लाखों किलोमीटर दूर से तो वह और हसीन नजर आती हैं। परंतु उनके आंसू? ओह! पता था ,आज वह फिर रोने वाली हैं। उनके हृदय विदारक रुदन से उत्पन कंपन की अनुभूति यहां तक होती है। रोएँगी क्यों नहीं भला? वहाँ घर में चलते युद्ध और रहवासियों का दर्द उनके लिए असहनीय है। उन्होंने तो अपना सर्वस्व दे दिया ताकि घरवाले अपने बच्चों का भरण-पोषण कर सकें पर वह लोग हैं कि विकास की आँधी में घर के सारे संसाधन तहस-नहस करते जा रहें हैं। अब ना चाहते हुए भी वह चाहती हैं कि घरवाले सोये रहें क्योंकि उठते ही सब भक्षक बन जाते हैं।
" जानते है उनकी हालत देख कर अब मुझे भी डर लगता है कि अगली बारी मेरी या आपकी भी हो सकती है " दूसरों के लिए शीतलता के प्रतीक का मन भी उष्णता से भर उठा।
" क्या कहा मैं? असंभव! तभी मैंने ये जल - जीवन - परिवार के झंझट में सबको नहीं फँसाया.. इनकी मिन्नते देख मैंने धैर्य बाँधा हुआ था। अब सोचता हूं बहुत हुआ खेल खत्म ही करूँ "
हमेशा ही क्रोधित जान पड़ने वाले अंगारों की तपिश सब कुछ भस्म करने पर आतुर दिखी तो उन माता ने वहीं दूर से ही मौन रहने का संकेत दे कर चुप करा दिया।
बस एक मौका और दे दो!
-सुषमा तिवारी
मौलिक एवं स्वरचित
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