथ अपने हाथों में लिया और बच्ची को देखकर कहा.. "थैंक यू"
" तुम्हें तो बुरा लगता था ना"
" हाँ तो क्या मैं खुद को अपनी गलती सुधारने का मौका नहीं दे सकती हूं... सुनो मुझे घर तक छोड़ दोगे?"
रोनीत ना कैसे बोलता? आखिर आजतक सब कुछ आहना के लिए ही तो करता आया था। अब इश्क जितने इम्तिहान ले वो हर बार तैयार खड़ा था।
आहना के घर के नीचे पहुंच कर उसने कहा
"अब आगे?"
" आगे क्या?.. मिलते है अपने वाले अड्डे पर.. अब तुम यहाँ हो तो इस शहर की लाइब्रेरीज का पता तो होगा ही.. पढ़ते है एक नई किताब फिर साथ में.. अगर तुम्हें मंजूर हो तो"
रोनीत ने मुस्कुराते हुए इशारे से उससे मोबाइल नंबर माँगा।
आहना ने उससे उसका नंबर मांगा. कुछ टाइप किया और भेज दिया।
" बीती बातों के लिए माफ कर दो.. अगर मुमकिन हो तो "
रोनीत ने जवाब में लिखा
" एक शर्त है! वादा करो अगर मेरे पास फिर से खटारा स्कूटर होगा तब भाग नहीं जाओगी ना!!"
"अब नहीं.. कभी नहीं.."
कब के बिछड़े हुए अब जाकर मिले थे.. एक पश्चाताप की आग में और एक विछोह के आग में तप कर कुंदन हो चुके थे।
©सुषमा तिवारी
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