डर की कहानी

वो खौफनाक मंज़र था

Originally published in hi
Reactions 0
615
Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 02 Sep, 2019 | 0 mins read

डर.. कहानी है ये डर की ही, आज भी सब जब करगिल विजय दिवस को याद कर रहे थे मुझे वो दिन 26 जुलाई 2005 का याद आ रहा था। मुम्बई की बारिश, मैंने पहली बार कुछ ऐसा डरावना देखा था।

सुबह से तो मौसम बारिश का था, काम निपटा कर मैं दोपहर की झपकी लेने चली गई, अचानक काफी आवाजें आ रही थी घर से, मेरी आँखे खुली तो पांच बज गए थे और खिड़की के बाहर बादलों का घुप्प अंधेरा था। डर के मारे जब मैं दूसरे कमरे में गई तो देखा मम्मी के साथ कई और लोग बैठे है सामान लेकर। वो बोली, बादल फटा है, मुम्बई डूब रही है पापा भाई सब आ गए हैं आधी दुकान डूब गई है हमारी। मैं खिड़की पर फिर से गई, हम पांचवी मंजिल पर थे और पानी पहली मंजिल को पार कर रही थी। निचले इलाकों जिनके छोटे मकान थे सब हमारी बिल्डिंग में शरण लिए थे, सीढ़ियों पर, घरों में जैसे सबके बीच आज कोई भेद ना रह गया हो। उन सबकी आंखो मे डर दिखा, सब कुछ खो देने का डर। हम सुरक्षित थे पर क्या होगा आगे सब डरे थे, दो दिन तक चीख पुकार चली, पानी उतर जाने के बाद भी सुनामी के अफवाह से लोग भागते दिखे, चोरों ने फायदा भी उठाया। सब कुछ खत्म होने के बाद मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों का डर सबमें था। वो दिन भयावह था, हमारे कितने ही परिचितों के परिवार वाले घर लौट कर कभी ना आए ना ही उनका शरीर, समुद्र सब कुछ निगल चुका था। हमेशा के लिए लापता हो गए। पर एक बात थी ऐसी मुसीबत और डर का सामना सबने मिल कर किया और एक नई सुबह के लिए फिर से तयारी हो चली,क्योंकि वो कहते हैं ना.. मुंबई कभी रुकती नहीं।

0 likes

Published By

Sushma Tiwari

SushmaTiwari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.