गतांक से आगे
(दिल का क्या कसूर)
सोनाली का मन सुबह से ही अनमना सा हुआ था। कल की घटना दिमाग में घूम रही थी। वैसे तो वो बहुत हिम्मती लड़की थी पर जाने क्यों कल आदित्य के सामने कमजोर पड़ गई थी। ऐसे तो मरने मारने पर उतारू हो उठती थी, पर उसे समझ में आ गया था शायद इस शहर की बात कुछ और थी या आदित्य में कुछ बात... नहीं नहीं ऐसे कमजोर पड़ना उसकी फितरत में नहीं है। अमृता उससे नाराज थी। होगी भी क्यों नहीं? उसके मना करने के बावजूद सोनाली आदित्य से जा भिड़ी थी। सब को क्या जवाब देंगे सोच सोच कर अमृता को बुखार लग गया था।
" कॉलेज नहीं आएगी?"
सोनाली के सवाल के जवाब में अमृता ने ऐसे घूरा मानो नजरों से ही खा जाएगी।
" ओके ओके.. टेक रेस्ट.. शाम को मिलते है, आज मुझे लाइब्रेरी भी जाना है। तुम दवा ले लेना टाइम पर प्लीज!"
अमृता ने अपनी मुस्कराहट अंदर ही दबा ली। सोनाली के इसी खुशमिजाज दिल की कायल थी वो.. क्या लड़की है, रत्ती भर का भी टेंशन नहीं लेती है।
कॉलेज की ओर बढ़ते हुए सोनाली ने गौर किया कि कई दर्जन आँखे उसे घूर रही थी। पर उसे कहाँ फर्क़ पड़ता था इन बातों का वैसे भी। उसके दिमाग में एक ही चीज़ चल रही थी कि आज बास्केट बॉल कोच से मिलकर आने वाले कॉलेज टूर्नामेंट के लिए रजिस्टर भी करवाना था। सोनाली ऑफिस के पास पहुंच कर चपरासी से जैसे ही कोच के लिए पूछना चाह रही थी कि वो बोल पड़ा
" आपने अपना नाम सोनाली माथुर बताया?.. आप को ही खोजने जा रहा था मैं इतिहास की क्लास में.. डीन सर ने बुलवाया है आपको.. आप पहले उनसे मिल लीजिए "
डीन ने बुलवाया है पर क्यों? क्या कल की घटना को लेकर.. हाँ सुना था आदित्य उनका भतीजा है.. फिर भी मेरा क्या कसूर भला? देखते हैं.. सोचते हुए सोनाली ने डीन ऑफिस का रुख किया। कॉलेज के इस हिस्से में आबादी शून्य नज़र आ रही थी। कॉलेज का प्रबंधन विभाग काफी सख्त था जिस वजह से इस भाग में लड़के लड़किया फटकते नहीं थे। सोनाली तो चिंता करने के बजाय बाहर बागों में सजे गुलमोहर के पेड़ों को देख रही थी। कल की बारिश के बाद और धुले धुले नजर आ रहे थे।
" मे आई कम इन सर?"
अंदर से सर ने हाथ से इशारा किया अंदर आकर सामने कुर्सी पर बैठने का। सोनाली पहले ठिठकी फिर चुपचाप बैठ गई।
" सोनाली बेटा! कैसा लगा कॉलेज आपको?"
सोनाली सर के इस अप्रत्याशित व्यवहार से थोड़ा हतप्रभ थी। क्या मतलब है कॉलेज कैसा लगा हूंह! मुझे कौन सा खरीदना था। मन की उथल-पुथल को शांत कर मुस्कराते हुए बोली
" सर, बेहतरीन! कैम्पस और हॉस्टल दोनों ही अच्छे है.. और अकादमिक का तो नाम सुनकर ही पापा ने एडमिशन करवाया है तो कोई सवाल ही नहीं "
" बेटा! मैं कल की घटना के लिए शर्मिंदा हूं। दरअसल आदित्य मेरा भतीजा है और बहुत ही होनहार लड़का है। घरेलु अनबन ने उसे ऐसा रीबेल बना दिया है, वर्ना भला आप बताओ बेटा मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़ कर ऐसे कला संकाय में कौन पढ़ने आता है.. हाँ ये बात और है कि मैं उसे लाया हूं जबरदस्ती यहां की बाप बेटे के बीच का तनाव कुछ कम हो सके। मैं उसकी हर मनमानी को भी प्यार से मजबूर बर्दाश्त करता हूं पर कल जो सुनने में आया है वो बर्दाश्त के बाहर है। आजतक एक भी शिकायत किसी लड़की से बदतमीजी की नहीं आई थी पर अब.. अब पानी सर के उपर चला गया है। ये बात बाहर जाएगी तो गर्ल्स हॉस्टल में छोड़ने वाले पेरेंट्स को मैं क्या जवाब दूँगा.. कर्नल साहब ने भी मुझसे आपकी सुरक्षा का वादा लिया था.. और मैं.. मैं नाकाम रहा "
