निश्छल प्रेम.. पहली बार जब उसका एहसास हुआ तो उम्र बहुत छोटी थी प्रेम समझने के लिए, और दूसरी बार जब हुआ ये एहसास तो सारे पल इकट्ठे होकर आँखों में तैरने लगे। प्रेम का अर्थ ही है समर्पण, त्याग और अपने अस्तित्व को ही भूल जाना.. जी हां निस्वार्थ, निश्छल और सच्चा प्रेम नाम लेते ही जो मूर्त आँखों में पहले दिखती है वो होती है "माँ" की।
वो माँ ही होती है जो प्रेम मे किसी तरह के बदले में मिलने वाले प्रेम की उम्मीद रखे बिना अपने हिस्से का प्रेम लुटाये जाती है। मैं छोटी थी तब से देखा अपनी मां को हर दिन अपने बच्चों को अपना वेलेंटाइन बनाते। हर रोज अपने जीवन का सारा क़ीमती समय अपने सपने हम पर लुटाते.. शायद इससे बड़ा कोई तोहफा और क्या होगा? हर दुःख में और हर सुख मे हमे भी माँ ही याद आती। फिर धीरे धीरे सब बड़े हो जाते हैं और तलाशने लगे अपनी खुशियां घूम घूम कर.. सच्चे प्रेम के इंतज़ार में, वो जिसकी छाया पहले से हमारे सिर पर होती है । पर माँ कभी शिकायत नहीं करती.. तो बताओ यही तो हुआ सच्चा प्रेम जो आपको कैद नहीं करता।
शादी के बाद तो हर वेलेंटाइन अपने प्रिय से, अपने जीवनसाथी से हम ढेरों उपहार, पार्टी, पाते ही रहे क्यूँकी मेरे पतिदेव को गिफ्ट देना, सरप्राइज देना पसंद है और कोई इच्छा ज़बां तक आते आते ही पूरी हो जाती है । फिर मेरे जीवन की रोशनी मेरा बेटा हमारी जिंदगी में आया। बच्चों के साथ आपका बचपन वापस आ जाता है। जब थोड़ा बड़ा यानी छह साल का था तो वेलेंटाइन डे आने वाला था और अपने पापा की तैयारियों को देख सवाल किया कि हम क्या सेलिब्रेट कर रहे हैं? हम जिनको प्यार करते हैं उन्हें थैंक्स बोलते हैं गिफ्ट देकर। वेलेंटाइन डे के दिन सुबह सुबह बेटा अपनी फेवरेट कार लेकर आया और अपनी तोतली ज़बां से "लव यू मम्मा" बोल कर कार मुझे दे दी। मैंने पूछा मुझे क्यूँ तो बोला आप ही तो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते हो। मुझे ठीक उसी पल माँ याद आ गई और समझ आ गया कि माँ और बच्चे का रिश्ता ही असली प्रेम का प्रतीक है। मैंने बेटे को गले लगाया और मम्मी को फोन लगाया " हैप्पी वेलेंटाइन डे माँ!" माँ कुछ देर चुप रही और फिर रोते हुए बोली "सेम टू यू बेटा"। हम दोनों भावुक हो गए और बेटा हंस रहा था.. मम्मा कॉपी कैट!
आज भी बेटा उतनी ही फिक्र उतना ही प्यार जैसे मेरी माँ करती थी.. मेरे आह करते ही तड़प
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