मैं सपने देखती थी, हाँ मैंने हर एक आम इंसान की तरह कुछ सपने देखे थे। पर समय के साथ साथ हमारे सपनों की परिभाषा उनका अस्तित्व बदलते रहता है। हुआ भी यूँ ही मैंने हर परिस्थिति से समझौता करना सीख लिया था, और एक नया सपना देखती जब पुराना टूट जाता था। फिर एक दिन एहसास हुआ शायद समय का पहिया तेजी से दौड़ रहा है और अब वक़्त आ गया है खुली आंखो से अपने सपनों को जीने का।
मैं कुछ भी क्रिएटिव करना चाहती थी, ऐसा कोई खास मापदंड नहीं था पर हाँ कुछ बनने की भूख जरूर थी और आज भी है। सोशल नेटवर्किंग साइट पहले समय की बर्बादी लगते थे पता नहीं था यही मुझे जीने की नई राह दिखा देंगे। छोटी कविताएं और कहानी लिखने की शुरुआत जैसे मेरे सपनों के पूरे होने का शुभारंभ था। पहले प्रयास से इतना प्यार मिला जिसकी कल्पना तक नहीं की थी मैंने। लोगों का इतना सहयोग मिला, प्रोत्साहन जिसके बिना शायद वो शुरुआत सम्भव ना थी। फिर मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कई मंच पर लिखती हूँ और मेरे प्रयासों की सराहना भी होती है। सह लेखक के रूप में कुछ किताबे भी प्रकाशित हुई है। उसके बाद वो हुआ जो मैंने सोचा नहीं था यानी इसी आभासी दुनिया में मैं पेपर विफ जैसे मंच से मिली जो लेखकों को उनके लेखन के दम पर पहचान दिला उन्हें अर्थिक रूप से संबल बना रहा था। वहाँ निरंतर प्रयास और मेहनत के फलस्वरुप मुझे हिन्दी भाषा का "ब्रांड एंबेसडर" बनाया गया। शायद मेरे लिए इससे ज्यादा सम्मान की बात और क्या हो सकती है। तो कुछ इस तरह से अपने सपनों को जीना शुरू किया है, उड़ान भरना चाहती हूं अपने ख्वाबों के उन्मुक्त गगन में। जीवन चल रहा है चलता रहेगा, कोशिश है थोड़ा जी ले जरा।
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