"सरिता यार बोर हो रहा हूं, पेपर भी नहीं आ रहा है, टीवी पर मां भजन सुन रही है.. तुम आओ ना बैठ कर बात करते है आखिर काम ही क्या है?"
"अच्छा जी! आप बैठ कर बोर हो रहे है पर मुझे बहुत काम है, बिलकुल फुर्सत नहीं मुझे " मृदुल से कहकर सारिका किचन में चली गई। मन में अभी भी वही बात टीस रही थी" आखिर काम ही क्या है? " हूंह ये अभी भी नहीं समझे।
मृदुल चुप चाप मोबाइल लेकर सोफ़े पर पसर गया और अपने पसंद की मूवी लगा कर देखने लगा। पर ध्यान बार बार सरिता की ओर जाता, नाश्ता तो हो गया फिर सरिता कर क्या रही है किचन में? कहीं गुस्सा ना हो जाए इस लिए पूछा नहीं।
थोड़ी देर बाद सरिता ने सासु माँ को उनकी दवाइयाँ लाकर दी। फिर किचन में जाकर नाश्ते के झूठे बर्तन निपटाने लगी। दोपहर के खाने के दाल चावल भिगो कर सब्जियां काटी। तब तक छुट्टी पर खाली बैठे बच्चों को "कुछ" खाने को चाहिए था तो उन्हें पास्ता बना कर दिया। सासु माँ को भी सूप बना कर दिया।
मृदुल जो सोच रहा था कि समय कैसे कटेगा उसे सरिता को देखते हुए पता ही नहीं चला कब दुपहर हो गई थी। खाना खाने के बाद जब सरिता बर्तन समेटने लगी तो किचन में मृदुल ने हाथ से बर्तन ले लिए।
"छोड़ो मृदुल! ये क्या कर रहें है आप?"
"वही जो मुझे करना चाहिए था और मैंने नहीं किया"
"क्या? ऑफिस छोड़ बर्तन धोने का काम?" सरिता हंस पड़ी।
"हंस लो.. पर मैं इतना शर्मिंदा हूं कि हंस भी नहीं सकता"
"अब ऐसा क्या हो गया?"
"मुझे माफ़ कर दो सरिता! मैं इतनी सी बात आज तक नहीं समझ पाया, तुम्हारे किए गए हर काम को छोटा समझता रहा.. सोचता रहा सरिता को आराम है मुझे ऑफिस भेज दोपहर तक आराम करती होगी, काम ही क्या होगा खाना बनाओ खाओ और सो जाओ.. पर मैं भूल गया तुम घर की नीव बन पूरे घर को अपने ऊपर ले कर चलती हो.. माँ का ख्याल उनकी दवाइयाँ.. मुझे तो पता भी नहीं है यार.. बच्चों की पसंद नापसंद, उनका होम वर्क सब कुछ देख लेती हो, उसके बाद भी मुस्कराती हुई सोशल भी रह लेती हो और मैं ये समझता रहा कि तुम फुर्सत में हो। पर तुम सब को साथ लेकर चलती हो। मैं वैसे भी छुट्टी लेकर आराम करता था फिर भी उस छुट्टी के दिन को मी टाइम बना दिन भर दोस्तों के साथ निकाल देता था पर छुट्टी के दिन तुम्हारा काम दोगुना ही हुआ। आज मेरा ऑफिस बंद हो गया, जाने कब खुलेगा..मुझे लगता था जीविका मैं लाता हूं पर इस बंद मे भी तुम्हारा कार्यक्षेत्र चालू है अभी भी ताकि हम जिवित रहे। तुमने उफ्फ तक नहीं की ना चेहरे पर शिकन लाई.. मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं सरिता.. कैसे होगा मेरा प्रायश्चित? "
मृदुल की आँखों से बहते आंसू देख सरिता की आँखे भर आई।
" तुम इतना प्यार करते हो कम है क्या? रही बात प्रायश्चित की चलो शाम के बर्तन तुम्हारे हुए "
दोनों जोर जोर से हंसने लगे। जाने कैसी विपदा आई हुई है जो टूटे दिलों को स्नेह से जोड़ने का काम कर रही थी। वाह रे रचयिता तेरी लीला तू ही समझे।
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