होली यानी रंगों का त्यौहार और मैं लाई हूं आपके लिए बिहार की होली!
रस भरी, रंग भरी मौज मस्ती से सरोबार होली!
दोस्तों मैं आपको सारण (बिहार) की पारंपरिक होली से परिचय कराती हूं। यहां होली मनाने की मान्यता वही है पौराणिक कथाओं वाली भगवान द्वारा होलिका के दर्प का दहन यानी अहम पर प्रेम और विश्वास की विजय। सबसे पहले मान्यता है कि की होली आते ही पूरे आँगन प्रांगण को साफ सफाई करके स्वच्छ रखा जाता है। होलिका दहन के दिन पूजन का विधान सिर्फ पुरुषों के लिए है महिलाये जलती हुई होलिका नहीं देखती, सिर्फ पूजन कर वापस आती है अपने परिवार के हर दुःख को होलिका के साथ जल जाने की प्राथना कर के। कथा पूजन किया जाता है पूर्णिमा के अवसर पर।
अगले दिल होली जिसे "धूलेंडी" भी कहा जाता है अर्थात धूल भरी होली खेलते हैं।
इसे दो भागों में बांटा जाता है सुबह दैत्यों की होली कीचड़, मिट्टी और गिले रंगों से मान्यता ये कि दैत्यों को लगा कि होलिका प्रहलाद को जला देंगी इसी खुशी में वो उत्सव मनाते है मदिरा पान भी करते हैं।
दूसरे भाग में दोपहर के बाद नहा धोकर नए वस्त्र पहन कर सूखे अबीर गुलाल के साथ एक दूसरे से मिलते हैं, पूजन करते है, नारियल और ड्राई फ्रूट्स का प्रसाद बनता है। गुझिया, माल पूआ, दही बड़े और कई पकवान बनते है और परिवार पड़ोस मिलकर खाते है।
होली गीतों का विशेष महत्व होता है कई टोलियों में लोग घूम घूम कर ढोल बजा कर गीत नृत्य, नाट्य मंच आदि करते है।
तो यह रही मेरी होली मोली, सारन की होली। आप भी अपने यहा की परंपरा से जरूर अवगत कराएं।
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