कॉलेज के गेट पर खड़े होते ही विनय को अंदाजा हो गया था कि बाबुजी के कहने पर वह दूसरी दुनिया में आ गया था। माँ के हाथ से प्रेस कर के दी हुई बढ़िया क्रीज वाली शर्ट और फॉर्मल पैंट पहन कर मुंबई के प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज पहुंचा था विनय। बेहद साधारण सा दिखने वाला विनय उस भीड़ में काफी असाधारण दिख रहा था जहां हर आने जाने वाले उसे घूरे जा रहे थे। मन ही मन खुद को कोस रहा था कि जाने कौन से मुहूर्त में बचपन में बाबुजी से कह दिया था कि हम एक दिन एक पंखा बनाएंगे जो बिना बिजली के चलेगा। खैर कोई आविष्कार वाली बात नहीं थी पर उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव के एक हेड मास्टर की आँखों में सपना तैर आया कि बेटा इंजीनियर बनेगा। बस तब से शुरू हो गई थी कवायद। हर सुबह विनय बाबू को तड़के उठ कर पढ़ने बैठा दिया जाता की मशीने बनानी है तो बहुत पढ़ना पड़ेगा। बाबुजी तो उसे इंजीनियर बाबू कहकर बुलाने लगे थे। बड़े होते हुए विनय के सारे यार दोस्त बाबुजी ने कब के छुड़वा दिए थे। जिस कारण वो काफी अन्तर्मुखी भी हो गया था। कभी कभी मन होता कि चिल्ला कर कह दे की नहीं बनना हमे इंजीनियर हमे तो क्रिकेट खेलना है पर शायद उतनी हिम्मत नहीं थी। बारहवीं में पूरे जिले में थर्ड आया था विनय तो बाबुजी ने फोन भी दिला दिया था सादा वाला.. इस वायदे के साथ की इंजीनियरिंग के लिए जाओगे तो रंगीन वाला भी दिला देंगे।
विनय ने प्रवेश परीक्षा पास की और बाबुजी ने मुम्बई भेज दिया पढ़ने। उसके रहने के लिए हॉस्टल में व्यवस्था करा दी। पर आज कॉलेज के गेट पर खड़े वो सोच रहा था कि बोल चाल से एकदम साधारण होने के कारण शायद वह ईन लोगों के बीच कभी एडजस्ट नहीं कर पाएगा। तभी पीछे से किसी ने आकर पीठ पर थपकी दी।
" और कहां से हो भैया?" कुर्ते और जिंस में खड़े उस लड़के ने अपना नाम हितेन बताया। विनय को समझ में नहीं आया कि यह भैया कहना संबोधन था या उसके वेश भूषा पर तंज। पर क्योंकि कोई सामने से आया बात करने यही काफी था उसके लिए।
" जी हम विनय.. उत्तर प्रदेश से है..भ.."
" अरे रहने दो मैंने तुम्हारा पूरा पता नहीं चाहिए.. कॉलेज फेस्ट शुरू हो रहे है तो तुम्हारा किरदार इंट्रेस्टिंग लगा तो पूछा मैंने, क्लास के बाद कैन्टीन के बाहर मिलना"
हितेन आँधी की तरह आया और तूफान की तरह चला गया। वैसे भी पूरे दिन किसी ने भी विनय से बता नहीं की। क्लास खत्म कर कैन्टीन के पास जाकर देखा तो कुछ लड़के और हितेन मजमा लगा बैठे थे। पहले तो विनय को डर लगा कि कहीं यह रैगिंग तो नहीं है पर उन लोगों के अच्छे व्यवहार से वो डर भी जाता रहा।
" देख विनय भाई, तेरी अँग्रेजी हम सब सुधार देंगे पर जो तेरी भाषा है ना उसकी हमे सख्त जरूरत है अपने कॉलेज फेस्ट नाटक के लिए.. तू ही कर सकता है भाई " हितेन की बात से विनय थोड़ा घबरा गया था। वो तो मंच पर चढ़ कर अपना परिचय नहीं से सकता था और ये पूरा नाटक? खैर हाँ बोलकर वो वापस हॉस्टल लौट आया।
हॉस्टल में उसका रूम मेट अजित उन्हीं में से एक था जो हितेन के साथ मिला था। हितेन सीनियर था और कॉलेज कल्चरल हेड भी था।
रूम में आकर किताबे वगैरह ठीक कर के बैठा ही था कि अजित पास आकर बैठ गया।
" देख रहा हूँ कि सुबह से घबराए हो?.. हितेन भाई के बारे में सोच रहे हो क्या? अरे वो बड़े अच्छे इंसान है"
