राज़ ना खुले

श्रद्धा बनी रहे तो कुछ राज़ राज़ ही रहने दो

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 27 Jan, 2020 | 1 min read

श्याम के गाँव से शहर थोड़ी ही दूरी पर था, बड़ा शहर नहीं पर जीवन निर्वहन का साजो सामान, काम धाम सब उपलब्ध था। इसलिए श्याम कभी दादी दादू को छोड़ किसी महानगर नहीं गया। दादी को अपनी मिट्टी से बड़ा लगाव था और बेटे बहू को एक मेले के भगदड़ में खोने के बाद पोते को कभी दूर जाने देने की दिल गवाही ना देता था उनका। श्याम की भी पढ़ाई लिखाई पास के शहर से करा दी। साइकिल से बीस मिनट लगते और घर से शहर पहुंच जाता था। पढ़ाई खत्म होते ही एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में नौकरी भी मिल गई, हाँ साथ पढ़ने वाले दोस्त बाहर चले गए कभी कभी इस बात का मलाल जरूर रहता था, जानता भी था की उतना वेतन या मेहनताना यहां कभी नहीं मिलेगा पर दादू दादी बिना सारे सुख बेकार थे। उस साल फसल अच्छी हुई तो दादी ने मोटरसाइकिल खरीद दी थी।

रोज घर से काम पर जाते समय दादी एक लोटे में अनाज देती और कहतीं की जाते वक़्त मठ पर देते जाना, और मंदिर वाले पुजारी जी से आते समय लोटा लेते आना। रोज का यही नियम था, इसके पीछा उनका मन्तव्य यही था कि उसी बहाने भगवान के दर्शन करेगा और हर मुसीबत से दूर रहेगा। श्याम पूछता भी की दादी भगवान ने बेटे बहू को छीन लिया फिर भी तुम्हारी श्रद्धा नही जाती क्या? दादी ने कहा कि बेटे श्रद्धा नही जानी चाहिए हमारे जीवन से कभी भी , प्रभु से हो या किसी सत्य या आस्था से.. बाकी कर्मों का खेल है बस।

एक दिन जब श्याम अन्न देने मठ पर गया तो पुजारी जी उदास बैठे थे और आँखों में आंसू थे, श्याम से रहा ना गया तो पूछ लिया। पुजारी जी ने बताया की इस महंगाई में मंदिर और गायों के रखरखाव का खर्च संभलता नहीं, गाँव वाले अन्न और यथासम्भव देते हैं मदद पर काफी नहीं। कल रात से काली गाय गम्भीर हालत में है डॉक्टर का खर्च कहाँ से लाऊँ.. बछड़े माँ के विछोह की आहट पर आवाज़ किए जा रहे हैं। भगवान के घर में भी अंधेर है। जी करता है मंदिर छोड़ चला जाऊँ की देखना ना पड़े ये सब। श्याम चुपचाप चला आया।

अगले दिन दादी ने श्याम को जब लोटा दिया तो श्याम ने कहा मैं साइकिल से जा रहा हूं काम पर, पहले ही काफी देर हो चुकी है तुम दे आओ। दादी ने पूछा मोटरसाइकिल कहाँ गई? श्याम ने कहा तुमने कहा था दादी श्रद्धा जानी नहीं चाहिए ना। दादी भुनभुनाती हुई मंदिर गई क्या बोलता है लड़का भगवान जाने.. अब शाम को पूछूंगी। मंदिर पर देखा पंडित जी खुशी खुशी गाय को तिलक कर रहे थे और बोले सच कहती थी तुम अम्मा हमेशा भगवान सुनते तो है, डाक्टर ने कहा की किसी भले मानस ने इलाज का सारा खर्च जमा करा दिया है। वाह रे उपर वाले! श्रद्धा की लाज रख ली। शाम को दादी के पूछने पर बता दिया श्याम ने मोटरसाइकिल एक दोस्त को दे दी उसे चाहिए थी। श्याम ने भी उस राज को यूँ ही राज रहने दिया, बात दादी की दी हुई सीख पर विश्वास की जो थी।

-सुषमा तिवारी

मौलिक, अप्रकाशित

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