(दिल ही तो है)
शुरुआत कुछ यूं हुई...
" ढल रही हैं ज़िन्दगी... ढल गई है जिंदगी
बुझ गई शमा परवाने की
अब वजह जीने की नहीं मिलती यहाँ
ज़नाब आपको अब भी पड़ी हैं मुस्कराने की "
वाह - वाह, वाह - वाह... आदित्य के दोस्तों ने तारीफ के पुल बांधने शुरू कर दिए थे। कॉलेज के कैंपस से निकल कर जो सड़क हॉस्टल को जाती थी वो दोनों ओर से घने पेड़ों से घिरी हुई थी। जिसकी वजह से कड़ी गर्मी में भी वहाँ शीतल छांव ही होती थी। लड़के लड़किया कॉलेज से निकल कर वही किनारों पर लगे बेंच पर जमावड़ा लगा लेते और हँसी ठिठोली करते थे। अब मोबाइल आविष्कार के पहले लोग जिंदगी को हंस कर ही काटते थे, दुनिया भर का बोझ 150 ग्राम के अंदर नहीं समेटना होता था।
उस दिन भी आदित्य और उसके दोस्त वहाँ पेड़ के नीचे मुशायरा लगाए बैठे थे। बारिश के मौसम में जब हल्की बारिश हो कर जा चुकी हो तो मौसम की ठंडक और फिजाओं की हरियाली आँखों को भी सुकून देती है। इतिहास वाले प्रोफेसर छुट्टी पर थे इसलिए इनको और समय मिल चुका था सभा बिठाने के लिए। वाह वाह की आवाज से गूंज मची थी। सोनाली के कानो में जब आदित्य का शेर टकराया तो वह झट से पीछे मुड़ी। सोनाली अपनी सहेलियों के साथ गर्ल्स होस्टल की ओर ही जा रही थी। कॉलेज में नया होने के चलते उसे अभी सारी चीजे व्यवस्थित करना बाकी ही था।
" ये लड़के ऐसे ही चिल्लाते है, इन्हें कोई टोकता नहीं?" सोनाली ने अपनी रूम मेट और क्लास मेट अमृता से पूछा।
" अरे ये सीनियर लड़के है, इनके मुँह कौन लगेगा.. और वो आदित्य है सबका चहेता और डीन का भतीजा उसे बोलने की हिम्मत किसे है भला?.. तू छोड़ अभी नई नई है धीरे धीरे सब मालूम पड़ेगा " अमृता उसका हाथ खिंचते हुए बोली।
" अच्छा! तूझे लगता है डीन का भतीजा है तो मुझे डरना चाहिए?.. नेवर.. मैं भी कर्नल की बेटी हूं.. लगी शर्त अभी इसकी बोलती बंद करा सकती हूं " शैतानी मुस्कराहट चेहरे पर लाते हुए सोनाली बोली।
सोनाली की इन्हीं शैतानियों की वजह से कर्नल साहब ने इसे हॉस्टल भिजवा दिया था पर अमृता के आँखों में दौड़ता खौफ साफ़ बता रहा था कि उसके कलेजे में यह शर्त लगाने का दम भी नहीं था।
" कम! वेट एंड वाॅच.. "
सोनाली लहराती हुई लड़कों के झुंड की तरफ बढ़ गई। अमृता उसके पीछे हो ली, उसके हिसाब से उसे सोनाली की रक्षा जो करनी थी।
" कुछ खुद भी लिखते हैं या यूं ही चुरा चुरा कर चेपते हैं जनाब? आवाज ही बुलंद है सिर्फ इरादे से तो बड़े चोट्टे लगते है "
सोनाली हाथ में पकडी किताबों को एक हाथ से दूसरे हाथ में बाल की तरह लहराती हुई बोली।
" कौन है ये बदतमीज लड़की? जानती हो किससे बात कर रही हो? " आदित्य का दोस्त सैमी गुस्से से तमतमा गया।
" उफ्फ! जवाब देने के लिए भी चमचे रखे है!.. लड़की से बात करने की हिम्मत भी नहीं.."