" हाँ भाई बहुत ही अच्छे है तभी घबराहट हो रही है क्योंकि हम ठहरे अनजान आदमी और वो पहले ही दिन कितनी मदद कर रहे है" विनय ने सकुचाते हुए अपनी बात रखी।
" अरे बिलकुल नहीं सोचो! हितेन भाई को तुम्हें देख रामनंदन की याद आ गई थी.. उनका रूम मेट था वो.. "
" था मतलब? कहां गया? कहीं और एडमिशन ले लिया? "
" नहीं विनय.. रामनंदन अब इस दुनिया में नहीं रहा.. दो साल पहले उसने आत्महत्या कर ली। हितेन के दिल से वो बोझ उतरता ही नहीं है "
" हुआ क्या था.. इतना बड़ा कदम उठाया? "
" रामनंदन बहुत सीधा था, पढ़ने में बहुत मेधावी बस दुनियादारी में कमजोर। हितेन भाई भी उससे ज्यादा घुल नहीं पाए। उन्हें भी लगता कि रामनंदन को खुद कोशिश करनी चाहिए माहौल में सामंजस्य बिठाने की। पर राम नंदन अकेला होता चला गया। एक बार तो उसने फ्रेंड बुक पर पोस्ट कर दिया था कि मैं मरना चाहता हूं। जानते हो फिर भी सबने उसको इग्नोर किया था.. सब को लगा शायद मज़ाक कर रहा होगा.. और सबको किसको गिन कर पैंतीस दोस्त थे वहाँ भी जो नाम मात्र के दोस्त थे। पंखे से लटक कर जान दे दी उसने। उसके सूइसाइड लेटर में उसने लिखा था कि कोई हीरो हिरोइन आत्म हत्या कर ले तो सब स्टेट्स लगाते है कि हम थे आपको बात करनी चाहिए थी.. आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था.. आप अकेले क्यों हो गए थे? पर यहां तुम्हारे बीच एक आदमी सामने से मदद मांग रहा है तो किसी को फर्क़ नहीं पड़ता है। इस दिखावटी दुनिया में नहीं रहना उसे। उसको खोने के सदमे में हितेन भाई अपनी पढ़ाई का भी बहुत नुकसान किए है.. तब से ठान लिए है कि किसी को अकेला महसूस नहीं होने देंगे। ये नाटक राम नंदन को समर्पित है और युवा पीढ़ी को बताया जाएगा कि आत्महत्या ना करना है और ना ही किसी को करने देना है। एक जागरूकता अभियान चलाये है हितेन भाई। "
अजित की बाते सुनकर विनय सोच में पड़ गया। उसे खुद पर शर्म आ रही थी कि इतने अच्छे इंसान पर तब से शक कर रहा था। हाँ सही ही तो है जिस तरह वह खुद अपने अंतर्मन से जुझ रहा है उस पर अगर सामाजिक बहिष्कार भी झेलना पड़े तो अवसाद तो होगा ही पर सही कह रहा है अजित की जान देना कोई समाधान नहीं है। हमे खुल कर बात करनी चाहिए। अपना नहीं तो अपने माँ बाप का सोचना चाहिए जिन्होंने जाने कितने मुश्किलों से पाला पोसा है और हम जरा सा तनाव नहीं झेल पाते है। विनय ने सोच लिया कि अपनी कमजोरियों को दूर कर वह हर माहौल में फिट होने की कोशिश करेगा।
अगले दिन एक नए उत्साह के साथ वह कॉलेज पहुंचा। कैन्टीन पहुंच कर हितेन को गले लगा लिया। हितेन विस्मय में पड़ गया कि ये इसे क्या हुआ। फिर अजित को मुस्कराते देख समझ गया।
" अच्छा तो तूने उल्टी कर दी है "
" नहीं भैया! अजित ने तो हमारी आँखे खोल दी है। हम अब खुद को बदल देंगे। पर हार नहीं मानेंगे। हम आपका साथ देंगे ताकि गांव से और भी लड़के बेफिक्र होकर शहर पढ़ने आ सके।" विनय ने मुस्कुराते हुए कहा।
" नहीं विनय! मत बदलो किसी और के लिए खुद को.. बस खुद के लिए बदलो.. तुम्हारे लिए तुमसे अच्छा दोस्त और कोई नहीं हो सकता है और हाँ याद रखना हर एक दोस्त जरूरी होता है "
हितेन ने हँस कर विनय को गले लगा लिया।
-सुषमा तिवारी
(inspired by Mukund Mishra ki story)
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