" छोटी बाजार चलेगी? मैं जा रही हूं... त्यौहार भी नजदीक है.. तुझे कुछ चाहिए हो तो अपनी पसंद का ले लेना " स्वरा ने आवाज लगाई।
" नहीं जीजी! आप जाइए.. मुझे बाजार जाना अब कुछ खास पसंद नहीं.. आप अपनी पसंद का ही ले लीजिएगा और वैसे भी आपको तो पता ही है शुरू हो जाते हैं लोग, फिर बातें बनाना... "
स्वरा अनु से इससे ज्यादा कुछ नहीं कह पाई। सच तो यह था कि कहीं ना कहीं स्वरा भी नहीं चाहती थी वह साथ जाए। उसे बार-बार दुखी होना उससे देखा नहीं जाता था। कितने लोगों का मुंह बंद कराओ, जितने लोग उतनी बातें। अनु के चेहरे की उदासी कहीं ना कहीं पूरे परिवार को पछतावे की आग में झोंक देती थी। स्वरा अनु की जेठानी थी। स्वरा के देवर यानी अनु का पति आलोक यूं धोखेबाज निकलेगा घर में किसी ने नहीं सोचा था। शादी के वक्त जब वह चिढ़कर कहता कि, नहीं मुझे अभी नहीं करनी शादी, तो सबको लगता यह उसकी बाल सुलभ व्यवहार का ही एक हिस्सा है। स्वरा की शादी के पहले ही उसकी सास दुनिया से जा चुकी थी। जब अनु ब्याह कर घर आई तो स्वरा ही उसके लिए जेठानी सास जो भी हो वही थी। स्वरा ने भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई थी। एक बड़ी बहन की तरह हमेशा उसे प्यार अपनापन दिया साथ ही साथ जेठानी की तरह जिम्मेदारियों को उठाना और परिवार संभालना सिखाया। देवर आलोक को भी स्वरा ने अपने बच्चे की तरह ही माना था। उसके हर लाड दुलार को सर आंखों पर रखा था। पर यह किसी को पता नहीं था कि वह इतना बड़ा कदम उठा लेगा। अनु की गोद में दो प्यारे प्यारे बच्चे सौंपने के बाद घर में एक दिन एलान कर दिया कि वह अनु से प्यार नहीं करता और अनु से शादी के पहले ही उसकी एक और पत्नी है जिससे उसका एक बच्चा भी है। अनु से शादी सिर्फ घर वालों के दबाव में किया गया था। बड़े भाई ने तो आलोक पर हाथ भी उठा दिया था।
" तुम खुल कर बोल नहीं सकते थे"
"कैसे बोलता? बाबूजी की तबीयत ठीक नहीं रहती थी और मैं उस समय आर्थिक रूप से स्थिर भी नहीं था.. वह मुझे जायदाद से बेदखल कर देते तो मैं कहां जाता?"
बाबुजी तो जैसे उसी दिन से चुप्पी साध गए। खुद को अनु का दोषी मान भीतर ही भीतर जैसे समाधि ले ली हो। आलोक को जायदाद से बेदखल कर सब कुछ अनु के नाम कर दिया पर वह उसकी जिंदगी तो नहीं लौटा सकते थे। बड़े भाई त्रिलोक ने आलोक पर कानूनन दबाव बनाना चाहा तो अनु ने ही मना कर दिया। वह तो बच्चों को लेकर घर छोड़ना चाहती थी, जबरदस्ती के रिश्ते में उसे रहना मंजूर नहीं था। उसके लिए तो जैसे दस साल का बनाया एक भ्रम जाल टूट गया था। अनु ने कहा कानूनन वह मेरे हो भी गए तो क्या, दिल तो जुदा हो चुके हैं।
स्वरा के कहने पर वह घर पर रुक गई। आलोक जा चुका था हमेशा के लिए। स्वरा ने अनु को टूटने से बचा लिया। परिवार का अपना छोटा सा स्कूल था जहां बाबूजी प्रिंसिपल थे। अब उससे अनु संभालने लगी थी। खुद को काम में पूरी तरह डुबोकर उन कड़वी यादों से बाहर आना चाहती थी। स्वरा के कहने पर ही वह तीज त्योहारों में उतने ही उत्साह के साथ भाग लेती थी। व्रत उपवास सिर्फ पति के लिए तो नहीं होते थे, उसके दोनों बच्चे भी तो थे। अनु स्वरा को बहुत मानती थी। उसने देखा था जब आलोक के जाने के बाद पहला त्यौहार आया था तो अनु के कुछ भी श्रृंगार ना करने पर