स्त्री जीवन की व्यथा है ऐसी, नहीं है थोड़ा भी आराम
करते रहती, चलती रहती, थकती ना सदा अविराम
चाहत की दो बोल प्यार के बस मिल जाए हर शाम
आते ही कर्म पुरुष वो पूछे "करती हो या क्या दिन भर काम"?
स्त्री का सम्मान, छोटी सी बात है लेकिन यदि आप सम्मान पा रहे हैं तो बदले में देने की हिम्मत भी रखिए। इतिहास गवाह है सैकड़ों युद्ध और विनाश सिर्फ स्त्री का अपमान, और हृदय को आघात पहुंचाने की वजह से हुए। प्रकृति भी स्त्रीलिंग है, धरती भी और देवी भी पर लोग देवी क्रोध से भयभीत रहता है, प्रकृति से भी डरता है पर बात आम स्त्री पर आती हैं तो वो अबला कहलाती है। यही भेदभाव संतुलन बिगाड़ रहा है। कहते हैं स्त्री घर की लक्ष्मी है और आप बात कीजिए सब किसी ना किसी वजह से दुखी हैं, घर की लक्ष्मी दुखी हैं और आप समाज विकसित कैसे करेंगे? बात सही या गलत नहीं होती उसका तरीका सही या गलत होता है और फिर बढ़ती है गलतफहमी जो एक सही चीज को गलत बना सकती है। तो जरूरत है सम्मान दीजिए, सम्मान ग्रहण कीजिए और सामाजिक आनंद को बरकरार रखिए।
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