तुम्हारी छवि!

लिखती हूँ क्यूँकी जानती हूं तुम पढ़ते नहीं

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 1344
Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 30 Dec, 2019 | 0 mins read

प्रिय सोम!

"अरे! मत निकालो ना छवि.. कितनी सुंदर लगती हो इन आभूषणों के साथ पूर्ण श्रृंगार में। रति की छवि दिखती हो तुम छवि, और मैं तुम्हारा कामदेव!".. कितनी शर्माती थी मैं तुम्हारी इन बातों पर। हां, और तुम नहीं भी होते तो भी खुद को श्रृंगार में डुबाए रखती थी.. तुम्हें इतना पसंद जो था।

हाँ था! था से मेरा मतलब यही है की अब तुम्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ता ना मेरे अस्तित्व के किसी भी चिन्ह से, मेरे श्रृंगार तुम्हें अब आकर्षित नही करते, है ना? फिर भी.. फिर भी मैं सजती हूं रोज, तुमसे किसी प्रणय निवेदन के लिए नहीं.. बल्कि स्वयं को यह दर्पण दिखाने के लिए की सिर्फ यहीं तक तुम्हारी पहचान नही छवि! हाँ अब मैं लिखती हूँ.. लिखती हूँ अपना दर्द, अपनी वेदना, अपनी खुशी.. लिखती हूँ मैं समाज में दबी हुई और छवियों के लिए, शायद किसी को समय रहते समझ आ जाए की स्वयं को ताक पर रख कर आप ना तो दूसरों को प्रसन्न कर सकते हैं ना ही स्वयं को।

सोम! मेरे कमरे की एक एक वस्तु में अब भी तुम्हारी सुगंध है..हाँ मेरे चेहरे पर अब भी वो पहले वाली मुस्कान आ जाती है, और साथ में मेरे मुख पर जो तेज है उसके लिए तुम्हारा धन्यवाद। क्यूँ? क्यूँकी आज मैंने अपने जीवन में अपने लिए वो स्थान प्राप्त कर लिया है जो तुम्हारे मोहपाश में सम्भव ना था। मोह तो टूटना ही था, प्रारंभ में मैं विचलित भी हुई.. नकारात्मकता से घिरी हुई, तभी तुम्हें पहला पत्र लिखने का ख्याल आया। तबसे से ना जाने कितने ही पत्र लिखे होंगे तुम्हें.. और हर बार की तरह इस बार भी तुम्हें पोस्ट नहीं करूंगी। शायद तुम्हें लिखे पत्र मुझे हिम्मत देते हैं पर तुम्हारा उत्तर सुनने की हिम्मत मुझमे नही है।

चलो सोम! मेरी स्मृति में तो साथ तुम हो ही सदैव के लिए, जीवन में साथ हो ना हो। तुम्हारी ओर से मुझे भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएं!

छवि

0 likes

Support Sushma Tiwari

Please login to support the author.

Published By

Sushma Tiwari

SushmaTiwari

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.