विषमताऐं होतीं है संसार में ,
परंतु कुछ विषमताओं को देख
ह्रदय का द्रवित हो जाना,
निश्चय ही कोई अतिरेक नहीं !
बिना बचपन का बचपन देख,
उठते हैं सवाल अनेक
क्या क्या बताएं? गिनते जाना,
सवाल भी तो एक नहीं
अब बताओ....
किसी की रंग बिरंगी पोशाकें
कहीं पार्क और झूले
किसी की बेरंग सी जिंदगी क्यों
उनके हाथ में कचरे के थैले?
बचपन पर हक सबका है
खुशियों से दूरियां कोई, क्यों भला झेले
उनके नसीब को दोष देते हैं क्यों?
हर घर क्यों नहीं लगते खुशियों के मेले
क्यों दुखता नहीं कलेजा सबका,
भला कैसे देखें, यह सब सह लें?
दुआएं सबकी साथ कबूल होती नहीं क्यों
किसी की प्रतिक्षा में क्यों? कोई तो सुन ले।
Comments
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बहुत खूब
Behatareen....diduuuu❣️❣️❣️
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