एक ही "पृथ्वी" हमारी ही

पृथ्वी हमारा घर है.. अब अपने घर को आग लगा कर आखिर पानी किससे मांगे?

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 07 Jan, 2020 | 1 min read

"पापा! न्यूज में क्या दिखा रहे हैं? कहाँ आग लगी है? सब क्यूँ चिंतित है?"

"बेटा जी! धरती के वर्षा वन जो की हमे ऑक्सीजन देते हैं.. खत्म होने वाले हैं.. साथ ही खत्म होने वाली है हजारों जीवन प्रजातियां"। उदास होकर पिता ने पुत्र को बताया।

"तो पापा! हम कुछ करते क्यूँ नहीं.. मैंने तो अभी दुनिया देखी तक नहीं.. क्या दुनिया बचेगी मेरे देखने तक?"

" हम क्या करे बेटा! ये आग जो हमने खुद के घर में लगा ली तो बुझाने का पानी किससे मांगे?.. मतलब विकास की आस में विनाश को न्योता दे दिया मेरे बच्चे"

"तो अब क्या "?

" अब इंतज़ार है बस कब तक पृथ्वी सहेगी हमारी ज्यादतियां.. या हम समय रहते कुछ कर पाएंगे "

मैंने एक कविता लिखी है तुम पढ़ो -


अनंत आकाशगंगा

एक हमारी भी

एक सूरज, एक चंद्र

एक ही पृथ्वी

बस एक हमारी ही

जीवन के जहां

विकल्प बचे हैं

पृथ्वी खत्म कर दें

कोशिश हमारी भी

भूल गए हम

कई प्रजातियां

आई और गई

पृथ्वी कहीं गई?

नहीं बिलकुल नहीं

तो यहां फिक्रमंद कौन हो?

क्यूँ हो सोचने का समय नहीं

जलते जंगल, फूटता लावा

सूखती नदियां, उफनते सागर

फटती धरती, गिरता पारा

अब कितना इम्तेहान?

अरबों खरबों खर्च

दूसरे ग्रह की खोज

जो पहले से मिला

उसकी तो सोच?

एक बात गांठ मार लो

हमे पृथ्वी चाहिए

पृथ्वी को हम नहीं

ये बात मान लो

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