"और बेटा कुछ अपने परिवार के बारे में बताओ?" शुभा की मां ने पूछा
"जी मुझे ये रिश्ता नहीं करना, माफ़ कीजिएगा" कहकर मैं यानि पुरु शुभा की मां को हाथ जोड़ कर वहाँ से निकलने को खड़ा हो गया ।
नशेड़ी पिता... सबका अपमान ... मार पीट...लड़ाई.. तलाक.. परिवार टूटना.. फिर माँ की मौत ।
मैं अपने परिवार का वर्णन कैसे करूंगा। इतना बिखरा? मैंने कहा था शुभा से मैं अब किसी परिवार का हिस्सा ना हो पाउंगा पर उसे तो मेरे साथ मिलकर परिवार बनाना था।
मेरे साथ वो हो चुका था जो कि किसी भी छोटी उम्र के बच्चे के लिए उचित नहीं था। और मुझे जो दर्द महसूस हुआ था उसकी कहानी का दिल में एक अलग पेज था।
दूसरों बच्चों के घर मेज पर सभी का पारिवारिक चित्र देखता था मैं, खुश, मुस्कुराते हुए, हर कोई खुश है, जबकि मैं अपनी ओर देखता कि हम कितने टूट चुके हैं। मैं दर्द को जानता हूं क्योंकि यह मेरे चारों ओर लिपटा हुआ है, मुझे जंजीर की तरह पकड़े हुए यह सब मुझे बांधता है। मैं खाली दीवारों को घूरता था क्योंकि मुझे याद नहीं है कि मैं खुश हुआ था। जब मैं यह सब जानता हूं तो ही मैं कहता हूं कि मुझे परिवार बसाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए । उन्हीं का खून हूं मैं किसी की जिंदगी नहीं बर्बाद कर सकता। लेकिन शुभा मेरे उस पक्ष को नहीं देखती हैं, उसे परिवार के ख़ुशनुमा चित्रों पर भरोसा हैं। लेकिन तस्वीरें झूठ हो सकती हैं। तस्वीरें हर मुस्कान के पीछे क्या है, यह नहीं दिखा ती हैं।
"माँ एक नई तस्वीर खिंचवाते है.. अब हम है पुरु का परिवार" उम्मीद की किरण दुख की निशा को चीरती हुई बाहर आ रही थी।
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