"मम्मी! मैं एक कहानी सुनाऊँ?"
प्राची उछलते हुए बोली जो कि कब से सामने टंगी पेंटिंग को देख मुस्कुरा रही थी।
"बस कर अब तेरी कहानियां!" ज्योति के सब्र का बाँध टूटने ही वाला था।
चाइल्ड कॉउन्सलर के यहां बैठे हुए अपनी बारी के इंतज़ार में वो साथ बैठी महिला को भी देख रही थी जिसके साथ उसका बेटा मोटा चश्मा लगाए चुपचाप किताब में आधे घण्टे से सर घुसाए बैठा था। ज्योति की आँखों से आंसू निकल आए, यही तो वो चाहती थी कि कभी प्राची भी जरूरी किताबों से प्यार करे।
"वैसे क्या समस्या है आपकी?" ज्योति की आँखों में आंसू देख उसने पूछ लिया।
"जी मेरी प्राची वैसे तो बहुत ही समझदार बच्ची है पर जाने कोर्स की किताबों में मन नहीं लगता.. जब देखो कहानियाँ बनाती रहती है.. जाने कहाँ कहाँ की बाते .. पढ़ाई में भी पिछड़ रही है उस पर भी इसे फर्क़ नहीं पड़ता है । मैंने कई बार कोशिश की एकांत में एक जगह बैठ स्कूली किताबें पढ़ सके तो कहती है कहानियों की किताबें बाते करती हैं , वो किताबें इसे खुद ही कहानियां सुनाती हैं .. इसे तो हर एक चीज़ कहानी सुनाती है, पेड़ों से बाते करती है, चिड़ियों से बाते करती है .. जो मिले फिर उसे भी कहानियां सुनाने लगती है.. अब बताइए पढ़ेगी नहीं डिग्रियाँ नहीं लेगी तो क्या होगा इसका भविष्य में ?.. वैसे आपका बेटा बहुत ही सीनसीयर लग है "
" जी किताबी ज्ञान के अलावा मेरा बेटा कुछ बात नहीं करता .. ये खुलकर कुछ बोल ही नहीं पाता "।
-सुषमा तिवारी
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