एक सोच बदलाव की.. बिल्कुल आज की सबसे बड़ी चुनौती यही है। हम ज़माने से सुनते आ रहे थे प्रदूषण कम करो, केमिकल कम उपयोग करो, पेड़ बचाओ, पानी बचाओ, धरती पर साफ सफाई का ख्याल रखो.. पर हम जैसे एक ही चीज़ जानते थे "मेरा क्या?"। सड़कों पर चलते हुए कहीं भी थूकने की आदत, कचरा यहां वहाँ फेंकने की आदत, बीमार हों तो भी संक्रमण ना फैले इसका कभी सोचा नहीं "मेरा क्या?"। फ़लां देश की समस्या है, फ़लां प्रदेश की समस्या है, फ़लां मोहल्ले की समस्या है " मेरा क्या?"। बदलाव की बाते बहुत हुई, हिदायतें बहुत मिली.. प्रकृति की सोचो पर क्यूँ और कौन सुनता था " मेरा क्या?"।
अब आज ये "मेरा क्या?" मांग रहा है एक बदलाव.. बदलाव सोच में.. मैं से हमारा की ओर.." सर्वे भवन्तु सुखिनः" सर्वे सन्तु निरामया " जब सब सुखी और निरोग रहेंगे तभी हम भी खुश रह सकते हैं। तो बदलाव चाहिए अपनी आदतों में.. आदत साफ सफाई की, आदत कम प्रदूषण की, आदत वातावरण को स्वस्थ रखने की.. इसी तरह आगे बढ़ कर एक दूसरे के सुख दुख का हिस्सा बनने की, सबके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करने की।
प्रभु करे ये सोच में जो बदलाव आया है वो यूँ ही बना रहे वर्ना प्रकृति माँ अपना हिसाब खुद बराबर कर लेंगी।
अब तक जो हम गंदगी कर चुके
अगर अब साफ नहीं करेंगे
खत्म हो जाएगी धरती का धैर्य
आने वाली पीढ़ी के लोग हमे माफ़ नहीं करेंगे
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