"मुक्तक’ जैसा कि नाम से ही विदित है, यह एक मुक्त रचना है जिसके हर छंद स्वतंत्र भावों की सृष्टि करते है, जो अपने आप में पूर्ण होते हैं। मुक्तक काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें छंद का बंधन न हो। इसमें एक छन्द में कही गई बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध होना आवश्यक नहीं है। कबीर एवं रहीम के दोहे; मीराबाई की रचनाएं आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। आधुनिक काल में हम कुमार विश्वास की मुक्तक कविताएं पढ़ते ही है। हिन्दी के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई। इस परिभषा के अनुसार प्रबंध काव्यों से अलग प्रायः सभी रचनाएँ “मुक्तक“ के अंतर्गत आ सकती है।
वैसे मुक्तक नाम से मुक्त है अर्थात इसके छंद आपस में एक दूसरे से मुक्त है पर कविता के नियम से मुक्त नहीं। मतलब ये कि इन्हें जब चार पंक्तियों में सजाया जाएगा तो मात्रा भार और लय का ध्यान रखना ही होता है।
वर्तमान में लोक प्रचलित मुक्तक का ज्यादातर उर्दू साहित्य से है। चलिए जानते हैं मुक्तक के नियम :-
मुक्तक एक सामान मात्राभार और समान लय (या समान बहर) वाले चार पदों की रचना है जिसका पहला , दूसरा और चौथा पद तुकान्त तथा तीसरा पद अतुकान्त होता है और जिसकी अभिव्यक्ति का केंद्र अंतिम दो पंक्तियों में होता है !
वैसे मुक्तक के लक्षण निम्न प्रकार हैं -
१. इसमें भी चार पद होते हैं
२. चारों पदों के मात्राभार और लय (या बहर) समान होते हैं
३. पहला , दूसरा और चौथा पद में एक सा तुक होता हैं जबकि तीसरा पद अनिवार्य रूप से अतुकान्त होता है ।
४. कथ्य कुछ इस प्रकार होता है कि उसका केंद्र विन्दु अंतिम दो पंक्तियों में रहता है , जिनके पूर्ण होते ही पाठक तारीफ करने पर मजबूर हो जाता है।
५. मुक्तक का पाठन कुछ-कुछ ग़ज़ल के शेर जैसी होती है , इसे व्यंग्य या अंदाज़-ए-बयाँ के रूप में देख सकते हैं।
एक उदाहरण,
आज बाजार में ईमान के तेरे बोल लगेंगे
तू पलक झपका वही लोग बस तूझे चोर कहेंगे
क्यूँ कोशिश करता है बेकार मुर्दों को जगाने में
बड़ी मेहनत लगती है तो फिर ईमान जगेंगे
©सुषमा तिवारी
आइये मात्रा भार देखते हैं :-
आज बाजार में ईमान के तेरे बोल लगेंगे - 30
तू पलक झपका वही लोग बस तूझे चोर कहेंगे -30
क्यूँ कोशिश करता है बेकार मुर्दों को जगाने में-30
बड़ी मेहनत लगती है तो फिर ईमान जगेंगे-30
तो आप भी कोशिश कीजिए और शेयर कीजिए बढ़िया बढ़िया मुक्तक ।
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