मौसम अपने पूरे शबाब पर था, बारिश भी रुक रुक कर हो रही थी। खिड़की पर खड़ी आहना खिड़की की कांच पर गिरते बारिश की बूँदों को ध्यान से देख रही थी। ये मौसम जिसे आदित्य " रोमांस का स्टार्टर " कहते थे उसके लिए अब उस पसन्दीदा डिश की तरह था जिसे बीमार होने पर त्याग देना होता है। हां आज फिर आदित्य की याद उतनी ही जोरों से आ रही थी। यूं तो पिछले सोलह सालो में कभी एक पल के लिए भूली नहीं होगी तभी तो यादो को छोड़ आगे भी तो नहीं बढ़ पाई जैसे इसी ठहराव में उसकी जिन्दगी थी। अपराधबोध में दबी और जिम्मेदारियों के लिए वचनबद्ध जैसे एक मशीन की तरह जी रही थी आहना।
बारिश की बहती धारा में आहना का मन उन्नीस साल पहले जा पहुंचा जब वो इसी तरह के एक रोमांटिक बरसात की शाम को आदित्य से मिली थी। आदित्य यू एस ए से छुट्टियों में घर आया था और भाग्य ने ऐसा खेल रचाया की आहना के प्रेम में बंध प्रणय सूत्र में बँध कर ही वापस गया। आहना की मास्टर्स की पढ़ाई बाकी थी इसलिए वो साथ नहीं गई और ससुराल में रुक गई। आहना के सास ससुर बेटे से ज्यादा बहू से प्यार करते थे इसलिए आहना को लगता जैसे दुनिया में उससे खुशकिस्मत तो कोई हो ही नहीं सकता है जो इतना प्यारा परिवार मिला था।
कहते हैं ज्यादा खुशियों को भी नजर लगती है। शादी को दो साल हो चुके थे। वैसे तो आहना की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी और वो आगे रिसर्च का काम देख रही थी। आदित्य हर बारिश उसके साथ ही होता, पैसे की फिक्र छोड़ वो कुछ दिन के लिए जरूर आता। आदित्य का कहना था कि बस दो तीन साल और फिर वो इंडिया ही सेटल हो जाएगा। आहना भी जिद नहीं करती थी कि यही तो कैरियर बनाने का समय भी है और जल्दी शादी उनका फैसला था। उस बरसात आहना ने अपनी चाहत या ये कहे जिद जब आदित्य के सामने रखी तो वो समझ नहीं पाया कि क्या करे? आहना माँ बनना चाहती थी और आदित्य के एक दो साल रुकने वाली बात पर कतई राजी नहीं थी। उसने कहा कि वो सम्भाल लेगी अकेली पर उसे माँ बनना है। आदित्य उसके जिद के आगे झुक गया। उनके प्यार की महक जल्दी ही फिजाओं में घुल गई और आहना ने वो खुश खबरी दी जिसे आदित्य भी सुनना चाहता था दिल से। आहना माँ बनने वाली थी और वो भी जुड़वा बच्चों की। आदित्य ने फैसला कर लिया था कि वो अब यू एस ए वापस नहीं जाएगा आखिर दो बच्चे पालना आसान काम नहीं। आदित्य ने हँसते हँसते अपने सपने कुर्बान कर दिए।
पर शायद आहना को और बहुत कुछ देखना बाकी था। हँसते खेलते आठ महीने कैसे बीत गए पता ना चला। आदित्य ने इंडिया में नई जॉब ले ली थी हाँ पहली वाली जॉब जैसी नहीं पर काफी थी जिसमें वो थोड़ी सालो का ब्रेक परिवार के लिए ले सके। एक दिन आहना ने दर्द की शिकायत की पर अभी ड्यू डेट दूर थी। अस्पताल ले जाकर उसे आपातकाल रूप से ऑपरेशन के लिए ले जाना पड़ा था। डॉक्टर ने बाहर आकर आदित्य से जब ये कहा कि हम माँ और शायद सिर्फ एक बच्चे को ही बचा पाएंगे। ये सुनते ही आदित्य के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ऑपरेशन फॉर्म पर साइन करके उसके सामने अंधेरा छाने लगा, जिस परिवार बच्चों के लिए उसने अपना कैरियर, भविष्य दांव पर लगा दिया वो परिवार उससे आज छिन जाएगा शायद। सब लोग दौड़ पड़े। अंदर ऑपरेशन चल रहा था और बाहर आदित्य को ब्रेन हेमरेज हो चुका था और वो दुनिया से चला गया। चला गया ये देखे बिना की उसका परिवार, उसकी पत्नी, उसका बेटा और उसकी बेटी बिलकुल सुरक्षित थी।
आहना को अगले दिन बताया गया। महीने भर तक तो वो शॉक में थी बाद में सबने बच्चों का वास्ता देकर उसे जीने के लिए मजबूर किया। सब कुछ चलते आया, सब कुछ संभलते आया, उसने परिवार सम्भाल लिया, बच्चे सम्भाल लिया, बच्चों के लिए जीना भी सीख लिया पर नहीं भर पाई तो वो अपराधबोध जो आज तक कचोटता है। कचोटती थी हर बरसात की शाम जब उसने शायद खुद ही अपने प्यार से कहीं उसकी जिन्दगी तो नहीं जिद में मांग ली।
" माँ! प्रोग्राम के लिए निकलना है.. आप जानते हो ना हमे अवार्ड मिलने वाला है" बेटे की आवाज से तन्द्रा टूटी। हाँ जिनके चिंता ने आदित्य को दूर कर दिया उनकी देखरेख तो आहना का फर्ज बनता था आखिर। हाँ आदित्य मैं निभाती हूं हर एक फर्ज अपना, अपने हिस्से का, तुम्हारे हिस्से का.. मुझे माफ़ करना पर इस खुश मिजाज मौसम के साथ हमेशा मुझे तुम याद आते हो।
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