किस सत्य का उद्घाटन करती है " माँ की डायरी"? यह जानने के लिए तो मौमिता बागची द्वारा लिखित यह लघु उपन्यास आपको एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए और मैं दावा करती हूं कि पुस्तक का अंत पढ़ने के बाद एक बार फिर से शुरू से पढ़ने की इच्छा जागृत होगी।
मौमिता बागची जी कोलकाता से है और उन्होंने हिंदी साहित्य से एम ए किया है। मैं वैसे ही उनकी रचनाओं की नियमित पाठक रही हूं पर इस किताब ने मुझे उनकी लेखनी का कायल बना दिया है। एक उपन्यास के अंदर ही एक माँ की डायरी समेटना और साथ साथ अन्य घटनाओं का भी चलना, सच में बहुत ही प्रभावी लेखन कार्य देखने को मिलता है।
सच कहूँ तो किताब का नाम देखकर एक बार यही विचार आता है कि माँ की डायरी में अलग क्या होगा? माँ तो माँ होती है! परंतु इस नीली डायरी के अंशों ने एक बार फिर से सो कॉल्ड सभ्य कहे जाने वाले परिवारो और बड़े घर में 'कैद' स्वतंत्र महिलाओं के स्थिति पर चिंतन मनन करने पर विवश कर दिया। भले ही समय काल कोई भी रहा हो एक माँ हमेशा से ही दूसरों को खुश रखने की कोशिश में हमेशा से ही खुद की इच्छाओं की बलि चढ़ाते आई है।
ऐसी ही एक माँ सुधामयी देवी की कहानी है यह, जिनकी डायरी उनके बेटे बलवीर को मिलती है ताकि वह उस डायरी की नजर से उनके जीवन को देख सके। पुस्तक का कवर पेज काफी आकर्षक है और बिलकुल माँ की नीली डायरी को सजीव करता हुआ! माँ का जो स्वरुप बताया गया है सच कहूँ तो मुझे बिलकुल ऐसा लगा जैसे मैंने उन्हें करीब से देखा है, यहीं कहीं मेरे आसपास..। माँ के दिए संस्कार बलवीर में साफ दिखाई देते है तभी उन्हें यह यकीन था कि जो अनकहा रह गया था बताने से पहले डायरी पढ़कर बलवीर शायद उन परिस्थितियों से वाकिफ हो सके जिसे माँ ने झेला था।
मृत्युंजय जी का किरदार इतनी बढ़िया तरह से गढ़ा गया है जैसे कि पितृसत्तात्मक समाज का आईना हो। अपनी हर कमी को किस तरह से हथियार बना कर एक स्त्री पर शासन किया जाता है उन्हें खूब आता है। वैसे इस कहानी में सुधा देवी अपने पैरों पर खड़ी महिला है लेकिन क्या आर्थिक सम्पन्नता प्रेम और सम्मान के अभाव को भर सकती है?
सुधा देवी, मृत्युंजय, बलवीर, अन्वेषा, कमल जी और साहू दंपति जैसे किरदार पाठक अंत तक को बांधे रखते है। किताब की कई पंक्तिया मैंने हाइलाइट की हुई है जो विचारो को चिंगारी देते है। वहीं ठहर कर सोचने पर विवश करते है।
झारसुगदा जगह को कहानी में शामिल करने के साथ ही लेखिका ने उसका भौगोलिक एवं एतिहासिक विवरण देकर बहुत ही अच्छा किया है। इसी अध्याय में पुस्तकों के बारे में बड़े सुन्दर शब्द भी लिखे है
" पुस्तकें सही मायने में हमारी वह दौलत है जो हम आगे की पीढ़ियों के लिए छोड़ कर जाते हैं। एक लेखक को समझने की वे ही सबसे अच्छे हथियार होते हैं। हमारी सभ्यता और संस्कृति के भी वे ही पक्के दस्तावेज होते हैं। किताबों के द्वारा ना केवल हमारी कल्पना शक्ति का विकास होता है बल्कि भाषा में सुधार करके वे हमें सभ्य और संस्कृत बनाने का काम भी करती हैं। "
ऐसे ही कई और पंक्तियाँ सहेजने लायक है।
सच्चे प्रेम, त्याग, समर्पण, रिश्तों के प्रति कर्तव्य, और जिन्दगी के कई आयामों को खूबसूरती से उकेरती मौमिता बागची जी की 'माँ की डायरी' अमेजॉन , फ्लिपकार्ट और स्टोरी मिरर पर उपलब्ध है।
-सुषमा तिवारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
सुंदर समीक्षा बधाई आप दोनों को
अनुपम समीक्षा
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