उलझन सुलझा ले

मन में कब तक रखती बात तो करना ही था

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Sushma Tiwari
Sushma Tiwari 30 Apr, 2020 | 0 mins read

"और मैंने तय कर लिया है कि क्या करना है अब.. पानी सर के उपर से जा चुका है पर हो हल्ला करने से स्थिति बिगड़ेगी ही इसलिए अब मुझे शांत दिमाग से काम लेना होगा" ये सोचते हुए गीता ने फटाफ़ट खाना बनाया और बिना किसी से बात किए बिस्तर पर चली गई।

गीता कुछ दिनों से बहुत आहत थी। राकेश का उसको लेकर काबिज हो चला था। राकेश गीता को किसी से भी नहीं बांटना चाह रहा था जाने कौन सी असुरक्षा की भावना उसे घेरे बैठी थी वो अब गीता को गीता से ही जुदा करने पर तुला हुआ था।

गीता छोटे से गाँव से थी जहां दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई उसने नहीं की पर चीजों को जल्दी सीखने की उसकी प्रकृति और प्रवृत्ति थी तो उसने गांव में ही सिलाई कढ़ाई का काम सीख उसमे निपुण हो चुकी थी। वो आगे और पढ़ना और सीखना चाहती थी पर अठारह के होते ही इंजीनियर लड़का देख माँ बाप ने शादी भी कर दी। गीता को दहेज में यही हिदायत मिली कि हमारी औकात से बाहर इतना अच्छे पोस्ट का दामाद मिला और वो भी बिना दहेज तो तुम इसका मान रखना और तुम शादी करके बड़े शहर जा रही हो और क्या चाहिए हम शायद तुम्हें यह सब नहीं दे पाते।

गीता ने भी बिल्कुल वैसे ही किया। खूबसूरत तो वो थी ही और व्यावहारिक भी तो जल्दी ही सारे लोगों का दिल जीत लिया। उसने ब्यूटीशियन का कोर्स भी राकेश को मना कर खत्म किया। पर जल्द ही माँ बनने की खुश खबरी के साथ उसने अपने सपनों को कहीं पीछे छोड़ दिया। राकेश उसका बहुत ख्याल रखते थे पर उन्हें गीता का अकेले बाहर ज्यादा आना जाना पसंद नहीं आता। अपने लिए ज्यादा लगाव समझ कर गीता ने हर बार हर रोक टोक को अनदेखा ही किया। धीरे धीरे बिटिया अनुषा के बाद बेटा आदित्य हुआ और शादी के पंद्रह सालो बाद राकेश की आदत और बिगड़ चुकी थी।

गीता बच्चों को क्लास और ट्यूशन से लाने में देर कर देती तो हजार सवाल करता की कहाँ रह गई और देर क्यूँ हुई? कई बार बड़ी लड़ाइयाँ हो चुकी थी पर गीता हर बार बच्चों का मुँह देख कर चुप हो जाती और मायके से भी शुरू से कोई सपोर्ट नहीं था उसे। वो खुद भी आर्थिक रूप से उतनी आत्मनिर्भर नहीं थी या ये कहे कि राकेश ने होने नहीं दिया "तुम्हें किस चीज़ की कमी है कि पैसे कमाने है, मेरे पैसे तुम्हारे ही है" कहकर हमेशा टाल देता पर गीता जो महत्वकांक्षी थी बहुत दुखी होती।

गीता ने अपना पार्लर सेटअप भी किया पर कई अड़चने लगा कर राकेश ने बंद करा दिया। गीता बच्चों और राकेश मे उलझ कर रह गई बस। घर से ही यहां वहाँ छोटे मोटे ऑर्डर लेती चोरी छुपे लड़ झगड़ कर।

आज उसे बहुत ही सुनहरा अवसर मिला था। एक क्लाइंट के पहुंच से उसे बड़े फैशन शो के वर्कशॉप अटेंड करने का मौका मिला पर घर से सिर्फ तीन दिन दूर रहने के लिए भी राकेश ने मना कर दिया था बस इसी वजह से वो आहत थी। पर उसने प्यार से सबक सिखाने का फैसला किया था।

गीता के बेटी अनुषा का स्कूल स्टडी टूर आया था जिसमें जाने वाले को आगे विदेश जाकर सेमिनार अटेंड करने का मौका मिलने वाला था। अनुषा सुबह सुबह अपने पापा के पास फॉर्म लेकर पहुंच गई। राकेश ने खुश होकर फॉर्म हाथ में लिया ही था कि गीता ने छिन कर फाड़ दिया। राकेश बहुत गुस्से में आ गया कि ये क्या व्यवहार हुआ? गीता ने साफ मना कर दिया कि अनुषा कहीं नहीं जा रही है। राकेश ने उससे कहा कि ये अनुषा के भविष्य के लिए था ताकि आगे मिलना वाला अवसर वो खो ना दे पर गीता ने साफ मना कर दिया कि वो अनुषा को एक हफ्ते के लिए घर से बाहर नहीं भेज सकती। उसने राकेश से कहा कि अगर इसे जाना हैं तो तुम साथ जाओ। राकेश को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर गीता को हुआ क्या है, हमेशा अनुषा की पढ़ाई को लेकर तत्पर रहने वाली गीता आज ऐसे क्यूँ कर रही है। उधर अनुषा का रो रो कर बुरा हाल था और गीता टस से मस नहीं हो रही थी। राकेश से रहा नहीं गया उसने कहा

" ये क्या बचपना है तुम्हारा? क्या इसके सपनों की कोई परवाह तुमको? इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हो? क्या अपनी ही बेटी पर भरोसा नहीं.. यही है प्यार तुम्हारा?"

राकेश की बाते सुनकर गीता रो पड़ी

" मैं स्वार्थी हूं राकेश? बात जब अपनी बेटी की आई तो तुम सो कॉल्ड मॉडर्न इंसान बन गए, जब मुझे जाना था तो कहाँ गई थी तुम्हारी आजाद भावनाएँ? मेरे सपने कोई मायने नहीं रखते या मेरे चरित्र पर तुम्हें भरोसा नहीं? सोचो मुझे कैसा लगा होगा.. मैं सालो से अपने सपने तुम पर और बच्चों पर कुर्बान करते आई और उम्र के इस पड़ाव पर ना जाने तुम्हारे किया असुरक्षा की भावना के चलते मैं अंदर से मर रही हूं। जानते हो लोगों ने कई बार कहा कि इस रिश्ते से आजाद हो जाऊँ पर मेरे पास हजार कारण है इस रिश्ते में रहने के, मैं जानती हूं तुम मुझे प्यार करते हो और मैं भी..

मैं बस चाहती हूं कि तुम खुल कर अपनी बात कहो "

राकेश स्तब्ध था क्या कहें.. हाँ वो असुरक्षा की भावना से ग्रस्त था, उन घटनाओं से डरा हुआ जब कोई अपना छोड़ जाए।

" मुझे माफ़ कर दो गीता! मैं समझ गया कि तुमने कितना सहा है और फिर भी मुझ जैसे इंसान को छोड़ा नहीं.. आज अनुषा के सपनों की बात आई तो मैं घबरा गया तुम्हें भी बिलकुल उतनी ही तकलीफ हुई होगी। मैं तुम्हारे बीते हुए साल तो नहीं लौटा सकता पर अगर मुझे माफ़ कर सको तो अनुषा के साथ अपने वर्क शॉप का फॉर्म भी भर दो "

गीता ने दोनों फॉर्म सामने रख दिया, जो फाड़ दिया था वो झेरॉक्स था। बर्षों की उलझी हुई गांठ अब सुलझती दिख रही थी।

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