काग़ज़ पर शहर

कई परियोजनाएं, कई विकास सिर्फ सरकारी काग़जों पर होते हैं, उन्हें नग्न आँखों द्वारा देखना दुर्लभ है.।

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 26 Apr, 2021 | 1 min read
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डाकिया डेढ़ घण्टे की मशक्कत के बाद वहाँ पहुंचा था। उसकी हालत पसीने से खराब हो चली थी जिस पते को खोजने के लिए और उसे वहाँ सिर्फ एक खंभा दिख रहा है। उसने कई लोगों से पूछा तो सबने नई बस्ती का पता यही बताया था। परन्तु उसे यहां कोई बस्ती दिख ही नहीं रही थी। उसने पास से गुजर रहे एक आदमी को रोक कर पूछा

" भाई साहब! ये नई बस्ती का पता..."

" हाँ हाँ यही है! सरकारी चिट्ठी लाएँ है क्या? आप चिट्ठी यहीं टाँग दीजिए...जिसका होगा शाम को ले जाएगा "

" हाँ जी हाँ! सरकारी महकमे से आया है, इस बस्ती की पुनर्वास परियोजना सफ़लता पूर्वक पूर्ण करने पर मंत्री जी को सम्मान मिलने वाला है तो यहां के सभी लोगों को निमंत्रण भेजा है। पर भाई! लोग कहाँ है और बस्ती कहां है?" डाकिया यहाँ वहाँ सर घुमा कर एक अदद घर खोजने की असफल कोशिश के बाद बोला। 

" हा.. हा.. हा.. देखिए यहां के लोग इस समय अपने घर-बार या काम-धाम पर होते हैं। कमाल है कि इस बस्ती की सफल पुनर्वास की रंगीन चित्र के साथ ख़बर तो अखबार में भी छपी और आपको बस्ती दिखी ही नहीं ?"


सुषमा तिवारी


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Sushma Tiwari

SushmaTiwari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    उम्दा लघुकथा👌👌

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