कभी वे अपने पहनावे को देखते, तो कभी अपनी जुबान की लरज को संभालते लेकिन बोलते वक्त लफ़्ज़ मानो उनके हलक में आकर थम जाते। राधा के नए पड़ोसी बेल बजाकर उसके दरवाज़े पर खड़े यूँ हिचक रहे थे मानो कोई दूसरी दुनिया से मुखातिब होने जा रहे हों।
राधा ने देखा कि धर्म की चौखट के उस पार खड़े पड़ोसी शायद किसी मदद की उम्मीद में थे मगर दुविधा के दोराहे पर खड़े दिखाई पड़ रहे थे।
राधा ने एक सरसरी नजर उन पर दौड़ाई और मुस्कराते हुए कहा,
" घबराइये नहीं! हमारे यहाँ टीवी पर कोई न्यूज़ चैनल नहीं चलता।"
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