तपती दुपहरी, आसमान लाल पीला हुआ पड़ा था, खट से गेट पर आवाज़ आई तो सुरु बाहर दौड़ी।
"कौन है?"
" दीदी! बहुत गर्मी है, बैठ लूँ छांव में?"
सुरु ने देखा हाथ में ढोल, सर पर कपड़ों की गठरी, गोदी मे बच्चा भी मूक नज़रों से देख रहा था।
"बैठ जा, ले पानी पी ले।"
"बच्चे को भी कुछ खिला दे, मैं देती हूं"...
"नहीं दीदी! है रोटी मेरे पास खिलाती हूँ, आपका शुक्रिया! "
सुरु को भी ट्यूशन लेने जाना था।
पूछा-" आदमी कहां है तुम्हारा ? बच्चे के साथ इतनी गर्मी में भटक रही हो?"
"दीदी! आदमी अपनी कमाई पी के उड़ा देता है, पड़ा है घर पर नशे में।अब बच्चे को जन्म दिया है तो जिम्मेदारी निभानी होगी ना?"
वो उस औरत को ध्यान से देखती है क्या अन्तर है इसमे और मुझमे, पति नशे की लत के वजह से वो भी परेशान है, ज़रूरतें पूरी करनी होती है। बस ये ढोल बजा के बता सकती है और मैं सभ्य समाज़ के कायदों में बंधी हूं।
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