साँसों की कीमत

साँसे अनमोल है, आक्सीजन सीमित है। एक काल्पनिक कथा पर हकीकत दूर नहीं

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 19 Apr, 2021 | 1 min read

"सुनते हैं! आज चलिए ना फ्रेश हवा खाने चलते हैं।" अर्चना मनुहार कर रही थी। 


"अरे यार! जो स्टोर किया हुआ है घर में आक्सीजन वही यूज करो, बाहर जाने का रिस्क मत लो, वो रेस्तरां बहुत दूर है.. साइकिल से जाना मुश्किल है।" मनु प्यार से समझाया।


"आपको तो बस बहाने चाहिए...आज मैं नहीं मानूँगी, चाहे साइकल से जाना पड़े या पैदल.. जाना हैं बस! सारी सहेलियाँ जा कर आई है वहाँ "।

 अर्चना की जिद के आगे मनु ने उसे शाम की स्वीकृति दे ही दी। 


" देखो भला! अब ताजी साँस किसी महंगी डिश की तरह बड़े रेस्तरां में मिलती है वो भी प्री ऑर्डर करके। वर्ना बंद सिलिंडर की आक्सीजन ही नसीब में है। धरती का प्रदूषण पर्यावरण को खा चुका है। पिताजी ठीक ही कहा करते थे। अब श्रीमती जी की बात ना मानू तो भयंकर दशा होगी। "

मन ही मन बड़बड़ाते हुए मनु काम निपटाने लगा। 


वहाँ रेस्तरां रात में पहुंचना था तो दोपहर में ही वे लोग निकल पड़े। उन्होंने चेहरे पर एंटी पॉल्यूशन मास्क चढ़ाया और साइकल से रुक रुक कर आगे बढ़ चले। उनकी साँसे थोड़ी ही देर में फूलने लगी थी। 


बाहर की जहरीली हवा नाक और मुँह से तो नहीं पर शायद रोम-रोम से अंदर समा रही थी, मनु का अंतर्मन एक बारगी अपने निर्णय पर पश्चाताप कर रहा था पर अब उपाय यही कि जल्दी से जल्दी गन्तव्य तक पहुँचा जाए। 


रेस्तरां के सामने पहुंचते ही उन्हें राहत मिली पर शाम ढल कर रात चढ़ चुकी थी। बड़े - बड़े अक्षरों मे बोर्ड पर लिखा था "कार्बन मोनो आक्साइड रहित क्षेत्र"। सच ऐसी जगह बची भी है! 

अर्चना के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। पर ये क्या इतनी लंबी लाइन? 

काउन्टर पर "फुल" के बोर्ड को देख कर लोगों मे गुस्सा भर उठा और वहाँ भगदड आपाधापी मच गई। 

"अरे अर्चना सम्भालो खुद को..." 

पर तभी मनु का मास्क किसी ने खींच दिया। 


" हाँss मेरा दम घुट रहा है! चिल्लाते हुए मनु चीख उठा । 

ओह सपना था ये, इतना भयानक सपना! 


वह तुरंत उठ कर नहाने चला गया। आज पहली बार उसे अपने नींद से जागने पर इतनी खुशी हुई। एक भयानक सपना, या शायद आने वाले भविष्य की आहट.. पर वह तो सचेत हो चुका था। बाहर बरामदे में आकर जब चाय पीने बैठा तो उसके पिताजी अखबार पढ़ रहे थे। हमेशा की तरह बढ़ते हुए प्रदूषण की ख़बरों ने उन्हें परेशान कर रखा था। 


" पिताजी मैं जरा गाड़ी की सर्विस करा कर आता हूं। "


" आज चांद कहाँ से निकला? कितने रोज से मैं चिल्ला रहा था, गाड़ियों से निकलता प्रदुषित धुंआ अच्छा नहीं.. पर तुम्हारा एक ही जवाब होता.. हमे क्या? एक ज़न के कुछ करने से क्या होगा? "


" हाँ पिताजी! अक्ल आ गई मुझे... एक - एक के करने से ही होगा वर्ना सब खत्म हो जाएगा। मैं चलता हूं और हाँ अब से हम साइकिल उपयोग करेंगे, बहुत जरूरी होने पर ही गाड़ी निकालेंगे " 

मनु कहता हुआ निकल गया। 


अर्चना और बाबुजी अभी भी समझने की कोशिश कर रहे थे पर मनु को कल रात के सपने में भयानक भविष्य की झलक दिख चुकी थी। मुफ्त में मिली हवा और प्रकृति की कीमत ना पहचानी तो भयंकर दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे जिसका ट्रेलर वो देख चुका था। अब उसे कोशिशें बढ़ानी थी और लोगों को भी जागरूक बनाना था, शायद आज लोग गाड़ी के बिना रह जाए पर कल साँस के बिना नहीं रह पाएंगे। 


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Sushma Tiwari

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Babita Kushwaha · 3 years ago last edited 3 years ago

    सच में ड़र लगता है कहीं भविष्य ऐसा ही न हो जाये। बहुत अच्छा लिखा

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत बढिया लिखा है, लेकिन डराता भी है

  • Kamlesh Vajpeyi · 3 years ago last edited 3 years ago

    कठोर वास्तविकता..!

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