दूरी इक पल यूँ तड़पावे।
एक पल भी चैन ना आवे।
जाने उस बिन जिएगा कौन।
ए सखी साजन? ना री फोन।
(सुषमा तिवारी)
दोस्तों ये है एक कह मुकरी
‘कह-मुकरी’ जैसा कि नाम से ही पता चलता है कहके मुकर जाना !
इसे ग्रामीण क्षेत्रों में कही जाने वाली पहेली का ही थोड़ा विकसित रूप कह सकते हैं।
कह-मुकरी मनोरंजक काव्य की पुरानी विधा है जो लगभग खत्म होने के कगार पर पहुंच गई थी किन्तु कुछ जागरूक साहित्यकारों के प्रयास से पुनः अस्तित्व में आ रही है। इस विधा का अस्तित्व भारतेंदु युग की समाप्ति और द्विवेदी युग के आरम्भ के साथ ही लुप्तप्राय हो गया था और इस विधा पर अमीर खुसरो द्वारा सबसे ज्यादा काम किया गया था। मूलतः ये विधा दो सहेलियों के बीच की हंसी मज़ाक वाली बात-चीत पर आधारित होती है। इसमें चार चरण या लाइन होते हैं। प्रत्येक चरण में 15 या 16 मात्राएं होती हैं। इन चार में से पहले तीन चरणों में एक सखी द्वारा दूसरी सखी से अपने 'प्रिय' के कुछ लक्षण बताती है यानी पहेली करती हैं और आखिरी चरण में दूसरी सखी उन लक्षणों के आधार पर पहली सखी से प्रश्न (ए सखि साजन?) करती है। लेकिन, यहाँ पहली सखी संकोच से अपनी बात से मुकरते हुए साजन से अलग और उन्हीं लक्षणों से मिलता-जुलता कोई और उत्तर दे देती है। है ना मजेदार? चलिए कुछ उदाहरण से समझते हैं,
वो आवै तो शादी होय।
उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागें वा के बोल।
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल।'
(अमीर खुसरो)
मेरी रचना का मात्रा भार देखिए मैंने गिन कर डाला हुआ है।
दू री इ क प ल यू त ड पा वे =16
ए क प ल भी चै न ना आ वे =16
जा ने उ स बि न जि ए गा कौ न =16
ए स खी सा ज न ना री फो न =16
( मात्रा भार गिनने के लिए अलग आर्टिकल दिया गया है, याद रखे हिन्दी कविता के मात्रा भार और ग़ज़ल के मात्रा भार में फर्क़ होता है)
तो मात्रा भार का ध्यान रखते हुए थोड़े से प्रयास से आप भी लिख सकते हैं बढ़िया बढ़िया कह मुकरी, लिखिए और साझा करिए।
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