गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरी जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।
पवित्र नदियों के नाम को स्मरण करते हुए स्नान मंत्र! पूजा के समय देवी को स्नान कराते हुए पढ़ रही थी पर मन में एक ही बात आ रही थी, पानी कितना गंदा है इन नदियों का , जिस गंदे पानी में हम खुद उतरने को तैयार नहीं होते हैं वह पानी भला देवी देवताओं को स्नान के लिए मैं कैसे?? फिर ख्याल आया की नदियां तो इतनी पवित्र है पानी गंदा नहीं मान सकते ना! मतलब किसी की पवित्रता का इतना फायदा उठाओ कि जितनी चाहे गंदगी डालते जाओ। वाक्या ऐसा एक सामने आया भी था जब हम गंगा स्नान के लिए गए और मेरे बेटे ने नदी में उतरने से मना किया मम्मी पानी बहुत ज्यादा गंदा है, मैंने कहा यह गंगा मां है इनका पानी कभी गंदा नहीं होता है, और पानी पूरा काला दिख रहा था.. तो ठीक है मम्मी आप पानी पी कर दिखाओ! सच में हिम्मत ना हुई काला पानी पीने की, पवित्र तो है पर क्या हमने साफ रखा है पीने लायक.. जबकि सब जानते हैं की पीने योग्य वर्षा जल नदियों में संचय होता है।
भूमिगत जल तो वैसे ही खत्म होने के कगार पर है। कई जगह जैसे की हमारे गांव में भी चांपा कल सूख चुके हैं। नदियों की हालत कुछ खास अच्छी नहीं है। यहां विवरण देने की जरूरत नहीं, गूगल पर आसानी से सांख्यिकी मिल जाएगी, कितनी नदियां गायब हो गई, कितनी किस अनुपात में छोटी हो गई और कहां नदियों का उद्गम स्थान से ही नाता टूट चुका है। यहां बात सिर्फ ये करते हैं की अब जो बची हुई है उनको बचाना कैसे है?
हम सब अधिकांशत नदियों को देवी देवता या पवित्र मानते हैं, तो कृपया ध्यान दे घर के, मंदिर के देवताओं पर कचरा नहीं चढ़ाते पर उन्हीं मंदिरों से निकला कचरा भी नदियों में ही डालते हैं। एक बार सोच कर देखिये!
विकास की दौड़ में सब को नए मकान चाहिए, प्लॉट चाहिए, रिवर साइड व्यू के चक्कर में नदियों के किनारों को जबरन भर कर ज़मीन तैयार की जा रही है, नदियां पतली होती जा रही है। फिर बाढ़ की शिकायत किससे करने वाले है, सरकार से? मांग है तभी पूर्ति की होड़ है याद रखिए।
पेड़ बचाने होंगे, वर्षा का अनुपात पेड़ पर निर्भर करता है और नदियां वर्षा पर। साफ़ जल और हवा का प्रबंध एक साथ हो जाएगा।
अवैध निर्माण रोकने होंगे जिनसे नदियां गंदे नालों मे तब्दील होकर रह गई है, अवैध खनन रोकना होगा, नदियां खत्म हो जाएगी।
याद रखिए नदियां सिर्फ पानी का स्त्रोत नहीं है बल्कि कई जीव जंतुओं का निवास स्थल भी है, हम इन प्रजातियों के विलुप्ति का कारण नहीं बन सकते हैं। भारत नदियों का देश है, आप इससे इसकी पहचान छिन कर बढ़ती हुई जनसंख्या की प्यास कैसे मिटाएगे? तुलना कीजिए जिन देशों में नदी को सिर्फ नदी मानते हैं उनकी नदियाँ हमसे साफ़ है जो देवी मानते हैं। अपने अपने हिस्से की कोशिश सभी को करनी होगी, एक के प्रयास से नहीं सुलझाई जा सकती है ये मुसीबत, पानी सभी को चाहिए तो जिम्मेदारी सभी को लेनी होगी। आने वाली पीढ़ियों के लिए सुखी और विलुप्त नदियाँ रखने की बजाय हम अभी से नदियों का संरक्षण करें, खुद भी जिम्मेदारी ले, जैसे आप अपने परिवार के भरण पोषण की जिम्मेवारी सरकारों पर नहीं छोड़ते वैसे ही, उठिए लग जाइए काम पर, हम सबको मिलकर नदियों को बचाना है।
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