स्वरा ने भी खुद को श्रृंगार में नहीं रखा था ताकि दूसरों के सामने उसे खुद फीका ना महसूस हो। स्वरा ने अनु को अपने लिए जीना सिखा दिया था पर लोगों का क्या कर सकते थे। लोग तो बातें बनाएंगे। अनु रुक गई थी। शायद ससुराल में जो सहारा मिल रहा था वह मायके में नहीं मिल पाता। पिता तो बचपन में ही छोड़कर चले गए थे और भाभीयों ने इशारों में ही बोल दिया था 'आपको अपना पति अपने काबू में रखना चाहिए था, जिंदगी यूं ही नहीं कटती है' वह तो स्वरा थी जिसने अनु को एहसास दिलाया कि " जिंदगी किसी के आने जाने की मोहताज नहीं होती तुम अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीना सीखो। तुम्हारे दोनों बच्चे तुम्हारी कमजोरी नहीं तुम्हारी ताकत है। मैं समझ सकती हूं कि अचानक जिस प्यार के सहारे तुम जी रही थी वह छलावा निकलेगा तो तुम क्या महसूस कर सकती हो। मैं तुम्हारा दुख कम नहीं कर सकती हूं पर उसे भुलाने का तरीका जरूर सूझा सकती हूं, तुम सजा सँवरा करो ताकि बच्चों को कभी ऐसा ना लगे उनकी मां उस आदमी के लिए दुखी है जिसने कभी उसे दिल से पत्नी का दर्जा दिया ही नहीं था। जो तुम्हारे सुख की वजह ना बन सका उसे अपने दुख की वजह भी मत बनने दो "
स्वरा करवा चौथ की तैयारी पूरी कर चुकी थी। उसके कहने पर अनु ने भी उपवास रखा था। चौथ माई से अपने बच्चों के सुखद भविष्य की आशीष मांगी थी। त्रिलोक जी स्वरा के लिए ढेर सारे रजनीगंधा के गजरे लाए थे। स्वरा को याद आया कि पहले भी आलोक ने कभी अनु के सजने सवरने की फिक्र नहीं की थी। करवा चौथ के दिन तो वह इंतजार करते रह जाती थी आलोक देर रात तक आता या नहीं भी आता था और कई बहाने कर देता था। लेकिन अनु को रजनीगंधा के फूल बहुत पसंद थे। स्वरा के कहने पर कहती " नहीं जीजी देखती हूं, कभी तो खुद से लाकर देंगे.. मुझे बहुत पसंद है"
बीती बातों को याद करते हुए स्वरा ने अनु के कमरे पर दस्तक दी।
"क्या हुआ जीजी? चांद निकल आया क्या? छत पर चले!!"
" हां अनु चांद भी आ जाएगा, मैं तुम्हें यह रजनीगंधा के फूल देने आई थी.. तुम्हें बहुत पसंद है ना.. बालों में लगा लो "
अनु के आंखों से आंसू बह चले। वह उस कस्तूरी मृग की तरह हो गई थी जो मुष्क का पीछा कर रही थी। स्वरा के हाथ से रजनीगंधा लेते हुए उसने कहा
" जरूर! आपने मेरे जीवन में जो नई खुशबू भर दी है उनके सामने तो वैसे भी यह रजनीगंधा फीकी है, फिर भी मैं इसे आपका आशीर्वाद मान कर रख लेती हूं.. काश कि जिस तरह का परिवार मुझे मिला हर एक औरत को मिलता, ताकि आने वाले भविष्य में कोई चोट उसे दर्द ना पहुंचा सके"
"नहीं री अनु! हम तेरा दर्द नहीं भर सकते पर अपने हिस्से की गलती का प्रायश्चित तो कर सकते हैं "
" सब नसीब का खेल है जीजी! फिर भी जब परिवार वालों का साथ होना तो बड़ी से बड़ी मुसीबत झेलना आसान हो जाता है "
स्वरा ने अनु को गले लगा लिया। दोनों के आंसू बह चले। अनु ने भरी आंखों से कहा
" तुम्हारे रहते ना जीजी कभी मां की याद नहीं आती है "
" आनी भी नहीं चाहिए.. चल छत पर चलते हैं, शायद चांद निकल आया होगा "
चांद की हल्की चांदनी के नीचे स्वरा और अनु रजनीगंधा से खिल रहीं थी। लोगों की चुभती निगाहें भी उनके चेहरे की मुस्कुराहट छीन नहीं सकती थी।
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