मेरे और मेरे ख्वाबों के बीच
बस इतना सा फासला है
कोई लकड़ी का पुल नहीं है
जो है वो बस मेरा हौंसला है।
जाने कितनी दूरी तय कर आई
एक छलाँग कौन सी बड़ी बात है?
बात बराबरी की कभी थी ही नहीं
अपनी-अपनी कोशिशों का मामला है।
नाप लूँगी गहराई इस खाई की
बित्ते भर चाहत की बस जरूरत है
कैसे नापूंगी गड्ढे में गिरी सोच को?
ढर्रे से गिरा आदर्श अंदर से भी खोखला है।
मुझे नजर आते है चांद और सितारे!
कदमों में बिछने को सदियों से तैयार...
जिन्हें नजर आती है अटकलों की दीवार
उनकी उम्मीद का चश्मा हल्का सा धुँधला है।
-सुषमा तिवारी
Comments
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Wahh
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