शेयर
अविनाश को आज बस की सीट बिल्कुल नहीं चुभ रही थी। हाँ हवाई जहाज में सफर करते करते बस अड्डे का रास्ता भूल गया था जो उसके गाँव को जाता था। अंधा धुन्ध दौड़ में आज शेयर मार्केट में सब कुछ गंवा कर पैर बस अपने घर की ओर मुड़ चले। मन असमंजस में था कि जाने घरवालों की प्रतिक्रिया क्या होगी? उस दिन की बात याद हो आई जब घर छोड़ा था।
"पापा मुझे नहीं करना आपकी दुकान और मकान का व्यापार.. मुझे कुछ बड़ा करना है.. बहुत पैसे बनाने है, और इस दिन के लिए इतनी पढ़ाई नहीं की थी कि छोटे से शहर में जिंदगी बेकार कर दूं.. मुझे बड़े शहर जाना है"
"तो जा! कर मेहनत.. खा ठोकर अगर तूझे शौक है.. पैसे कमाने का कोई शॉर्ट कट नहीं होता और व्यापार कोई छोटा नहीं होता.. अपनी पढ़ाई इसी व्यापार में उपयोग कर " पापा ने समझाने की कोशिश की थी।
" मेरा ऐसा कोई मन नहीं है.. आप.. प..आप..मेरा शेयर दे दो प्रॉपर्टी में से मैं अपने इन्वेस्टमेंट खुद करूंगा "
" बेटा! वैसे तो ये मैंने बनाई है सम्पति.. पर जो है तुम लोगों का है.. तुम्हारे भैया को कोई एतराज नहीं, तुम ले सकते हो.. आगे तुम्हारी समझदारी, बस एक बात याद रखना ये अंधी गलियों में दौड़ कर पैसा मत बना.. मेहनत कर पसीना बहा.. बरकत मिलेगी "।
पापा की सारी बातें आज याद आ रही थी, अब कौन सा मुँह लेकर अपनी बर्बादी की कहानी सुनाऊँगा? तभी फोन की रिंग बजी।
" पापा.. आप.. मैं आपको कॉल करने वाला था.. एक्चयुली वो.. "
" मैं सब जानता हूं बेटा! घर आजा.. हम इंतज़ार कर रहे हैं तेरा.. तूने हमारी सम्पति से शेयर निकाल लिए है पर हमारी ममता के टुकड़े नहीं हो सकते ना"
पापा की बातों से अविनाश की आँखे बह चली, सच रिश्तों में निवेश घाटे का सौदा नहीं हो सकता कभी।
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