बोलते बोलते उनके आँखों में आंसू आ गए और गला भर्रा आया था। सोनाली को यकीन नहीं हो रहा था कि बाहर से नारियल से कड़क दिखने वाले सर इतने जल्दी भावुक या यूं कहें कि दुखी हो बैठेंगे, पर शायद उनका दर्द सच्चा था तभी।
" अरे सर प्लीज आप मत.. कुछ नहीं हुआ ऐसा.. आप प्लीज पानी लें " सोनाली ने पानी का ग्लास आगे कर दिया।
" थैंक्स बेटा, आप जो भी सजा मुकर्रर करोगे आदि को भुगतना होगा, बस आप ये बात कर्नल साहब से मत कहना "
" सर आप निश्चिंत रहिये, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है जितना आप तक पहुंचाया गया है.. सब ठीक है ।मुझे कोई शिकायत नहीं है किसी से भी.. फिर सजा का प्रश्न कहां आता है " सोनाली ने आदित्य को उसकी हिमाकत के लिए माफ़ कर दिया था..आखिर गलती उसकी भी थी, उकसाया तो उसने खुद ने ही था।
" मैं चलती हूं सर.. मुझे लेक्चर अटेंड करनी है "
सोनाली जैसे ही बाहर आई उसने देखा दीवार से खुद को टिकाये आदित्य वहाँ खड़ा था। सोनाली ने एक नजर उसपर डाली फिर सिर हिलाते हुए आगे बढ़ चली।
" मेरे हर गुनाह की माफी दिए जा रहे हो
तुम भी प्यार में हो मेरे
ये बताये बिना सनम! तुम कहां जा रहे हो "
सोनाली ने एक बार घूम कर देखा, फिर " बेशर्म" बोल कर आगे बढ़ गई।
" अरे सुनो तो.. ये बिलकुल असली है.. ताजा लिखा है "
आदित्य पीछे-पीछे चला आ रहा था। सोनाली ने कदम तेज कर दिए क्लास की ओर।
अचानक से आदित्य उसके सामने आ गया।
झटके से सोनाली के हाथो से किताबें गिर गई।
" क्या प्लीज तुम मुझे परेशान करना बंद करोगे? कल के लिए माफी चाहती हूं मैं.. प्लीज हाथ जोड़ कर। बात सिर्फ मेरी नहीं है.. मैंने अपनी रूम मेट को दुखी कर दिया, अन्दर सर की आँखों को देखकर मुझे ग्लानि महसूस हुई.. पर तुम तो शर्म तमीज सब बेच चुके हो.. देखो मिस्टर! मैं अभी क्लास के लिए लेट हो रही हूं। ये मत समझना मैं भाग रही हूं, अगर कुछ कहना सुनना हो तो लाइब्रेरी के बाहर शाम को मिलना.. अभी रास्ता छोड़ो! "
सोनाली शोलों सी बरसी थी। आदित्य बस देखता रह गया। उसकी कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई। ग्रे सूट में बादल लग रही थी अब बरसे तब बरसे। चेहरा तमतमा कर गुस्से वाला गुलाबी हो उठा था। आदित्य धीरे से साइड हो गया और सोनाली आँधी की तरह वहाँ से चली गई।
आदित्य धीरे धीरे चलते हुए डीन ऑफिस के अंदर दाखिल हुआ। उसे मालूम था आज फिर लंबा चौड़ा भाषण सुनने को मिलेगा। पर उसे अच्छा लगता था, चाचाजी का उसके लिए चिंता करना वर्ना अस्थाना साहब यानी उसके पिताजी को अपने बिजनेस और रुतबे के अलावा किसी की सुध नहीं होती है।
सोनाली क्लास में पहुंची तो लेक्चर शुरू हो चुका था। शर्मिन्दगी के साथ वह पिछली सीट पर जाकर बैठ गई। दिमाग में वही बात हथोड़े की तरह लग रही थी कि क्या वजह होगी जो एक मेडिकल का स्टूडेंट सब छोड़ यहां ऐसे जिंदगी बिता रहा है। उसका ध्यान ब्लैक बोर्ड पर गया जहां मैडम चौक से कुछ लिख रही थी, कुछ मिटा रही थी। पिछली बार के लिखे हुए कि धुंधली परछाई उस पर रह जाती थी जिस वजह से बाद में लिखा हुआ स्पष्ट नज़र नहीं आ रहा था। जिंदगी भी कुछ ऐसे ही थी। भूतकाल की घटनायें अगर दिलों दिमाग से अच्छी तरह साफ ना कि गई हो तो वर्तमान धुँधला ही नजर आता है। आदित्य का वज़ूद सोनाली को डेढ़ दिन में ही अपहृत कर चुका था।
लाइब्रेरी के सामने जब आदित्य को खड़ा देखा तो सोनाली का दिमाग फिर घूम गया ।
ये इंसान चाहता क्या है?
क्रमशः
©सुषमा तिवारी
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Kya chahta h ye insaan
@indu. बस जल्द ही पता चलेगा
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