खुशियो को जीने का अवसर

इस quarantine ये सोच कर की अब क्या होगा कुछ होने वाला तो नहीं.. तो क्यूँ ना वो किया जाए जो सोच रहे थे कि जाने कब कर पाएंगे। जी हां मौका है अपने हिसाब से समय व्यतित करने का।

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 10 Apr, 2020 | 0 mins read

किताबें.. हाँ किताबों से बहुत प्यार था। था क्या.. है और शायद हमेशा रहेगा।हाँ ये अलग बात है कि समय की ऐसी मार पड़ी या यूं कहें कि समय ने खुद का समय छिन लिया, अब इतना समय नहीं मिलता था कि अपने लिए पढ़ने का समय निकालूँ।

"भाइयों और बहनो! अब देश में 21 दिन का लॉक डाउन रहेगा" मोदीजी के कहते ही घर में हड़कंप मच गया।

हाँ जरूरी था ये सबके लिए, सिर्फ कोरोना से बचने के लिए नहीं बल्कि उस अंधी दौड़ से भी बचने के लिए जिसमें युगों युगों से सब दौड़ रहे हैं। किसी के पास फुर्सत नहीं थी अपने लिए, अपनों के लिए, अपने सपनों के लिए। यही नियति है कह कर सब दौड़े चले जा रहे थे।

तो अब तय हुआ कि ईन 21 दिनों में हम अपने अपने हॉबी को पूरा करेंगे (जो घर के अंदर हो सके)। जैसे मुझे मौका मिला है बहुत सारी ई बुक डाउनलोड करके समय का सदुपयोग कर साहित्यिक और आध्यात्मिक सागर में डुबकियाँ लगाने का। जिसे गाना गाना पसंद है वो यूट्यूब पर गाने सीख रहा.. कोई डांस सीख रहा तो कोई खाना बनाना। ड्रॉइंग और पेंटिग पर हाथ साफ किया जा रहा है तो वहीं तरह तरह के क्राफ्ट भी बन रहे हैं। दिन कैसे निकल रहें है कुछ पता नहीं चल रहा है। बस जरूरत के हिसाब से समाचार देखना है तो डर भी कम लगेगा क्यूँकी जरूरी सूचना वाटसप ग्रुप पर मिल जाती है। अब ये लॉक डाउन बढ़ भी जाए तो कोई गम नहीं हाँ बस आर्थिक समस्याओं का सोच थोड़ा जी घबराता है। पर ये कठिन समय कठिन सोच कर गुजरेगा नहीं और ना ही हमारे सोचने से पैसे आ जाएंगे तो क्यूँ ना उन यादों को कमा लिया जाए जो पैसे से क़ीमती है। वो कहते हैं ना कि बस जिंदगी में "अफसोस" ना रह जाए।

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