बारिश भी चाय में चीनी की तरह है, किसी को चाहिए और किसी को नहीं,
कोई तरसता भीगने को तो कोई अपने चूल्हे को बुझने से बचाता फिरता कहीं।
पक्के मकान वाले तो मौसम का पूरा लुत्फ़ लेते हैं, कभी झोपड़ी वालों को देखो, वो दुबक कर कोने में बैठ बारिश के थमने का इंतजार करते हैं।
हम लेते हैं आनंद मोमोज़ और पकौड़ों के जहां,
रेड लाइट पर गुब्बारे बेचता राजू सोचे आज खाना खा पाएंगे हम कहां।
बरसात गरीब के बदन की तपिश तो कम करदेगी पर पेट में भूख से लगी आग का क्या,
वो तो बारिश जब रुकेगी, हाथ में तभी पैसे आएंगे दो चार।
पेड़ के नीचे खड़े वो रेडी वाले ने देखो कैसे खुद से पहले अपने सामान को पानी से बचाया है,
यही तो उसकी रोजी-रोटी है क्योंकि, भीग गया तो कौन उसको खिलाने आया है।
मौसम का आनंद लेने का हक तो गरीब का भी है, कभी देखोगे ध्यान से तो बारिश में छुपे आंखों से निकलते उनके आंसू भी हैं।
हाथ फेला उन्हें भी बारिश की बूंदें पकड़ने का मन करता होगा,
बेफिक्र सड़कों पर रील्स बनाने का वो भी ढूंढते होंगे मौका।
तो अगली बार जब घर में काम करने वाली गीता भीग कर घर आए तो एक कप चाय पूछना, इंसानियत जिंदा है अभी, इसका इल्म तुम उन्हें तुम उन्हें करा देना.
दिल खोलक्र नहीं क्र सकते तो जेब थोड़ी हल्की कर मदद कर देना उनकी,
दुआएं उनकी बचाएंगी गमों की बौछार से मानो, मानो कृष्ण के गोवर्धन पहाड़ सी छतरी।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.