स्टेशन पर आ तो गए पर अब ना तो बबुआ का फोन लग रहा है ना कोई आया लेने। क्या करती आशा, अब पतिदेव की तबीयत इतनी खराब थी की बस कह दिया हम आ रहे हैं, तुम्हें तो दस बरस से फुर्सत ना मिली। इलाज कराना था इनका जो, चली आई, अब क्या? आँखों में खुन के आँसू थे, क्या करे शहर में वापस कैसे जाए, भीख माँगना ना पड़े तभी श्यामा ने कहा, "बहन रो मत! हमारे मोहल्ले चल, हम एक दूसरे का सहारा है वहां, ना भीख मांगते हैं ना जिल्लत की रोटी.. मेहनत करके खाएंगे, बहुत बड़ा परिवार है, खुन का नहीं पसीने और प्रेम का रिश्ता समझ। बस चली आई पति को लेकर और श्यामा के कंधे से कंधा मिलाकर ढो लेगी अपने बुढ़ापे का भार वो भी इज़्ज़त से।
अपना बोझ
भीख नहीं मांगेंगे, सम्मान की रोटी खाएंगे
Originally published in hi
Sushma Tiwari
19 Aug, 2019 | 0 mins read
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