मन की गांठ

तन के घाव सब को दिखते है.. मन के घाव दर्द ज्यादा देते हैं

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 07 Jun, 2020 | 1 min read
Bulling Depression Social boycott

" क्या शोषण केवल शरीर का होता है? मन पर लगे घाव क्या दुखी नहीं कर सकते क्या?" पीहू अपनी बात खत्म कर सर झुका कर रोने लगी।

  नैना अवाक् सी खड़ी सोचने लगी कि कहां उससे चूक हो गई जो अपने ही बेटी के मन में इतने दिनों से चल रहे द्वंद को देख ही ना पाई। लगभग साल भर होने को आया जब से पीहू ने खुद को सबसे काट सा लिया था। ना कोई दोस्त ना ही किसी से मिलाना जुलना बस कमरे में बंद रहती थी हालांकि अपनी पढ़ाई पर कभी उसने इस बात का असर नहीं आने दिया था। नैना के टोकने पर पहले तो खूब लड़ती थी पर बीते कुछ दिनों में वो भी बंद कर दिया था और जरा जरा सी बात पर रोने लगती। अब पीहू ने एक हफ्ते से एक कॉलेज जाना भी बंद किया हुआ था तो नैना का सब्र छूट गया। नैना के यह पूछने पर कि क्या कोई कॉलेज में छेड़खानी वगैरह तो नहीं करता? अगर पढ़ाई में परेशानी है तो इस साल परीक्षा नहीं भी देगी तो कोई परेशानी नहीं है तो जैसे गुस्से में ही सही पीहू के मन की सारे गांठें खुलते चली गई। कैसे वो स्कूल के दिनों से ही बुलिंग का शिकार होते आई थी। कभी रूप को लेकर, कभी शरीर को लेकर तो कभी किसी बात पर उसे हमेशा तंग किया जाता रहा था। कॉलेज शुरू करने पर भी पीहू पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किसी से दोस्ती नहीं कर पाई जिस कारण यहां भी उसे अलगाव झेलना पड़ा था। तरह तरह की बातों से नन्हा मन छलनी हो गया था।

नैना ने पीहू के कंधे पर हाथ रख कर कहा " पीहू! तुम्हें यह सब मुझे पहले बताना चाहिए था या शायद मैं ही अपना फर्ज निभाने से चूक गई जो तुम्हें समझ ना पाई"

" नहीं माँ! आपकी गलती नहीं है। मैंने कभी कहा ही नहीं आखिर। माँ! अब मैं पढ़ना चाहती हूं, परीक्षा भी जरूर दूंगी और अपने आत्मबल से अपनी नई पहचान बनाऊँगी।"

नैना को अब अवसाद मुक्त होने की राह पर अग्रसर नव ऊर्जा से भरपूर पीहू दिख रही थी। 

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