माँ! आप दोनों जाओ आराम से हम ठीक है, शादी में कोई तो होना चाहिए, मामू क्या कहेंगे, हमे एग्जाम की त्यारियां करनी है। हाँ, मैंने भेज तो दिया पापा माँ दोनों को अब मैं और मेरे भाई बहन, हम तीन अकेले है घर पर। ऐसा नहीं की पहली बार इससे पहले भी रहे है, हम सभ्य और कुलीन लोगों के सोसाइटी मे रहते हैं, डरने का सवाल नहीं था। पर पिछले कुछ हफ्तों से जैसे डर घर कर गया है सबके दिल में। 6 मौतें! अजीब था? कहने को सब अचानक और प्राकृतिक था पर मेरे मन का 007 मानने को तैयार नहीं था, क्या हो की अगली बारी हमारी हो? माँ से कहा था तो कहा की बेकार की किताबें मत पढ़ा कर, बस इतना समझो सावधानी मे सुरक्षा है।
मैंने सोच लिया था अब जो मौका है उड़ी हुई रातों की नींद का इलाज किया जाए। वॉचमैन से पूछताछ की, "क्या लगता है देव भईया, कुछ अजीब हुआ है बीते महीनों में यहां जो नहीं होना चाहिए?" "अब इतनी मौतों से ज्यादा अजीब का होगा बिटिया! नहीं मेरे कहने का मतलब इससे पहले? बिटिया यहां सब मिल कर रहते है प्यार से रहते हैं और आज तक किसी ने हमे कभी चिल्ला कर बात नहीं की दूसरों से क्या दुश्मनी होगी, हाँ बस उस दिन सुन्दर बाबू, 404 वाले उनको परेशानी हुई हम ही ध्यान नहीं दिए। कौन जानता था वो नहीं रहेंगे कुछ दिन बाद। क्या हुआ था भईया? सुन्दर बाबू के घर से कोई लड़की रोती भागी थी, उन्होंने डाँटा था की यूँ सामान बेचने के बहाने छोटे लोग घुस के लूटपाट करते है आइंदा ख्याल रखने को। सुन्दर बाबू की तो पुलिस महकमे मे अच्छी-खासी पहचान भी है ये सोच हम माफी मांगे और वैसे भी सही थे भाभी और बच्चे बाहर गए थे। कौन जानता था करंट उनकी जान ले लेगा। मेरे दिमाग में भी करंट दौड़ा ये सब मौतें उस घटना के बाद ही हो रही है। मैंने भईया से रजिस्टर की एंट्री से उस लड़की का नंबर लिया, डायल करने पर किसी बुढ़ी औरत ने उठाया, मैं एड्रेस लेके वहाँ पहुंची। उसने बताया सांवरी उनकी पोती थी इकलौती कमाने वाली, बेटे बहू का देहांत हो चुका था और पोता पढ़ाई कर रहा था, पर अब वो भी काम पे जाता है,सांवरी के बाद। बाद! मतलब कहाँ गई? नहीं रही, ख़ुदकुशी कर ली बहुत गलत हुआ था उसके साथ पुलिस ने भी मदद नहीं की। मैंने उनके फॅमिली फोटो में देखा दोनों भाई बहन को। फ़िर मैं पुलिस स्टेशन भी गई वहाँ भी वर्मा अंकल ने कहा कि ये जगह तुम्हारे लिए नहीं है पापा गुस्सा होंगे वो फ़र्जी केस था लड़की के भाई को दो दिन अंदर भी रखा था तब दिमाग ठिकाने आया।
मुझे अब कहानी क्लीयर थी बस अब सांवरी के भाई सोनू से मिल कर बात करनी थी। घर पहुंचते लेट हो गया था, पिज्जा ही ऑर्डर कर लिया।दरवाजे की घंटी बजी, पिज्जा आ गया था। मेरे भाई ने पिज्जा वाले को हॉल में बिठाया क्यूंकि उसने बोला की उसकी तबीयत ठीक नहीं पानी चाहिए। मैंने देखा वो सोनू था। चेहरे पर गुस्सा आँखे लाल, मैंने इशारे से दोनों को अंदर भेजा और मेरी उंगलिया स्पीड डायल 100 पर थी। मैंने बोला अब हमें भी मार दोगे? क्या सांवरी वापस आ जाएगी? वो उछल पड़ा, नहीं तु.. तुम ऐसा क्यूँ.. कैसे.. ।फिर वो फूट के रोया बोला हाँ तुम लोगों का सभ्य समाज मेरी बेहन की गलती क्या थी की किसी कुलीन आदमी की हवस का शिकार हुई और ये सिस्टम? इन्साफ कौन दे उल्टा हमें ही चोरों का ग्रुप बताया। हाँ सबके घर से उनके प्रिय जनों को छीन लूंगा, दर्द का एहसास कराऊंगा बिना सबूत छोड़े, जैसे मेरे पास नहीं सुन्दर बाबू के खिलाफ। "अच्छा कभी सोचा है की एक की गलती की सज़ा सबको? क्या फर्क़ है सुन्दर और तुम्हारे बीच? तुम अगर ये रास्ता ना अपनाते तो शायद मैं मदद कर पाती, सबूत भी मिलते बस इतना ही कहना है अब जाओ, जीओ और जीने दो।तुमने कई बहनो से भाई और भाई से बहन छिन लिया है। पता नहीं क्यूँ वो चुप चाप चला गया मैंने सोचा कल पुलिस मे बताऊंगी सुकून की नींद आई उस रात। सुबह पता चला उसने खुद गुनाह कबूल कर लिया है।
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