सोनाली के बोलते ही सैमी गुस्से से उसकी ओर बढ़ा तो आदित्य ने हाथ पकड़ लिया। वो बस एकटक घूरे जा रहा था सोनाली को। जिंदगी में पहली बार किसी लड़की को इतनी तेज मिजाज़ में देखा था वर्ना शर्माती सकुचाते लड़किया ही दिखी थी।
" आपका परिचय? " आदित्य ने पूछा।
" सर ये सोनाली, बास्केट बॉल प्लेयर कोटा में अभी न्यू एडमीशन है.. सॉरी यह नहीं है यहां.. हम बस हॉस्टल जा ही रहे थे " कहकर अमृता उसे लगभग घसीटते हुए ले गई।
" अरे बात तो करने देती यार.. बोरिंग जगह पर पहली बार कुछ रोमांच भरा करने को मिल रहा था और तू खिंच लाई.. दब्बू कहीं की "
" हाँ मैडम मैं दब्बू ही सही.. मुझे तीन साल यहां काटने है, कोई रोमांच अनुभव लेने नहीं आई मैं.. और क्योंकि मैं तुम्हारी रूम मेट हूं तो मेरा फर्ज बनता है तुम्हारी रक्षा करना " अमृता उसका हाथ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी।
" रक्षा.. हा हा हा " सोनाली हॉस्टल गेट पर ही हँसते हँसते पेट पकड़ कर बैठ गई।
" मैडम दिख रहा था आप कितनी अच्छी रक्षक है.. भाग खड़ी हुई "
" हाँ तुम क्यों फालतू के पंगे ले रही हो.. "
अमृता की बात आधी ही रह गई क्योंकि बुलेट पर आदित्य और सैमी वहाँ पहुँच चुके थे।
गनीमत तभी हल्की बारिश शुरू हो गई और दोनों लड़किया अंदर की ओर भागी।
"क्या सोनाली मैडम? आप तो भगोड़ी निकली.. बात करने के लिए बुला कर अब भाग रही है.. " आदित्य जोर से चिल्लाया।
हल्के पीले सूट में सोनाली भींग रही थी और दुपट्टे से किताबों को ढंकने की कोशिश में लगी थी। आदित्य की आवाज पर उसमे उसे ध्यान से देखा। नीली टीशर्ट जिंस और काले चश्मे में आकर्षक लग रहा था। सोनाली गेट के अंदर जाते हुए पीछे घूम कर चलते हुए बोली
" आइये कभी गर्ल्स हॉस्टल.. बैठ कर बात करेंगे " फिर हँस कर मुड़ कर अंदर चली गई।
आदित्य वही खड़ा कुछ देर सोचता रहा फिर बॉय्ज हॉस्टल चला गया।
अंदर जा कर सोनाली ने फटाफट कपड़े चेंज किए फिर किताबे सूखने को रख दी। अमृता को उसने हीटर पर चाय चढ़ाने के लिए बोल कर वह नीचे रिसेप्शन पर आ गई क्योंकि अंदर आते वक्त वार्डन ने बताया था कि कर्नल साहब यानी उसके पापा का फोन आया था। पापा से उसकी बहुत जमती थी। कर्नल भले ही पापा थे पर ऑर्डर घर में मम्मी के फॉलो होते थे। मम्मी कहती की पापा ने सोनाली को सर पर चढ़ा रखा है क्योंकि ल़डकियों वाली एक भी तहजीब उसमे नहीं है। सोनाली भी हॉस्टल आकर खुश थी क्योंकि मम्मी का घर उसे हॉस्टल से ज्यादा रूल फॉलो करवाता था। पापा से सब हाल चाल बता कर सोनाली कमरे में वापस आई तो देखा हीटर पर चाय रखी है। दौड़ कर उसने हीटर बंद किया
" ये अमृता भी ना.. जाने कहां जा कर सो गई "
"हम है ना मैडम.. चलिए चाय पर ही जान पहचान कर लें " आदित्य की आवाज सुन कर सोनाली कूद पड़ी।
" तुम.. तुम अंदर कैसे आए? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे कमरे में आने की.. और ये खिड़कियाँ क्यूँ बंद की है.. अमृता कहां गई? अमृता.. अमृता.. " सोनाली थोड़ा घबरा गई थी। उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था आदित्य इतने स्ट्रिक्ट वार्डन के होते उसके कमरे तक पहुंच जाएगा।
" अरे तुम खामख्वाह पैनिक कर रही हो.. तुमने अंदर बुलाया और मैं आ गया.. इतनी सी बात है और बाहर बारिश तेज है छींटे ना आए इसलिए खिड़कियाँ बंद है। अमृता लाइब्रेरी गई है उसे कुछ किताबे चाहिए थी " आदित्य कमरे का मुआयना करते हुए बोला।
" देखो मुझे सब पता है तुम जैसे लड़कों का समझे.. कराटे ब्लैक बेल्ट हूं.. मुझसे ना उलझना "
" हद्द है यार घर बुलाए मेहमान को चाय पकौड़े के बजाय तुम मार काट की धमकी दे रही हो.. ये उम्मीद ना थी.. हम तो आपको प्रोग्रेसिव समझे थे " कहकर आदित्य उसके और करीब आ गया, इतना की वो पीछे दीवार को जा टिकी।
आदित्य की बातों को सुनकर सोनाली ने पहले खुद को शांत किया और महसूस किया कि सच वो पैनिक ही कर रही थी। आदित्य के वज़ूद का असर था या कुछ और पर सोनाली खुद को बेबस महसूस कर गई कुछ पलों के लिए। फिर पूरी हिम्मत जुटाई और उसे धक्का दिया। अंदर से नकली मजबूती भरी आवाज निकाली
" ठीक है.. ठीक है.. चलो चाय पीओ और दफा हो जाओ.. मुझे क्या.. पकड़े गए तो मैं वार्डन को बता ही दूंगी की जबरन घुस आये थे "
आदित्य को सोनाली के बच्चों की तरह भोली बाते करते देख अंदर ही अंदर हँसी आ रही थी। बुद्धू लड़की ने प्यार में डाल दिया मुझे। कहकर उसने एक खिड़की खोल दी। बाहर से आती बारिश की फुहारों को चेहरे पर नहीं वो अपने दिल पर महसूस कर रहा था
" आदि ये वही है.. जिसकी तुम्हें तलाश थी.. तुम्हारी अधूरी जिंदगी का पूरा हिस्सा यही है "
क्रमशः...
©सुषमा तिवारी
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