"आपकी तबीयत ठीक है ना मैम? आप आए नहीं थे!"
"हाँ! बिल्कुल ठीक हुँ, मुझे क्या होना है?"
आशा मैडम ने नजरे फाइल में गड़ाए हुए दृढ़ता से कहा।
"अच्छी बात है ना मैम.. वैसे आप मुझसे कोई भी बात बता सकती है.. मैं आपकी बेटी की तरह ही हूँ "
पाखी के उत्साह भरे स्वर में रुकावट आ गई। उसने देखा उसकी बात सुनकर मैम की आँखों से टप कर के बूंदे फ़ाइल पर गिर पड़ी।
"अरे मैम! कुछ गलत बोल दिया क्या मैंने?"
पाखी ने उनके कंधे पर हाथ रखा तो वो बाँध से छूटे धार की तरह पाखी से लिपट कर रोने लगी। पाखी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। किसी को बुलाए या यूं ही उनके मन का सारा बोझ बह जाने दे।
पाखी ने उन्हें पानी का ग्लास पकड़ाया। सुबकती हुई वो पानी पीकर रुमाल से मुँह पोंछ कर चुप हो गई।
"सुनो पाखी! किसी से कुछ कहना मत"
"नहीं मैम! मैं क्या कहूँगी?.. सच कहूँ तो मुझे पता ही नहीं समस्या क्या है?"
"समस्या? समस्या तो यह जीवन ही है जो पता नहीं आपको क्या क्या दिखाएगा! वैसे तुम मेरे बेटे वाली बात तो अब तक जान चुकी होगी। एक बात मैंने किसी से नहीं बताया। जानती हो मैं शुरू से ही तुमसे आकर्षित थी क्योंकि तुम्हारा नाम पाखी है और मेरी अपनी बेटी का भी यही नाम है। आज जब तुमने कहा कि तुम मेरी बेटी जैसी हो तो मैं अपनी भावनाओ को काबु में नहीं कर सकी। दो दिन पहले ही उसका देहांत हो गया। मैं एक जिम्मेदार माँ नहीं हूं। इसलिए भगवान ने मुझसे माँ कहलाने का अवसर ही छिन लिया। पर मैं तो सिर्फ अपने बच्चों को खुश देखना चाहती थी। घरवालो के मना करने के बावजूद बेटी को मैंने उसकी मासी के घर भेज दिया। वहाँ अचानक वो बीमार पड़ गई। मैं गई थी उसे लाने पर तब तक वो जा चुकी थी। मेरे दर्द के सैलाब पर सबने बाँध बना दिया। देवर के लड़की की शादी अगले महीने है। अब सब को लगता है कि यह बात बाहर आई तो सब यही कहेंगे कि जवान लड़की ने किसी के चक्कर में जान दे दी होगी। जिससे घर में शादी समारोह में रुकावट आएगी और हमारी बदनामी होगी। वो चाहते है कि मैं चुप रह जाऊँ और नॉर्मल दिखूँ कुछ दिन। बताओ तुम? ऐसे नॉर्मल रहना आसान है क्या? "
पाखी सन्न खड़ी थी। क्या जवाब देती? कुछ कहे बिना वो धीरे धीरे बाहर की ओर जाने लगी।
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