दृष्टिकोण

अपनी गलती मानने का दृष्टिकोण मानव मे रहता तो शायद ये वायरस काल ना आता

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 06 Apr, 2020 | 0 mins read

राजन पेंटिंग प्रेम में आज मशहूर दृष्टिहीन चित्रकार की आर्ट गैलरी में चला आया। सामने लगी विरान सुनसान सड़कों वाली पेंटिंग देख सहसा मन में उस भयावह काल की यादें ताजा हो आई।

"हम्म! तो आप भी देख चुके हैं उस वायरस काल को!"

"नहीं जनाब! मैं जन्म से दृष्टिहीन हूं "

"वाह! फिर तो और भी अद्भुत.. आपने बखूबी प्रकृति का वो खूनी मंज़र सजीव किया है.. उफ्फ! अपने उपर किए गए कृत्यों का खूब बदला लिया था प्रकृति ने.. क्रोध से लाल आँखे और विरान शहर के शहर .. बस आपने जान डाल दी इसमे "

" अच्छा? ऐसा कुछ हुआ था जैसे आपने बताया? मैं देख नहीं सकता पर मैंने महसूस किया था.. जैसे अपने बच्चों द्वारा खुद के कृत्यों से विनाश को आमंत्रण देना, प्रकृति क्या करती? रो रो कर बस आँखे लाल की हो जैसे! उसके मन का दुख, उसकी सिसकियाँ, विरान गलियों से होकर अंधेरे की तरह मेरे मन तक पहुंचती थी, मैंने बस वही दृष्टान्त रंगों से उकेरा है।

" हूंह! हमारी गलती? सच दृष्टिहीन ही हो साहब .. खैर अपनी अपनी सोच! कल्पना अच्छी कर लेते हो।"

" ऐसे दृष्टिकोण रखने से अच्छा मैं दृष्टिहीन ही सही जनाब! " चित्रकार अपने चित्रों के लिए नए दृष्टिकोण को तलाशने लगा।

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